सौराष्ट्र में आने वाला राजकोट गुजरात का चौथा सबसे बड़ा शहर है. राजनीतिक तौर पर यह क्षेत्र भारतीय जनता पार्टी का गढ़ रहा है. तीन दशक में यहां सिर्फ एक बार कांग्रेस को जीत नसीब हुई है. 2014 के चुनाव में भी राजकोट लोकसभा सीट से बीजेपी को जीत मिली थी, और अब चर्चा ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस सीट से मैदान में उतर सकते हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
राजकोट लोकसभा सीट पर 1962 में पहली बार चुनाव हुआ और इसमें कांग्रेस ने जीत दर्ज की. कांग्रेस के टिकट पर नवलशंकर ने यहां से पहला चुनाव जीता. इसके बाद 1967 में स्वतंत्र पार्टी को जीत मिली. 1971 के आम चुनाव और 1972 के उपचुनाव में कांग्रेस ने परचम लहराया. आपातकाल के बाद 1977 में जो चुनाव हुआ, उसमें भारतीय लोकदल ने जीत दर्ज की. इसके बाद 1980 और 1984 के आम चुनाव में कांग्रेस को इस सीट से जीत मिली. लेकिन 1989 के चुनाव भारतीय जनता पार्टी की जीत का जो सिलसिला शुरू हुआ, वह 2009 में आकर रुका. 1989,1991,1996,1998,1999 और 2004 के चुनाव बीजेपी जीतती रही. इसके बाद 2009 में कांग्रेस ने वापसी की और कुंवर भाई बावलिया ने बीजेपी उम्मीदवार को शिकस्त दी. 2014 के चुनाव में बीजेपी उम्मीदवार मोहन भाई कुंदरिया ने बड़े अंतर से चुनाव जीता.
सामाजिक ताना-बाना
2011 की जनगणना के मुताबिक, यहां की आबादी 27,21,136 है, इसमें 35.11% ग्रामीण और 64.89% शहरी आबादी है. अनुसूचित जाति की आबादी 7.05% है. 2018 की वोटर लिस्ट के मुताबिक, यहां मतदाताओं की कुल संख्या 18,34,412 है. राजकोट जिले में करीब 10 फीसदी मुस्लिम आबादी है.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चुनावी राजनीतिक सफर का आगाज राजकोट से हुआ था, जब 2001 में मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी मिलने के बाद वह राजकोट सीट से उपचुनाव में जीतकर विधानसभा पहुंचे थे. अब गुजरात के मौजूदा मुख्यमंत्री विजय रुपाणी भी राजकोट से ही विधायक हैं. इस इलाके में पटेल वोट निर्णायक भूमिका में हैं. ज्यादा संख्या कड़वा पटेलों की है. साथ ही ब्राह्मण, क्षत्रिय, कोली और बनिया वोट भी यहां काफी है. कांग्रेस के बड़े नेता कुंवरजी बावलिया 2017 विधानसभा चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीतने के बावजूद बीजेपी में शामिल हो गए और फिर उपचुनाव में जसदण सीट से जीत गए. हालांकि, उससे पहले वह 2014 का लोकसभा चुनाव भी लड़े थे और बीजेपी से हार गए थे. बावलिया कोली समुदाय के बड़े नेता हैं और उनके बीजेपी में आने से समीकरण बदल गए हैं.
शहरी इलाकों में खासकर ज्वैलरी का काम करने वाले व्यापारी हैं. इस इलाके में बड़े पैमाने पर ज्वैलरी का काम होता है. इसी के चलते राजकोट पश्चिम भारत का 'ज्वैल स्टेट' भी कहा जाता है. राजकोट लोकसभा सीट जामनगर, राजकोट और सुरेंद्रनदर जिले में आती है. राजकोट लोकसभा के अंतर्गत तनकारा, राजकोट पश्चिम, जसदण, वांकानेर, राजकोट दक्षिण, राजकोट पूर्व और राजकोट ग्रामीण विधानसभा सीट है. 2017 के विधानसभा चुनाव में तनकारा सीट से कांग्रेस, वांकानेर से कांग्रेस, राजकोट पूर्व से बीजेपी, राजकोट पश्चिम से बीजेपी, राजकोट दक्षिण से बीजेपी, राजकोट ग्रामीण से बीजेपी और जसदण सीट से कांग्रेस को जीत मिली थी.
2014 का जनादेश
मोहन भाई कुंदरिया, बीजेपी- 508,437 वोट (58.8%)
कुंवरजी भाई बावलिया, कांग्रेस- 375,096 (35.5%)
2014 चुनाव का वोटिंग पैटर्न
कुल मतदाता- 16,55,717
पुरुष मतदाता- 8,64,760
महिला मतदाता- 7,90,957
मतदान- 10,57,069 (63.8%)
सांसद का रिपोर्ट कार्ड
67 साल के मोहन भाई कुंदरिया पांच बार विधायक रहे हैं. 1995 से 2012 तक वह विधानसभा चुनाव जीतते रहे हैं. उन्हें राज्य में मंत्री के रूप में भी काम करने का अवसर मिला है. 2014 में वह पहली बार लोकसभा चुनाव लड़े और जीत गए. उन्हें मोदी कैबिनेट में कृषि राज्य मंत्री भी बनाया गया. वह मैट्रिक की पढ़ाई भी पूरी नहीं कर पाए.
लोकसभा में उपस्थिती की बात की जाए तो उनकी मौजूदगी 93 फीसदी रही है, जो कि औसत से बेहतर है. जबकि बहस के मामले में उनका प्रदर्शन खराब रहा है. उन्होंने 16 बार संसद की बहस में हिस्सा लिया. सवाल पूछने के मामले में उनका प्रदर्शन बेहतर रहा और उन्होंने कुल 246 सवाल पूछे.
सांसद निधि से खर्च के मामले में उनका प्रदर्शन अच्छा रहा है. उनकी निधि से जारी 22 करोड़ रुपये का वह लगभग 92 प्रतिशत विकास कार्यों पर खर्च करने में कामयाब रहे हैं.
संपत्ति की बात की जाए तो एडीआर की रिपोर्ट के मुताबिक, उनकी कुल संपत्ति 3 करोड़ रूपये से ज्यादा की है. इसमें 2 करोड़ 20 लाख से ज्यादा की चल संपत्ति और 1 करोड़ 74 लाख रूपये से ज्यादा की अचल संपत्ति है.