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जहां नीतीश, वहीं जीत... बिहार में पिछले चुनावों का ट्रेंड क्या कहता है

बिहार विधानसभा चुनाव के मुहाने पर खड़ा है. चुनाव आयोग शाम 4 बजे बिहार के लिए चुनाव तारीखों का ऐलान करेगा. पिछले तीन चुनावों में किस दल का प्रदर्शन कैसा रहा है?

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बिहार चुनावों में एक्स फैक्टर साबित होते रहे हैं सीएम नीतीश कुमार (File Photo: PTI)
बिहार चुनावों में एक्स फैक्टर साबित होते रहे हैं सीएम नीतीश कुमार (File Photo: PTI)

चुनाव आयोग की 6 अक्टूबर को शाम चार बजे प्रेस कॉन्फ्रेंस होनी है. इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में चुनाव आयोग बिहार विधानसभा चुनाव के लिए तारीखों का ऐलान कर सकता है. बिहार चुनाव के लिए तारीखों के ऐलान से पहले चुनावी बाजी जीतकर सत्ता का सिकंदर बनने के दावे हर दल, हर गठबंधन कर रहा है. जीत-हार के दावों के बीच बात चुनावी आंकड़ों की भी हो रही है. बिहार के पिछले तीन चुनावों के आंकड़े क्या कहते हैं? 

पिछले विधानसभा चुनाव नतीजों की बात करें तो ट्रेंड यही कहता है कि जहां नीतीश, वहीं जीत. 2020  के चुनाव में नीतीश एनडीए में थे. विपक्षी महागठबंधन की अगुवाई कर रहा राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) सबसे बड़े दल के रूप में उभरा, लेकिन सरकार एनडीए की बनी. 2010 और 2015 के बिहार चुनाव में नीतीश कुमार की पार्टी या उसके गठबंधन सहयोगी ही सबसे बड़े दल के रूप में उभरे थे.

साल 2020 के बिहार चुनाव की बात करें तो आरजेडी को 23.5 फीसदी वोट शेयर के साथ 75 सीटों पर जीत मिली थी. भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) 19.8 फीसदी वोट शेयर के साथ 74 सीटें जीतकर दूसरे नंबर पर रही थी. वोट शेयर के लिहाज से देखें, तो पहले नंबर की पार्टी आरजेडी को दूसरे नंबर की पार्टी बीजेपी के मुकाबले 3.7 फीसदी अधिक वोट मिले थे. लेकिन दोनों दलों के बीच एक सीट का ही अंतर था.

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2020 में 43 सीटों के साथ तीसरे नंबर पर रही थी जेडीयू

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की अगुवाई वाली जनता दल (यूनाइटेड) को 15.7 फीसदी वोट शेयर के साथ 43 सीटें जीती थी. जेडीयू बिहार चुनाव में तीसरे नंबर की पार्टी के रूप में उभरी थी. अन्य दलों की बात करें तो तब एनडीए में शामिल रही विकासशील इंसान पार्टी (वीआईपी) को 1.5 फीसदी वोट के साथ चार, हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा को एक फीसदी से भी कम वोट के साथ चार सीटों पर जीत मिली थी.

महागठबंधन में शामिल दलों में कांग्रेस को 9.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 19, सीपीआई (एमएल) को 3.2 फीसदी वोट के साथ 12, सीपीआई और सीपीआई (एम) को एक फीसदी से भी कम वोट शेयर के साथ दो-दो सीटों पर जीत मिली थी. असदुद्दीन ओवैसी की अगुवाई वाली ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को 1.3 फीसदी वोट के साथ पांच सीटों पर जीत मिली थी.

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लोक जनशक्ति पार्टी को तब 5.8 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन वह केवल एक सीट ही जीत सकी थी. बहुजन समाज पार्टी भी 1.5 फीसदी वोट शेयर के साथ एक सीट जीतने में सफल रही थी. एक सीट से निर्दलीय को भी जीत मिली थी. पप्पू यादव की अगुवाई वाली जन अधिकार पार्टी (जेएपी) ने भी 148 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. जेएपी को एक फीसदी वोट भी मिले थे, लेकिन पार्टी खाली हाथ ही रह गई थी.

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2015 में भी आरजेडी थी सबसे बड़ी पार्टी

आरजेडी 2015 में भी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी थी. तब आरजेडी जेडीयू के साथ गठबंधन कर चुनाव मैदान में उतरी थी और 18.8 फीसदी वोट के साथ 80 सीटें जीतने में सफल रही थी. 2015 के चुनाव में आरजेडी की गठबंधन सहयोगी जेडीयू को भी 17.3 फीसदी वोट मिले थे और उसे 71 सीटों पर जीत मिली थी. 25 फीसदी वोट शेयर के बीजेपी 53 सीटें ही जीत सकी थी. कांग्रेस को 27 और अन्य दलों के उम्मीदवारों को आठ सीटों पर जीत मिली थी. चार निर्दलीय भी तब बिहार विधानसभा पहुंचने में सफल रहे थे.

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2010 में जेडीयू ने जीती थीं 115 सीटें

साल 2010 के विधानसभा चुनाव में जेडीयू और एनडीए के पक्ष में ऐसी हवा चली, कि गठबंधन 200 से ज्यादा सीटें जीतकर सत्ता में लौटा. तब जेडीयू 22.6 फीसदी वोट शेयर के साथ 115 सीटें जीतने में सफल रही थी, जो पार्टी का अब तक का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन भी है. बीजेपी 16.5 फीसदी वोट के साथ 91 सीटें जीतकर दूसरे पर रही थी. आरजेडी को तब 18.8 फीसदी वोट मिले थे, लेकिन पार्टी 22 सीटें ही जीत सकी थी. कांग्रेस 8.4 फीसदी वोट के साथ चार सीटें ही जीत सकी थी. अन्य को 20.5 फीसदी वोट मिले थे और पांच उम्मीदवार जीते थे. छह निर्दलीय भी माननीय बनने में सफल रहे थे.

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