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Nana Patekar Birthday: कभी सड़क पर जेब्रा क्रॉसिंग पेंट करते थे नाना पाटेकर, बचपन में देखा ऐसा दौर कि आज भी नहीं खाते मिठाई

हिंदी और मराठी सिनेमा के सबसे दमदार एक्टर्स में से एक नाना पाटेकर को एक बहुत स्ट्रिक्ट और कड़क मिजाज व्यक्ति माना जाता है. लेकिन उनका बचपन जिस सख्त दौर से गुजरा, उसकी रगड़ किसी को भी ऐसा ही बना सकती है. उस दौर की एक याद नाना ने ऐसे पाल रखी है कि आज भी मिठाई नहीं खाते. क्या आप जानते हैं क्यों? आइए बताते हैं.

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नाना पाटेकर (क्रेडिट: Getty Images)
नाना पाटेकर (क्रेडिट: Getty Images)

नाना पाटेकर ने फिल्म 'वेलकम' (2007) में जब कॉमेडी की तो जनता को एक बड़ा सरप्राइज मिला. उनकी इस मजेदार परफॉर्मेंसको सबसे दिलचस्प बनाने वाली बात ये थी कि लोगों के दिमाग में नाना की इमेज हमेशा एक कड़क आदमी की रहती है. 'वेलकम' के बाद भी. और ऐसा नहीं है कि इससे पहले उन्होंने फिल्मों में कुछ ऐसा न किया हो कि ऑडियंस को हंसी न आई हो. मगर इससे पहले उनके किरदार कॉमेडी कम और व्यंग्य ज्यादा करते दिखते थे. व्यंग्य में सिर्फ कॉमेडी नहीं होती, गुस्सा भी होता है. 

नाना पाटेकर के नाम के साथ एक ही लाइन में गुस्सा शब्द इस्तेमाल करना बहुत नेचुरल भी लगता है. लेकिन जैसे दुनिया में कुछ भी 'यूं ही' नहीं होता, नाना की ये सख्त-मिजाजी और गुस्सा भी 'यूं ही' नहीं है. इसके पीछे एक कहानी है, बचपन में अभाव देखने की. वक्त जब देह पर कड़े चाबुक लगाता है, तो इंसान अक्सर अंदर से सख्त हो जाया करते हैं. नाना की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. 

13 की उम्र से शुरू की नौकरी, पेंट की जेब्रा क्रॉसिंग 
विश्वनाथ पाटेकर, उर्फ नाना पाटेकर के पिता का टेक्सटाइल पेंटिंग का एक छोटा सा बिजनेस हुआ करता था. लेकिन उनके पिता के एक करीबी ने धोखा किया और प्रॉपर्टी समेत उनका सबकुछ छीन लिया. इसका असर नाना तक भी पहुंचा और वो 13 साल की उम्र से काम करने लगे. नाना ने एक पुराने इंटरव्यू में बताया था कि वो चूनाभट्टी में फिल्मों के पोस्टर पेंट करने के लिए 8 किलोमीटर पैदल आते-जाते थे. और इस काम के लिए उन्हें 35 रुपये महीने की तनख्वाह मिलती.

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नाना ने जेब्रा क्रॉसिंग तक पेंट की. एक बातचीत में उन्होंने ये भी बताया कि उनके पिता हमेशा ये कहते हुए दुखी रहते थे कि 'बच्चों के दिन आए खाने के और मेरे पास कुछ नहीं है.' वो हमेशा इस दुख में रहे और अंदर से इतना टूटे कि आखिर में उन्हें हार्ट अटैक आया और जब नाना 28 के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. 

वक्त ने भर दिया गुस्सा 
पुरानी बातचीत में जब नाना से कहा गया कि वो बहुत गुस्से से भरे लगते हैं, तो उन्होंने बताया कि इसकी वजह क्या है. नाना ने कहा कि बचपन से उन्होंने जो अपमान झेले और लोगों ने जिस तरह बर्ताव किया, ये शायद उसकी वजह से है. नाना ने कहा कि जब उन्हें आज भी वो दौर याद करके आंसू आ जाते हैं. मजबूरी के उस दौर में वो अक्सर लंच या डिनर के समय किसी दोस्त के घर उसका हालचाल लेने पहुंच जाते थे, इस उम्मीद में कि शायद वो रोटी के लिए पूछे और खाने की जिद कर ले.

ईटाइम्स के एक इंटरव्यू में नाना ने कहा था, 'मेरे लिए रोटी की खुशबू की से बढ़कर कोई खुशबू नहीं हो सकती.' नाना ने कहा कि वो हेल्पलेस थे और खुद को कमतर समझने लगे थे और यही गुस्सा बनकर बाहर आने लगा. नाना कहते हैं कि उन्हें हाथ उठाना पसंद नहीं है, लेकिन कई बार उनका मन लोगों की पिटाई करने का करता है. लेकिन जब वो उन लोगों को देखते हैं जो उन्हें गुस्सा दिलाते हैं, तो उन्हें आंसू आ जाते हैं. नाना ने कहा कि 9वीं क्लास में ही 'अपमान और भूख' ने उन्हें इतना कुछ सिखा दिया कि उन्हें किसी एक्टिंग स्कूल जाने की जरूरत ही नहीं पड़ी. 

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मिठाई नहीं खाते नाना पाटेकर
नाना कहते हैं कि उन्हें बचपन से काम करने का बहुत दुख नहीं होता था क्योंकि वो अपने पेरेंट्स को खुश देखना चाहते थे. लेकिन बचपन में मजबूरी के दौर में देखे दिनों की निशानी ये है कि वो अब मिठाई नहीं खाते. पुराने इंटरव्यू में नाना ने बताया था कि उन्हें बचपन में मिठाई बहुत पसंद थी. लेकिन तब उन्हें मिठाई नसीब नहीं हो पाती थी और इसलिए उन्होंने मिठाई खानी ही छोड़ दी और आज भी नहीं खाते. नाना ने कहा कि मिठाई उनके लिए वो सोना है, जिसे वो नहीं खाएंगे. 

ऑरिजिनल 'खलनायक' 
हिंदी सिनेमा में नाना का डेब्यू 'गमन' (1978) से हुआ था, लेकिन पहली बार उनके काम को बड़ी पहचान मिली 10 साल बाद, मीरा नायर की फिल्म 'सलाम बॉम्बे' (1988) से. इसके बाद जब उन्होंने विधु विनोद चोपड़ा की 'परिंदा' (1989) में गैंगस्टर अन्ना का किरदार निभाया तो फिल्म देखने वालों के रोंगटे खड़े हो गए. इस फिल्म के लिए नाना को नेशनल अवार्ड भी मिला. 

शायद नाना की यही नेगेटिव परफॉरमेंस थी, जिसे देखने के बाद सुभाष घई ने उन्हें 'खलनायक' में कास्ट करने का सोचा. घई ने खुद बताया था कि संजय दत्त से पहले 'खलनायक' वाले रोल के लिए वो नाना को लेने का सोच रहे थे, जबकि पुलिस ऑफिसर के रोल में उन्होंने शुरू से जैकी श्रॉफ को ही सोचा था. लेकिन तब उनका प्लान एक आर्ट फिल्म टाइप कहानी बनाने का था और जब 'खलनायक' प्रॉपर मसालेदार हिंदी फिल्म की तरह बनने लगी तब उन्होंने संजय दत्त को लेने का फैसला किया.

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