पश्चिम बंगाल की बैरकपुर लोकसभा सीट पर 23 मई को मतगणना के बाद चुनाव के नतीजे घोषित हो गए हैं. इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार अर्जुन सिंह ने जीत हासिल की है. उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के प्रत्याशी दिनेश त्रिवेदी को 14857 वोटों से हराया. जबकि तीसरे नंबर पर सीपीएम उम्मीदवार गार्गी चटर्जी रहे.
किसको कितने वोट मिले
कब और कितनी हुई वोटिंग
बैरकपुर सीट पर लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण के तहत 6 मई को वोट डाले गए और कुल 76.81 फीसदी मतदान हुआ.
Lok Sabha Election Results LIVE: अबकी बार किसकी सरकार, पढ़ें पल-पल की अपडेट
कौन-कौन उम्मीदवार
बैरकपुर लोकसभा सीट पर कुल 15 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतरे. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की तरफ से अर्जुन सिंह, मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) से गार्गी चटर्जी, बहुजन समाज पार्टी से तपश सरकार, तृणमूल कांग्रेस से दिनेश त्रिवेदी, कांग्रेस से मोहम्मद आलम, सोशलिस्ट यूनिटी सेंटर ऑफ इंडिया (कम्युनिस्ट) की तरफ से प्रदीप चौधरी चुनाव लड़े. इसके अलावा 8 निर्दलीय उम्मीदवार भी चुनाव मैदान में उतरे.
West Bengal Election Results Live: पश्चिम बंगाल में कांटे की लड़ाई, पढ़ें पल-पल की अपडेट
2014 का जनादेश
2014 के चुनाव में टीएमसी के दिनेश त्रिवेदी ने सीपीएम के सुभाषिनी अली को हराया था. दिनेश त्रिवेदी को 479,206 वोट मिले थे जबकि सीपीएम के सुभाषिनी को 272,433 वोट मिले थे. कहा जाता है कि बैरकपुर में जूट मिलों में काम करने वाले मजदूर नेताओं की किस्मत का फैसला करते हैं. इसलिए 2014 के चुनावों में माकपा ने 1989 में कानपुर से सांसद रहीं सुभाषिनी अली को दिनेश त्रिवेदी के खिलाफ मैदान में उतारा था. लेकिन सुभाषिनी अली को शिकस्त का सामना करना पड़ा था. वहीं बीजेपी के प्रत्याशी रिटायर्ड पुलिस अधिकारी आरके हांडा तीसरे स्थान पर रहे थे और उन्हें मोदी लहर का भी कोई लाभ नहीं मिल सका. उस दौरान तत्कालीन बीजेपी अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने भी हांडा के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की थी. बीजेपी को उम्मीद थी कि बिहार और उत्तर प्रदेश से आकर बैरकपुर में बसे हिंदी भाषी मतदाताओं की वजह से उसे लाभ मिलेगा. लेकिन ऐसा नहीं हो सका.
वहीं इस चुनाव में कांग्रेस के तोपदार चौथे स्थान पर रहे थे. बता दें कि दिनेश त्रिवेदी यूपीए सरकार में रेल मंत्री भी रहे. उन्होंने रेलमंत्री के पद से 18 मार्च 2012 को इस्तीफा दे दिया था. दिनेश त्रिवेदी ने तृणमूल कांग्रेस की अध्यक्ष ममता बनर्जी के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री नियुक्त होने के बाद रिक्त हुए रेलमंत्री का पदभार 13 जुलाई 2011 को संभाला था. आजाद भारत के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ था कि किसी रेलमंत्री ने संसद में रेलबजट पेश करने के ठीक पांच दिन के बाद रेलमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया हो.
सामाजिक ताना बाना
औद्योगिक इलाका होने की वजह से बैरकपुर संसदीय क्षेत्र में आधी से ज्यादा आबादी कामकाजी है. इसमें में भी हिंदी बोलने वालों की हिस्सेदारी तकरीबन 35 फीसदी मानी जाती है. जाहिर है कोलकाता से महज 40 किलोमीटर दूर बैरकपुर लोकसभा सीट के अंतर्गत आने वाले क्षेत्र में हिंदी भाषियों में से सबसे अधिक संख्या उत्तर प्रदेश और बिहार के लोगों की है.
जनगणना 2011 के आंकड़े बताते हैं कि बैरकपुर लोकसभा क्षेत्र की आबादी 19,27,596 है जिनमें 16.78% गांव जबकि 83.22% आबादी शहर में रहती है. इनमें अनुसूचित जाति और जनजाति का अनुपात क्रमशः 16.14 और 1.44 फीसदी है. मतदाता सूची 2017 के अनुसार 13,88,832 मतदाता 1530 मतदान केंद्रों पर वोटिंग करते हैं. बैरकपुर में 2014 के आम चुनावों में 81.77% मतदान हुआ था जबकि 2009 में यह आंकड़ा 80.46% है. बैरक संसदीय क्षेत्र में सात विधानसभा सीटें भी हैं.
राजनीतिक पृष्ठभूमि
लोकसभा क्षेत्र के तौर पर 1952 में अस्तित्व में आए बैरकपुर में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) और कांग्रेस के बीच सीधा मुकाबला रहा है. हालांकि ज्यादातर समय यहां से माकपा के सदस्य चुने जाते रहे हैं. 1952 में पहले आम चुनाव के दौरान कांग्रेस के रामनंद दास सांसद चुने गए थे. 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी के टिकट पर बिमल कुमार घोष चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे. 1962 के चुनावों में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की रेणु चक्रवर्ती सांसद चुनी गई थीं. मगर 1967 और 1971 के आम चुनावों में माकपा के मोहम्मद इस्माइल लगातार चुनाव जीते. 1977 के चुनावों में कांग्रेस ने फिर से इस सीट पर वापसी की और उसके प्रत्याशी सौगत रॉय सांसद चुने गए थे.
साल 1980 में हुए चुनाव में मोहम्मद इस्माइल माकपा के टिकट पर मैदान में दोबारा उतरे और जीत हासिल की. मगर 1984 के चुनावों में कांग्रेस ने फिर वापसी की और उसके प्रत्याशी देबी घोषाल चुनाव जीते. लेकिन उसके बाद 1989, 1991,1996,1998 और 1999 के चुनावों में तड़ित तोपदार माकपा के टिकट पर लगातार लोकसभा सदस्य चुने जाते रहे. लेकिन इस सीट पर पहली बार 2009 के चुनाव में तृणमूल कांग्रेस को सफलता मिली और उसके प्रत्याशी दिनेश त्रिवेदी चुनकर संसद पहुंचे. 2009 में दिनेश त्रिवेदी ने करीब 4.5 लाख मत पाकर माकपा के तड़ित तोपदार को करीब 90 हजार वोटों से हराया था. मगर 2004 में माकपा के उम्मीदवार ने तृणमूल के प्रत्याशी को डेढ़ लाख से भी अधिक मतों से शिकस्त दी थी.
चुनाव की हर ख़बर मिलेगी सीधे आपके इनबॉक्स में. आम चुनाव की ताज़ा खबरों से अपडेट रहने के लिए सब्सक्राइब करें आजतक का इलेक्शन स्पेशल न्यूज़लेटर