बिहार विधानसभा चुनाव की सियासी सरगर्मी के बीच पूर्व केंद्रीय मंत्री आरके सिंह के एक बयान ने बीजेपी की तपिश बढ़ा दी है. प्रशांत किशोर के निशाने पर इन दिनों बीजेपी और जेडीयू के तीन बड़े नेता हैं, जिनके खिलाफ लगातार मोर्चा खोल रखा है और एक के बाद एक बड़े आरोप लगा रहे हैं. आरके सिंह ने कहा है कि प्रशांत किशोर के आरोपों का बचाव करने के लिए बीजेपी और जेडीयू के नेताओं को उन्हें जवाब देना चाहिए.
जन सुराज पार्टी के संस्थापक प्रशांत किशोर आजकल डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के साथ जेडीयू नेता अशोक चौधरी के खिलाफ आक्रामक तेवर अपनाए हुए हैं. पीके ने बीजेपी नेता मंगल पांडेय को भी सियासी कठघरे में खड़ा करते हुए देखा गया था.
पीके के द्वारा लगाए गए आरोपों पर बीजेपी नेता आरके सिंह ने कहा कि मेरा तो साफ मानना है कि जिन लोगों पर आरोप लगाया गया है, उनको सामने आकर उसका उत्तर देना चाहिए. साथ ही आरके सिंह ने कहा है कि अगर उनके इस कदम को बगावत समझकर बीजेपी कोई एक्शन लेती है, तो उन्हें इसकी चिंता नहीं है.
बिहार विधानसभा चुनाव के बीच आरके सिंह के बयान और उससे पहले सांसद राजीव प्रताप रूडी के भी अपने सियासी तेवर दिखाने से, क्या बिहार में राजपूत नेताओं की नाराजगी बीजेपी को कहीं भारी न पड़ जाए?
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आरके सिंह ने दिखाए सियासी तेवर
बिहार में बीजेपी के प्रमुख चेहरे सम्राट चौधरी और दिलीप जायसवाल हैं. बीजेपी अपने इन दोनों चेहरों को आगे करके बिहार चुनाव के लिए सियासी ताना-बाना बुन रही है. पीके इन्हीं दोनों नेताओं पर सख्त तेवर अपनाए हुए हैं, जिसे लेकर आरके सिंह फ्रंटफुट पर उतर गए हैं. उन्होंने कहा कि मेरा तो मानना है कि जिन पर आरोप लगाया गया है, उनको उसका उत्तर देना चाहिए. यही बात जेडीयू के प्रवक्ता ने भी कही और मैं उससे सहमत हूं.
आरके सिंह ने कहा, 'अब हमारे प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल पर आरोप लगा कि एक हत्या में उनका हाथ है या एक माइनॉरिटी मेडिकल कॉलेज को उन्होंने हड़प लिया, इसका उन्हें खुद उत्तर देना चाहिए'. उन्होंने आगे कहा, 'सम्राट चौधरी पर प्रशांत किशोर ने आरोप लगाया कि नहीं साहब, ये फर्जी डिग्री दिखा रहे हैं, ये सातवीं फेल हैं, ये हत्या में आरोपित हैं. इसका उत्तर उन्हें देना चाहिए. उत्तर नहीं देने से पार्टी की छवि धूमिल होती है और सरकार की छवि धूमिल होती है. लोग उसको सच मान लेते हैं.
आरके सिंह ने कहा कि अगर सच है तो बोल दीजिए, आप रिजाइन कर दीजिए. अगर नहीं सच है तो आप प्रशांत किशोर पर मानहानि का मुकदमा कीजिए. आपकी सच्चाई क्या है? इसे बताइए. इसी तरह से उन्होंने जेडीयू नेता अशोक चौधरी से कहा. आरके सिंह साफ कह रहे हैं कि अगर उनकी बात को बगावत समझा जा रहा है तो पार्टी एक्शन लेती है तो उन्हें इसकी भी चिंता नहीं है.
क्या राजीव प्रताप रूडी नाराज हैं?
बीजेपी सांसद राजीव प्रताप रूडी पार्टी में साइडलाइन चल रहे हैं. दिल्ली के कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव में राजीव प्रताप के खिलाफ बीजेपी के पूर्व सांसद संजीव बालियान लड़े थे. रूडी यह चुनाव जीत गए, लेकिन जिस तरह बीजेपी सांसद निशिकांत दूबे ने उन पर आरोप लगाए हैं, उसे लेकर वह अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. इतना ही नहीं, रूडी ने कहा कि कुछ लोग हैं, जो उनकी सियासत को खत्म करना चाहते हैं. हालांकि, उन्होंने किसी का नाम नहीं लिया, लेकिन इशारों-इशारों में अपना दर्द जरूर बयां कर दिया.
सारण से बीजेपी सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री राजीव प्रताप रूडी ने कुंवर सिंह की पुण्यतिथि के मौके पर कहा था कि हम (राजपूत) लंबे समय से दूसरों के लिए सफलता की सीढ़ी के रूप में इस्तेमाल किए जाते रहे हैं. हमें अब यह सुनिश्चित करना होगा कि कोई भी हमें हल्के में न ले, यह एकजुट होने और अपनी ताकत दिखाने का समय है. रूडी ने राजपूतों की अनदेखी करने के लिए किसी पार्टी पर निशाना नहीं साधा, लेकिन इशारों-इशारों में सियासी संदेश देने से नहीं चूके.
कॉन्स्टिट्यूशन क्लब ऑफ इंडिया के चुनाव को जाट बनाम ठाकुर बनाए जाने को लेकर रूडी अपनी नाराजगी जाहिर कर चुके हैं. इसके साथ ही बिहार में राजपूत समुदाय के सियासी तौर पर किनारे किए जाने को लेकर रूडी ने जिस तरह अपनी चिंता जाहिर की है, उससे माना जा रहा है कि वह कहीं न कहीं दुखी हैं और खुद को बीजेपी में साइडलाइन पा रहे हैं. हालांकि, अब रूडी यह बता रहे हैं कि वह क्लब चुनाव से बाहर निकल चुके हैं.
बिहार में राजपूत वोटों की ताकत
बिहार की सियासत में जातिगत सर्वे के मुताबिक 10 फीसदी के करीब सवर्ण जातियों का वोट है, जिसमें दो बड़ी जातियां ब्राह्मण और ठाकुर यानी राजपूत हैं. बिहार में ब्राह्मणों की आबादी 3.65 फीसदी, राजपूत की आबादी 3.45 फीसदी, भूमिहार 2.86 फीसदी और कायस्थ 0.60 फीसदी है. बिहार में ब्राह्मणों की आबादी ठाकुरों से ज्यादा होने के बावजूद राजनीतिक भागीदारी तुलनात्मक रूप से कम रही है.
बिहार में राजपूत एक प्रभावशाली जाति हैं, जिसके चलते सभी राजनीतिक दल इस समुदाय पर अपनी पकड़ मजबूत बनाए रखने की कवायद में हैं. राज्य की करीब 30 से 35 विधानसभा सीटों और 7 से 8 लोकसभा सीटों पर राजपूत वोटर निर्णायक भूमिका निभाते रहे हैं. 2020 में 28 राजपूत विधायक बने थे, तो 2024 में 6 राजपूत सांसद बने.
बिहार की राजनीति में राजपूत पॉलिटिक्स हमेशा से ही अपर कास्ट में सबसे मजबूत रही है, सबसे ज्यादा विधायक और सांसद इसी जाति के होते रहे हैं, वर्तमान में भी हैं. कहा जाता है कि किसी गांव में अगर राजपूत समाज के 200 वोट हैं तो वह चार सौ वोट के बराबर की ताकत रखते हैं, इसका मतलब यह है कि राजपूत समाज अपने साथ-साथ दूसरे समाज के वोटों को भी प्रभावित करते हैं.
बिहार में राजपूत विधायक-सांसद की संख्या
बिहार के 2020 के विधानसभा चुनाव में 28 राजपूत विधायक जीते थे, जिनमें बीजेपी से 15, जेडीयू से 2, आरजेडी से 7, कांग्रेस से एक, वीआईपी से दो और एक निर्दलीय शामिल था. वीआईपी से जीतने वाले दोनों विधायकों ने बीजेपी का दामन थाम लिया. इस तरह बीजेपी के पास 17 राजपूत विधायक हो गए. साल 2015 में 20 राजपूत विधायक जीते थे. मतलब पिछली बार के मुकाबले 2020 में 8 अधिक राजपूत विधायक विधानसभा पहुंचे थे.
साल 2020 में एनडीए ने 29 राजपूत नेताओं को टिकट दिया था. बीजेपी ने 21 राजपूतों को टिकट दिया, जिनमें से 15 जीते. जेडीयू के 7 राजपूत प्रत्याशियों में से 2 ही जीत सके. वहीं, 2 वीआईपी के टिकट पर जीते. इस तरह एनडीए के 29 टिकट में से 19 राजपूत विधानसभा पहुंचे थे. जबकि महागठबंधन ने 18 राजपूतों को टिकट दिया था.
तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन ने 2020 में 18 राजपूतों को टिकट दिया था, जिनमें से महज 8 उम्मीदवार ही जीत सके. आरजेडी ने 8 राजपूतों को टिकट दिया, जिनमें से 7 उम्मीदवारों को जीत मिली तो कांग्रेस के 10 में से एक राजपूत को ही जीत मिल सकी थी. इसके अलावा एक निर्दलीय राजपूत विधायक ने भी जीत दर्ज की.
नीतीश कुमार के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार में 4 राजपूत मंत्री हैं, जिसमें 2 बीजेपी कोटे से, एक जेडीयू से और एक निर्दलीय शामिल हैं. 2024 के लोकसभा चुनाव में बिहार से 6 राजपूत सांसद हैं, जिसमें 3 बीजेपी से और एक जेडीयू, एक एलजेपी (आर) और एक आरजेडी से हैं.
रूडी-आरके की नाराजगी महंगी न पड़ जाए
केंद्रीय मंत्रिमंडल में बिहार से आठ मंत्री हैं, लेकिन राजपूत समुदाय से कोई भी नहीं है. 2024 में छह राजपूत सांसद जीते हैं. राजीव प्रताप रूडी और आरके सिंह दोनों ही राजपूत समुदाय से आते हैं. आरके सिंह 2024 में चुनाव हार गए हैं जबकि रूडी जीतने में सफल रहे हैं. बिहार में राजपूत वोटर बीजेपी का इन दिनों परंपरागत वोट माना जाता है, लेकिन रूडी और आरके सिंह की नाराजगी से कहीं छिटक न जाए.
पिछले विधानसभा चुनावों में एनडीए ने राजपूत उम्मीदवारों को नजरअंदाज किया था. यही वजह है कि राजपूत समुदाय के नेता चिंतित हैं और अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं. रूडी कई बार के सांसद हैं और लालू परिवार को मात देकर संसद पहुंचते रहे हैं, फिर भी केंद्र की सरकार में मंत्री नहीं बन सके. आरके सिंह 2024 का चुनाव हारने के बाद से साइडलाइन चल रहे हैं.
बीजेपी ने बिहार में अपनी सियासत बदली है, उसका फोकस ओबीसी पर शिफ्ट हुआ है. ऐसे में राजपूत समाज अपनी कमजोर होती राजनीति को लेकर चिंतित है. बीजेपी के साथ होने के नाते अपनी नाराजगी भी बीजेपी से जाहिर कर रहा है. बिहार में सियासत बदलने के साथ ही राजपूत समुदाय का सियासी मिजाज भी बदलता गया. ऐसे में राजपूत नेताओं की नाराजगी बीजेपी के लिए कहीं महंगी न पड़ जाए.