'भईया मेरी शादी के लिए पैसे कहां से लाए? दुकान गिरवी रख दी है.. मेरी शादी में दुकान गिरवी रख दी है, तो इन तीनों की शादी कैसे होगी? तू चिंता मत कर अभी भी दो-दो किडनियां हैं..' भले ही रक्षाबंधन के ट्रेलर में अक्षय कुमार इस बात को मजाक में कह जाते हों लेकिन इस बात को झूठलाया नहीं जा सकता है कि हमारे समाज में दहेज एक गंभीर बीमारी के रूप में सालों से पनपता आ रहा है. अक्षय कुमार स्टारर फिल्म रक्षाबंधन इसी दहेजप्रथा पर बात करती है.
छोटे शहरों में दहेज तो बड़े शहरों में गिफ्ट
डाउरी सिस्टम पर हालांकि बॉलीवुड में कई सारी फिल्में बनीं हैं, ऐसे में रक्षाबंधन किस तरह से इतर होने वाली है? इसके जवाब में डायरेक्टर आनंद एल राय कहते हैं, इसके लिए पूरी फिल्म देखनी पड़ेगी. उसके बाद इस पर चर्चा की जा सकती है. टॉपिक भले ही पुराना हो लेकिन समस्या जस के तस है. छोटे शहर व कस्बों में जहां दहेज का चलन है, तो बड़ा शहर भी इससे अछूता नहीं रहा है. यहां फर्क बस क्लास का है, यहां दहेज के शब्द को गिफ्ट से रिप्लेस किया जाता है. इस कहानी के जरिए यही प्रयास है कि हाई क्लास वालें गिफ्ट का आदान-प्रदान कर बिना वजह किसी गरीब पिता पर दबाव बनाना बंद करे.
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चांदनी चौक वाले अक्षय का दिखेगा जलवा
कहानी का बैकड्रॉप चांदनी चौक के ईर्द-गिर्द रखा गया है. ऐसे में अक्षय कुमार चांदनी चौक के ऐसे दुकानदार की भूमिका में हैं, जो गोलगप्पे बेचता है. हिमांशु शर्मा बताते हैं, अक्षय ने चांदनी चौक वाले लड़के के किरदार में खुद को पूरी तरह ढाल लिया है. लाजमी भी है क्योंकि उनकी पैदाईश और बचपन काफी हद तक यहीं पर गुजरी है. शूटिंग के दौरान कई बार अक्षय अपने डायलॉग्स में इंप्रोवाइज करवाते थे क्योंकि उनके अंदर का चांदनी चौक वाला लड़का बखूबी जानता है कि किस तरह से इसे और ऑथेंटिक बनाया जा सकता है. हम उनकी सजेशन पर पूरी तरह यकीन कर लेते थे.
हिमांशू आगे कहते हैं, अगर आप नोटिस करें, तो अक्षय इसमें कई जगह ओवरवेट नजर आएंगे. इस फिल्म के लिए उन्होंने वजन भी बढ़ाया है. अब कोई मसल्स या सिक्स पैक वाला बंदा, तो गोलगप्पे की दुकान नहीं चला सकता है. जबकि अक्षय चाहे फिल्म से समझौता कर लें लेकिन अपने वजन को लेकर कभी कोई कॉम्प्रोमाइज की स्थिती में नहीं होते हैं. लेकिन इस किरदार में जान डालने के लिए उन्होंने यह भी कर लिया. हमेशा फिट रहने वाले अक्षय ने इस फिल्म के लिए अपनी वजन थोड़ी सी बढ़ाई है.
लड़कियों की छोड़ें, लड़कों के लिए भी नौकरी कहां है
आज जहां हम हमारी छोरी किसी छोरे से कम है की तर्ज पर महिलाओं के हक व कदम से कदम मिलाकर चलने की बात कर रहे हैं, तो क्या रक्षाबंधन में भाई पर निर्भर चार बहनें रिग्रेसिव सोच को तो नहीं जाहिर करती है. मतलब ये लड़कियां पढ़-लिख कर खुद के पैरों पर खड़े होते हुए इसका विरोध भी तो कर सकती हैं. इस पर राइटर हिमांशू और कनिका कहते हैं, फिल्म देखने पर ही इसका खुलासा हो पाएगा. वैसे भी आप नौकरी की बात कर रहे हैं, तो महिलाओं के लिए कितनी नौकरियां रखी हुई है? ये समस्या किसी एक वर्ग की नहीं है न, पूरे पैन इंडिया को इस फिल्म के जरिए दिखाया जा रहा है. यहां आप लड़कियों की नौकरी की बात कर रही हैं, दूसरी ओर तो लड़कों तक को नौकरी मिल नहीं रही है. नौकरी को लेकर देश में क्या बवाल मचा है, उस हालात से तो हर कोई वाकिफ ही है.
बहनों में हर तरह की लड़कियों का है रिप्रेजेंटेशन
फिल्म में अक्षय व भूमि पेडणेकर के साथ बहनों के रूप में चार फ्रेश चेहरे नजर आ रहे हैं. इसकी कास्टिंग पर कनिका कहती हैं, हमने कास्टिंग की पूरी जिम्मेदारी मुकेश छाबड़ा पर छोड़ दी थी. बस हमारी रिक्वायरमेंट यही थी कि फ्रेश फेस ही होने चाहिए. जब ये बहनें शॉर्टलिस्टेड हुईं, तो हमें लगा कि काम यहां खत्म हुआ. दरअसल हमने कास्टिंग भी इस नजरिये से की थी कि हम तरह की लड़कियों को इसमें शामिल करना चाह रहे थे. जो आए दिन शादी के लिए दिक्कतों का सामना करती रहती हैं. किसी को वजन की वजह से सुनना पड़ता है, तो किसी के रंग पर सवाल उठाए जाते हैं. इन बहनों की कास्टिंग बड़े ही सोच विचार के साथ की गई थी, जो परफेक्ट रही.