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छठ का अनूठा गीत... चुनाव के माहौल में मैया से सवाल, कब रुकेगा पलायन, घर में मिलेगा रोजगार?

छठ महापर्व की तैयारियां जोरों पर हैं. अपना गांव घर छोड़कर कमाने के लिए परदेस गए बिहारी-पूर्वांचली लोग घर के लिए निकल चुके हैं. मगर ये घर छोड़कर निकले क्यों थे? ये सवाल इस बार बिहार चुनाव के केंद्र में है. यही सवाल लेकर एक छठ गीत आया है- 'पलायन के दर्द सुनs ए छठी मैया'.

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छठ गीत में उतरा पलायन का दर्द, नेताओं से सवाल (Photo: ITGD)
छठ गीत में उतरा पलायन का दर्द, नेताओं से सवाल (Photo: ITGD)

भोजपुरी म्यूजिक की बात करें तो छठ गीत इसमें एक पूरा अलग सेक्शन है. छठ गीतों की बात निकलते ही बिहार कोकिला कही जाने वालीं स्वर्गीय शारदा सिन्हा की छवि सबसे पहले ध्यान में उभरती है. उनके छठ गीत उन लोगों ने भी सुने हैं जो छठ नहीं करते. उनके छठ गीतों में इस पर्व के प्रतीक और छवियां, मैया की भक्ति के रंग में उभरते थे. और उनके ही नहीं, अधिकतर छठ गीतों में भक्ति से जुड़ी या संतान प्राप्ति से जुड़ी वही पारंपरिक छवियां हैं. 

मगर क्या देश की एक बड़ी जनसंख्या में सुने जाने वाले छठ गीतों को राजनीति और लोकहित से जुड़े महत्वपूर्ण मुद्दे उठाने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है? इसका जवाब है पॉपुलर भोजपुरी सिंगर प्रियंका सिंह का नया छठ गीत 'पलायन के दर्द सुनs ए छठी मैया'. गीत को लिखा है मनोज भावुक ने और कंपोज किया है विनीत शाह ने. 

पलायन की बात करता नया छठ गीत
'पलायन के दर्द सुनs ए छठी मैया' को बाकी छठ गीतों से ये बात अलग करती है कि यहां छठ मैया से केवल संतान प्राप्ति की गुहार नहीं लगाई जा रही. बल्कि उनसे ये अरदास की जा रही है कि जो संतानें उनकी कृपा से जन्मी हैं, उन्हें कमाने और पढ़ने के लिए अपना घर छोड़कर पलायन न करना पड़े. 

इस छठ गीत में रोजगार की समस्या को हाईलाइट करते हुए, लोगों से जागरुक होने को कहती लाइन है- 'गांव में कब मिली रोजी-रोजगार हो, का जाने कब जागी यूपी-बिहार हो!' जबकि एक लाइन उन नेताओं से शिकायत की भी है जो गांवों से दिल्ली-मुंबई-बैंगलोर पलायन करने वाले युवाओं की तकदीर लिखते हैं- 'कब ले पलायन के दुख लोग झेले, कब ले सुतल रहिहें एमपी-एमएलए!' 

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बिहार में चुनाव सिर पर हैं. तमाम नेता हर दिन रैलियां कर रहे हैं. और इस माहौल में ये छठ गीत वो सवाल लेकर आया है जो इस चुनाव के केंद्र में है— बिहार के युवाओं के रोजगार का सवाल, उनके पलायन का सवाल.

छठ गीत में कैसे उतरा पलायन का सवाल?
'पलायन के दर्द सुनs ए छठी मैया' एक रेगुलर छठ गीत नहीं है. इसके लिरिक्स में एक राजनीतिक सवाल भी है, जो आपका ध्यान खींचता है. इस तरह का विचार पारंपरिक छठ गीत के ढांचे में एक अनूठा एक्सपेरिमेंट है. इस बारे में हमने ये गीत लिखने वाले मनोज भावुक से बात की. उन्होंने बताया कि ये विचार उन्हें कैसे आया. 

मनोज ने कहा, 'छठ के जो अधिकतर गीत हैं वो मैया से प्रार्थना के लिए हैं. प्रार्थना बेटा होने के लिए, नारी के लिए, सूर्यदेव से जल्दी उगने के लिए. इनमें हमेशा से वही छवियां चली आ रही हैं- केले के पत्ते, सुग्गा (तोता) मंडराना... यही सब. अभी जो समय है बिहार में वो चुनाव का है. और चुनाव के समय नेता दंडवत होते हैं. हमें बिहार के लोगों को जगाना भी है, उनका अधिकार भी याद दिलाना है. ये नेताओं को अपनी शर्तों पर घेरने का सही समय है.'

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बिहार में पलायन की समस्या पर बात करते हुए मनोज ने कहा, 'नेताओं से ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि भिखारी ठाकुर के नाटक 'बिदेसिया' में भी एक व्यक्ति कमाने के लिए कलकत्ता गया था. उससे पहले भी गिरमिटिया मजदूर मॉरिशस, फिजी, गुयाना कमाई के लालच में ही गए थे. आज भी लोग सऊदी, दुबई जा रहे हैं. हम लोग दिल्ली-मुंबई में हैं. मतलब आज भी पूर्वांचल और बिहार में कुछ नहीं है. हम मजबूर हैं... चाहे रोजगार के लिए हो, शिक्षा के लिए या चिकित्सा के लिए. हम डेढ़-दो सौ साल से वैसे के वैसे हैं. हम कहते हैं कि हमने मॉरिशस को स्वर्ग बना दिया, दिल्ली-मुंबई जैसे शहर हमने बनाए हैं. मगर अपने यहां हम रोजगार की भीख मांग रहे हैं. इसलिए हमारी समस्याओं पर काम किया जाना चाहिए.' यहां सुनें गीत 'पलायन के दर्द सुनs ए छठी मैया':

मनोज ने एक बेहद पॉपुलर गाने का उदाहरण देते हुए बताया कि पलायन की समस्या को पॉपुलर भोजपुरी गायकों ने उठाया भी तो उसी भद्दे अंदाज में, जिसके लिए भोजपुरी का मजाक उड़ाया जाता रहा है. जैसे- एक गाने में पलायन की समस्या यूं है कि 'सेज पर किसके साथ लडूं, सैयां अरब गए'. 

इस तरीके पर नाराजगी जाहिर करते हुए वो कहते हैं, 'क्या यही हमारी समस्याएं हैं? मैंने अपने गाने में उन मां-बाप का दर्द लिखा है जिनके बच्चे परदेस में हैं. इस पलायन के चलते मां-बाप पीड़ा में हैं. जबकि गुजरात में देखिए छोटी-छोटी स्मॉल स्केल इंडस्ट्रीज हैं जहां लोग अपने परिवार के साथ रोजगार करके सुखी हैं. तो हमारे लिए भी वो व्यवस्था होनी चाहिए कि कमाने के लिए बाहर जाना हमारी मजबूरी ना हो. हम अपने शौक से घूमने के लिए चाहे जहां जाएं.'

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कुछ महीने पहले ही खबर आई थी कि भारत सरकार ने छठ महापर्व को यूनेस्को की सांस्कृतिक धरोहरों की लिस्ट में शामिल करवाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है. संगीत नाटक अकादमी को इस संबंध में एक प्रपोजल तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है और अकादमी की बनाई कमेटी में मनोज भावुक का भी नाम है. 

उन्होंने बातचीत में आगे कहा, 'अभी हाल ही में मेरी नजर से बड़े स्टार्स की छठ पर बेस्ड एक कहानी गुजरी. बच्चा नहीं होने के लिए एक महिला को उसके ससुराल वाले प्रताड़ित कर रहे हैं, ताने दे रहे हैं. वो छठी मैया की पूजा करती है तो सबकुछ ठीक हो जाता है. क्या अभी भी हमारा समाज इतना पिछड़ा है कि हम ये सब दिखा रहे हैं? हम छठ को यूनेस्को की हेरिटेज में शामिल करवाने की बात कर रहे हैं. और दूसरी तरफ हम ऐसी कहानियां दिखा रहे हैं कि बहू आई है तो उसे छठ को लेकर संशय है, छठ करने का तरीका उसे नहीं पता. हम अपनी इस नेगेटिविटी को छठ की विरासत में जोड़कर यूनेस्को में भेजें?'

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