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Haryana Result: भाजपा के सुनील सांगवान चरखी दादरी से जीते, अपने कार्यकाल में राम रहीम को 6 बार दी थी पैरोल

हरियाणा चुनाव के रिजल्ट में चरखी दादरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार सुनील सांगवान ने जीत दर्ज की. सांगवान उस जेल के अधीक्षक थे, जहां डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम बंद था. सुनील सांगवान ने कांग्रेस की मनीषा सांगवान को 1,957 मतों से हराया. उनका नाम 5 सितंबर को भाजपा की 67 उम्मीदवारों की पहली सूची में शामिल था.

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सुनील सांगवान रोहतक की सुनारिया जेल के पूर्व अधीक्षक थे. (फोटो: पीटीआई)
सुनील सांगवान रोहतक की सुनारिया जेल के पूर्व अधीक्षक थे. (फोटो: पीटीआई)

हरियाणा चुनाव के रिजल्ट में चरखी दादरी विधानसभा क्षेत्र में भाजपा उम्मीदवार सुनील सांगवान ने जीत दर्ज की. सांगवान उस जेल के अधीक्षक थे, जहां डेरा प्रमुख गुरमीत राम रहीम बंद था. सुनील सांगवान ने कांग्रेस की मनीषा सांगवान को 1,957 मतों से हराया. उनका नाम 5 सितंबर को भाजपा की 67 उम्मीदवारों की पहली सूची में शामिल था.

सुनील सांगवान रोहतक की सुनारिया जेल के पूर्व अधीक्षक थे, जहां राम रहीम बलात्कार और हत्या के आरोप में बंद था. चुनाव से ठीक पहले वह पद से रिटायर हुए और भाजपा में शामिल हो गए. विशेष रूप से जेल में सांगवान के कार्यकाल के दौरान, गुरमीत राम रहीम को छह बार पैरोल या फरलो दी गई थी.

उनके पिता सतपाल सांगवान कांग्रेस के सदस्य थे. लेकिन जुलाई में उन्होंने कांग्रेस छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया. गुरमीत राम रहीम सिंह हरियाणा चुनाव से कुछ दिन पहले 2 अक्टूबर को रोहतक जेल से बाहर आया. उसकी रिहाई जेल के अंदर उसके कथित अच्छे आचरण के कारण हुई. 

15 बार पैरोल मिली
उल्लेखनीय है कि कैदी के बारे में पैरोल बोर्ड को रिपोर्ट करना और सत्यापित करना जेल अधीक्षक का काम है. कैदी के व्यवहार और अन्य कारकों के आधार पर, जेल अधीक्षक पैरोल आवेदन का समर्थन या विरोध करते हुए सिफारिश कर सकते हैं. डेरा प्रमुख को पिछले सात सालों में 15 बार पैरोल दी गई है और उसने 259 दिन जेल से बाहर बिताए हैं. दिलचस्प बात यह है कि उसको विधानसभा, लोकसभा या पंचायत चुनावों के दौरान पैरोल मिल जाती है.

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हरियाणा व‍िधानसभा चुनाव के परिणामों के साथ ही सारे पूर्वानुमान भी फेल हो गए. सूबे में एक बार फिर भी प्रचंड जीत के साथ बीजेपी की वापसी हुई है, इतिहास भी बना. प्रदेश में लगातार तीसरी बार एक ही पार्टी की सरकार बनने जा रही है. अक्सर ऐसे मौके कम आते हैं, 10 साल तक सत्ता में रहने के बाद क‍िसी भी दल के ल‍िए वापसी काफी मुश्किल होती है.

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