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जिन्ना Vs गन्ना: कहां खड़ा है अलीगढ़, पश्चिमी यूपी में फिर राजनीतिक प्रयोग की कोशिश तो नहीं?

जिन्ना के नाम पर सियासत की शुरुआत अलीगढ़ से होती है. तालों का शहर और शिक्षा का मक्का मदीना कहे जाने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वाले इस शहर की अपनी एक ऐतिहासिक विरासत है. ‌ लेकिन इस शहर पर विवादों का साया तब पड़ा जब साल 2018 में जिन्ना का जिन्न पहली बार जागा.

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मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर सियासत की शुरुआत अलीगढ़ से होती है.
मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर सियासत की शुरुआत अलीगढ़ से होती है.
स्टोरी हाइलाइट्स
  • UP में एक बार फिर जिन्ना का नाम गूंजने लगा है
  • अलीगढ़ से शुरू हुई जिन्ना के नाम की सियासत
  • यूपी चुनाव के पहले निकला जिन्ना का जिन्न

उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव का औपचारिक बिगुल बजना बाकी है लेकिन चुनाव प्रचार पहले ही शुरू हो चुका है. कहीं मुद्दों का शोर है तो कहीं मुद्दे बनाए जा रहे हैं. पश्चिमी क्षेत्र में एक बार फिर जिन्ना का नाम गूंजने लगा है. मोहम्मद अली जिन्ना को लेकर के इतिहास चाहे कुछ भी कहे, लेकिन राजनीति में जिन्ना के नाम को जिंदा रखने की कोशिश की जा रही है ताकि चुनाव में सियासी फायदा उठाया जा सके. तो क्या राजनीति की प्रयोगशाला कहे जाने वाले पश्चिम उत्तर प्रदेश में जिन्ना के नाम पर एक बार फिर राजनीतिक प्रयोग करने की कोशिश तो नहीं? 

मोहम्मद अली जिन्ना के नाम पर सियासत की शुरुआत अलीगढ़ से होती है. तालों का शहर और शिक्षा का मक्का मदीना कहे जाने वाले अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय वाले इस शहर की अपनी एक ऐतिहासिक विरासत है. ‌ लेकिन इस शहर पर विवादों का साया तब पड़ा जब साल 2018 में जिन्ना का जिन्न पहली बार जागा. साल 2018 में अलीगढ़ से सांसद सतीश गौतम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जिन्ना की तस्वीर लगे होने पर सवाल खड़े किए. बीजेपी सांसद गौतम ने कहा था कि जिसकी वजह से हिंदुस्तान का बंटवारा हुआ, उसकी तस्वीर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में क्यों लगाई है? 

अखिलेश यादव के एक बयान से उपजा बयान

इसके बाद से पश्चिमी क्षेत्र में चाहे लोकसभा चुनाव की तारीख हो या फिर कोई उपचुनाव हो, मुद्दों में जिन्ना का नाम जरूर शामिल होने लगा. अब जब उत्तर प्रदेश एक बार फिर चुनाव के मुहाने पर खड़ा है तो पार्टियों को जिन्ना के नाम में वोट बैंक की उम्मीद दिखाई देने लगी है. 31 अक्टूबर को समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के एक बयान से विवाद की शुरुआत होती है. जब अखिलेश ने कहा कि सरदार पटेल, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना एक ही संस्था में पढ़कर बैरिस्टर बनकर आए थे, उन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी और संघर्ष करने से पीछे नहीं हटे.  

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योगी आदित्यनाथ का पलटवार

समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव का बयान आने की देर थी कि उधर से उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से लेकर बीजेपी के कई नेताओं की ओर से आक्रामक पलटवार आने लगे. योगी आदित्यनाथ ने कहा कि जनता ऐसे बयानों को खारिज करती है जिसमें पटेल और जिन्ना का नाम एक साथ लिया जाए. ‌‌  

राजभर ने भी छेड़ा सुर

10 नवंबर को सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के नेता ओमप्रकाश राजभर ने भी मोहम्मद अली जिन्ना का जिक्र करते हुए कहा कि अगर जिन्ना भारत के प्रधानमंत्री बने होते तो देश का विभाजन ही नहीं होता. तो जवाब में केंद्रीय सूचना प्रसारण मंत्री और उत्तर प्रदेश में बीजेपी की अहम राजनीतिक जिम्मेदारी संभाल रहे अनुराग ठाकुर ने कहा कि चुनाव आते ही तुष्टीकरण की राजनीति शुरू हो गई है और कुछ लोग जिंदा का नाम रखने लगे हैं. 

AMU के छात्रों की राय

अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को भले ही विवादों का केंद्र बनाया जाता है लेकिन यह शिक्षा के लिए किसी मक्का-मदीना से कम नहीं है. सिर्फ हिंदुस्तान जी नहीं, बल्कि दुनिया के कई कोनों से छात्र यहां पढ़ने के लिए आते हैं. थियोलॉजी (धर्मशास्‍त्र) विभाग में सिर्फ उर्दू या इस्लाम ही नहीं, बल्कि हिंदू, सिख और बौद्ध समेत कई धर्मों के बारे में 8 भाषाओं में शिक्षा दीक्षा होती है. हिंदी में कई लेखकों पर रिसर्च कर रही सलमा इसी थियोलॉजी विभाग की रिसर्च स्कॉलर हैं, जो हिंदी लेखकों द्वारा मजहबी भाईचारे के संदेश को अपनी रिसर्च का हिस्सा बना रही हैं. सलमा कहती हैं कि उन्होंने कई लेखकों के साथ-साथ शंकराचार्य जैसे धर्मावलंबियों को भी पढ़ा है जो एकता-भाईचारे को बढ़ावा देते हैं. 

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जिन्ना पर विवाद बेवजह है

थियोलॉजी विभाग के चेयरमैन प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद अली खान कहते हैं, जिन्ना पर विवाद बेवजह है क्योंकि यहां उनकी तस्वीर आजादी से पहले लगाई गई है जो दूसरे कई फ्रीडम फाइटर्स के साथ है. जिन्ना की यह तस्वीर ऐतिहासिक है क्योंकि यह मुंबई हाई कोर्ट में भी लगी है और संसद भवन में लगी है. सरोजिनी नायडू का हवाला देते हुए जाहिद कहते हैं कि उस समय उन्होंने जिन्ना को मजहबी भाईचारे का प्रतीक बताया था. ज़ाहिद कहते हैं कि जिन्ना की तस्वीर यहां ऑनरी मेंबरशिप के तौर पर लगाई गई है.

हमारी बर्बादी का रास्ता खोला

प्रोफेसर मुफ्ती जाहिद कहते हैं, ''जिन्ना की वजह से सिर्फ मुस्लिम यूनिवर्सिटी ही नहीं, बल्कि सबसे ज्यादा नुकसान हिंदुस्तान और हिंदुस्तानी मुसलमानों को हुआ. लेकिन सबसे ज्यादा फायदा संघ परिवार को हुआ और आज भी सबसे ज्यादा फायदा संघ परिवार को होता है और आवाज भी वही उठाते हैं. यह बात सही है कि हिंदुस्तान के मुसलमानों को जिन्ना की तस्वीर बहुत पहले ही उठाकर फेंक देनी चाहिए थी, क्योंकि हिंदुस्तान की तक्सीम करवाकर उन्होंने ही हमारी बर्बादी का रास्ता खोला.'' 

आइए, जानते हैं कि AMU के छात्रों के लिए जिन्ना कितना बड़ा मुद्दा हैं और छात्रों के अहम मुद्दे क्या हैं? 

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यूनिवर्सिटी के छात्र उमर कादरी कहते हैं कि यहां किसी भी राजनीतिक दल से जुड़े हुए छात्र संगठन नहीं हैं. लेकिन हर विचारधारा के बच्चे हैं जो अपनी बात खुलकर सामने रखते हैं. जिन्ना के सवाल पर उमर कादरी कहते हैं कि यह सिर्फ भाजपा का मुद्दा है, छात्रों का नहीं और उन्हें जिन्ना की मजार बना देनी चाहिए और पूजा करनी चाहिए, क्योंकि उन्हीं के नाम पर ही वह चुनाव लड़ते हैं. 

शिक्षा व्यवस्था ठप्प

छात्र फरहान जुबेरी बताते हैं कि विश्व विद्यालय का बंद होना छात्रों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है, जबकि सिनेमाघर और दूसरे संस्थान खुले हुए हैं. वहीं, विश्वविद्यालयों में शिक्षा व्यवस्था ठप्प पड़ गई है. फरहान कहते हैं कि ऑनलाइन क्लासेस में केमिस्ट्री के प्रैक्टिकल नहीं हो सकते. एक और स्टूडेंट इमरान खान कहते हैं कि यूनिवर्सिटी पूरी तरह खोलने के साथ-साथ जिन छात्रों की स्कॉलरशिप रुकी है, वह मिलनी चाहिए. साथ ही सीटें बढ़ाई जानी चाहिए और बेहतर सुविधाएं मिलनी चाहिए. 

सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा

AMU के छात्रों के लिए सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है. अपने आरोपों में उमर कादरी कहते हैं कि उत्तर प्रदेश में सुरक्षा एक बड़ा मुद्दा है क्योंकि आजकल दाढ़ी और टोपी के नाम पर लोगों को मारापीटा जा रहा है और घरों पर बुलडोजर चलाए जा रहे हैं, इसीलिए आज सुरक्षा हमारी बुनियादी जरूरत है. CAA-NRC को लेकर हुए दंगों में लोग मारे जाते हैं, नौकरी मांगने वालों को एनकाउंटर कर दिया जाता है. ऐसे में सुरक्षा हमारे लिए बड़ा मुद्दा है और दूसरा सबसे बड़ा मुद्दा है रोजगार. अगर आप हमें रोजगार देंगे तो हम अपने परिवार और देश के लिए योगदान दे सकेंगे. 

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AMU हमेशा से निशाने पर

छात्र नेता राजा कहते हैं कि यहां पर युवाओं के सबसे बड़े मुद्दे छात्रों से जुड़े हुए होते हैं और जब छात्रों की मांग पूरी नहीं होती तो हम लोकतांत्रिक तरीके से विरोध प्रदर्शन भी करते हैं. राजा का आरोप है कि बीजेपी के निशाने पर अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी हमेशा से रहती है. यहां के स्थानीय सांसद की आंखों में भी अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी खटकती है. अबू सैयद कहते हैं कि यह यूनिवर्सिटी लोगों को जागरूक करती है और अपने अधिकारों के लिए लड़ना सिखाती है. 

अलीगढ़ को हरिगढ़ बनाने का प्रस्ताव

अलीगढ़ के साथ विवाद सिर्फ जिन्ना का ही नहीं है बल्कि इसके नाम को लेकर भी कुछ लोगों को ऐतराज है. 18 अगस्त 2021 को अलीगढ़ की जिला पंचायत की पहली बोर्ड बैठक में स्थानीय नेता ने अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ करने का प्रस्ताव रख दिया. अलीगढ़ में कई गाड़ियां आपको मिल जाएंगीी, जिन पर हरिगढ़ का नाम अब लिखा जाने लगा है. अलीगढ़ के बाजारों में अब नए बैनर पोस्टर पर लोग अलीगढ़ की जगह हरिगढ़ का नाम लिखवाने लगे हैं. 

हरिगढ़ नाम के परिचय पत्र

दुकानदार वकार बताते हैं कि ज्यादातर बीजेपी के समर्थक हाल फिलहाल के दिनों में अलीगढ़ की जगह हरिगढ़ नाम के परिचय पत्र या बोर्ड बनवा रहे हैं. वकार की दुकानों में कई परिचय पत्र  मिलेंगे, जिसमें अलीगढ़ की जगह हरिगढ़ का नाम छपा हुआ है. शहर के रहने वाले युवा सतीश कहते हैं कि अलीगढ़ उर्दू नाम है और हरिगढ़ हिंदी है, और हिंदू होने के नाते वह चाहते हैं कि अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ किया जाए.

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डीएस कॉलेज के स्टूडेंट क्या बोले

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से निकले मुद्दों के खिलाफ अक्सर डीएस कॉलेज में आवाज उठती है. इसलिए यह जानना जरूरी है कि जिन्ना से लेकर हरिगढ़ और तमाम मुद्दों पर यहां के छात्र क्या सोचते हैं?  कॉलेज के छात्र नेता पुष्पेंद्र सिंह कहते हैं कि जिन्ना का मुद्दा राजनीतिक है क्योंकि इसे सियासी फायदे के लिए उठाया जाता है, तो कानून की छात्रा दिव्या गौर कहती हैं कि स्थानीय लोगों को इस मुद्दे से कोई लेना-देना नहीं है जबकि युवाओं के लिए दूसरी प्राथमिकताएं हैं. 

रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा

सौरभ सिंह कहते हैं कि हरिगढ़ मुद्दा हमारे लिए इसलिए जरूरी है क्योंकि यह हमारी पहचान है और अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ होना चाहिए.  दीक्षा कौर कहती हैं कि विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों के लिए सबसे बड़ा मुद्दा है यहां से निकल कर बेहतर रोजगार और बेहतर भविष्य मिले, तो दूसरे युवा अजय गुप्ता कहते हैं कि सरकार युवाओं के लिए पर्याप्त मौके का बंदोबस्त नहीं कर रही है ऐसे में रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है. 

सियासी फायदे के लिए जिन्ना का जिक्र

जिन्ना के मसले पर अलीगढ़ के ज्यादातर युवाओं की राय यह है कि सियासी फायदे के लिए इस मुद्दे को हवा दी जाती है, लेकिन अलीगढ़ का नाम बदलकर हरिगढ़ किए जाने के मुद्दे को इस कॉलेज के युवा समर्थन देते हैं. लेकिन अंततः एक राय जो सबकी समान है, वह यह कि युवाओं के लिए इस चुनाव में भी सबसे बड़ा मुद्दा बेहतर शिक्षा और रोजगार ही है, न कि जिन्ना. 

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तालों के कारोबार में मंदी 

अलीगढ़ की दूसरी पहचान तालों के शहर के रूप में है. ‌ दुनिया में शायद ही ऐसा कोई शहर होगा जो ताला बनाने के लिए विख्यात हो, लेकिन अलीगढ़ को यह ख्याति प्राप्त है. कई दशकों से यह शहर ताले बनाता रहा है और तकनीक के साथ यहां के ताले उन्नत होते चले गए. हालांकि, इस कारोबार की चमक धीरे-धीरे खत्म हो रही है और अलीगढ़ अपनी इस पहचान को खोता जा रहा है. 

तालों के कारोबार की चमक धीरे-धीरे खत्म हो रही है.

महामारी से आई परेशानी

छोटी-सी फैक्ट्री के मालिक दिलशाद बताते हैं कि कोरोनावायरस व्यापारियों की स्थिति बेहद खराब हो गई है और अब कारोबार की चमक फीकी पड़ रही है क्योंकि ताला बनाने के लिए बुनियादी चीजों की कीमतें बढ़ी हैं और महामारी के दौरान कारोबार ऐसा बंद हुआ जिसके चलते उन्हें अपने यहां कई वर्करों को काम से निकालना भी पड़ा. दिलशाद कहते हैं कि सियासतदां  यहां जिन्ना का मुद्दा उठाते हैं लेकिन स्थानीय मुद्दों पर कोई बात नहीं करता, जबकि कारोबार बुरी तरह प्रभावित हुआ है.  

महामारी के चलते अलीगढ़ के ताला उद्योग पर असर पड़ा है.

महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा

पिछले 35 साल से अलीगढ़ के बाजार में ताला बेचने वाले वसाहत खान कहते हैं कि अब महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा बन गई है जिसके चलते उनके कारोबार पर बुरा असर पड़ने लगा है. वसाहत कहते हैं कि यहां के लोगों के लिए जिन्ना कोई मतलब नहीं है, मुसलमानों से जिन्ना का क्या लेना देना? उन्होंने देश का बंटवारा किया. 

जिन्ना के शोर में दबी 'गन्ना' की आवाज

दरअसल, निचला इलाका होने की वजह से अलीगढ़ में गन्ना और चावल प्रचुर मात्रा में होता है. धान और गेहूं यहां किसानों की आमदनी का सबसे बड़ा जरिया है, लेकिन जिन्ना के सियासी शोर में इन किसानों के मुद्दों और उनकी आवाज अक्सर दब जाती है. अलीगढ़ के किसान जितेंद्र कुमार कहते हैं कि अपना गन्ना बेचने के लिए उन्हें लगभग 50 किलोमीटर दूर शुगर मिल पर जाना पड़ता है जिसकी वजह से लागत बढ़ जाती है और ऐसे में घर चलाना मुश्किल हो जाता है. 

किसानों की बढ़ी परेशानी

किसान सुनील कुमार कहते हैं कि किसानों के लिए महंगाई सबसे बड़ा मुद्दा है क्योंकि डीजल पेट्रोल की कीमतें ज्यादा होने से खेती की लागत बढ़ जाती है. वह कहते हैं कि मेरे खेतों में पानी ज्यादा चला गया जिससे फसल खराब हो गई और अब मुझे अपना घर चलाने के लिए दूसरे के खेत में ₹200 प्रतिदिन की दिहाड़ी पर मजदूरी करनी पड़ रही है. अलीगढ़ के जितेंद्र कहते हैं कि लोग चुनाव में वादा तो करते हैं कि किसानों के लिए सब कुछ करेंगे, लेकिन करता कोई है नहीं. वह जिन्ना की बात करते हैं लेकिन हमारे लिए तो गन्ना महत्वपूर्ण हैं. किसान कहते हैं कि हाल फिलहाल में डीएपी यानी खाद की किल्लत ने भी किसानों को बहुत परेशान किया है. 

जिन्ना से स्थानीय लोगों को कोई लेना-देना नहीं

अलीगढ़ बेहद संवेदनशील इलाका है. ऐसे में राजनीतिक दल अपने नफे-नुकसान को देखते हुए ही मुद्दों का राग अलापते हैं. ‌ जबकि अलीगढ़ में समाज का हर तबका यह उम्मीद करता है कि चाहे सत्ता हो या विपक्ष, उनके मुद्दों को आगे बढ़ाएं और उनकी समस्याओं का समाधान करें. देश को बंटवारे का नासूर देने वाले जिन्ना से स्थानीय लोगों को कोई लेना देना नहीं है, बल्कि वह चाहते हैं कि उनके यहां का युवा और किसान खुशहाल रहे. 

 

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