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बिहार का वोटिंग पैटर्न: 60% पार होते ही लालू का दिखा चमत्कार, क्या होगा इस बार?

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीट पर 64.69 फीसदी मतदान हुआ है, जो अब तक के इतिहास में सबसे ज्यादा है. बिहार का वोटिंग पैटर्न देखें तो 60 फीसदी से कम वोटिंग होने पर नीतीश कुमार को लाभ मिलता है तो 60 पार होते ही लालू प्रसाद यादव का चमत्कार दिखता है. ऐसे में इस बार क्या होगा?

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बिहार की सियासी विरासत तेजस्वी यादव के कंधे पर (Photo-PTI)
बिहार की सियासी विरासत तेजस्वी यादव के कंधे पर (Photo-PTI)

बिहार विधानसभा चुनाव के पहले चरण की 121 सीटों पर मतदान हो चुका है. पहले चरण में 18 जिलों की 121 सीटों पर 64.69 फ़ीसदी मतदान रहा, जो अभी तक की सबसे ज़्यादा है. 2020 की तुलना में करीब साढ़े आठ फीसदी ज़्यादा वोटिंग इस बार हुई है, जिसके सियासी नफ़ा और नुकसान का आकलन पार्टियां अपने-अपने लिहाज़ से कर रही हैं.

सीआईआर (CIR) प्रक्रिया के बाद पहली बार बिहार में चुनाव हो रहे हैं. इस बार दो चरण में चुनाव है, जिसमें पहले चरण की 121 सीटों पर वोटिंग हो चुकी है और अब दूसरे चरण की 122 सीट पर 11 नवंबर को मतदान है.

बिहार के वोटिंग पैटर्न को देखें तो 60 फीसदी से कम मतदान नीतीश कुमार के लिए सियासी तौर पर मुफीद साबित होता है तो 60 फीसदी के पार होते ही लालू यादव का सियासी चमत्कार देखा जा सकता है.

बिहार के पहले चरण का वोटिंग वैटर्न क्या है? 

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बिहार के पहले चरण के मतदान के बाद वोटिंग पैटर्न पर सियासी चर्चा तेज़ है. इससे पहले राज्य में सबसे अधिक मतदान साल 2000 के चुनाव में सामने आया था. तब पूरे बिहार में सर्वाधिक 62.57 प्रतिशत वोटिंग हुई थी जबकि इस बार करीब 64.69 प्रतिशत वोटिंग हुई. पिछले 35 सालों के वोटिंग पैटर्न से बिहार के सियासी गेम को समझा जा सकता है.

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नीतीश के लिए 60% से कम वोटिंग मुफ़ीद

बिहार की सियासत पिछले दो दशक से नीतीश कुमार के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. एक तरह से नीतीश कुमार सूबे की सत्ता के धुरी बने हुए हैं, जिसके सहारे आरजेडी और बीजेपी सत्ता का स्वाद चखती रही हैं। हालांकि, नीतीश कुमार की सत्ता में वापसी जितनी बार हुई, बिहार में 60 फ़ीसदी से कम मतदान रहा है।

अक्तूबर 2005 में हुए बिहार चुनाव में कुल 45.85 फ़ीसदी वोटिंग हुई थी। नीतीश कुमार के अगुवाई में एनडीए ने बिहार में पहली बार पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई थी। इसके बाद 2010 में 52.73 फ़ीसदी वोटिंग के साथ नीतीश के नेतृत्व में एनडीए को रिकॉर्ड बहुमत मिला था।

पाँच साल बाद 2015 में बिहार चुनाव में 56.91 फ़ीसदी वोटिंग हुई तो नीतीश के नेतृत्व को महागठबंधन ने रिकॉर्ड बहुमत हासिल किया था. इसके बाद 2020 में हुए चुनाव में 57.29 फ़ीसदी वोटिंग हुई तो नीतीश कुमार के नेतृत्व में एनडीए ने पूर्ण बहुमत के साथ सरकार बनाई, लेकिन महागठबंधन ने कड़ी चुनौती दी थी.

60% पर होते ही लालू का चमत्कार

बिहार की सत्ता से आरजेडी भले ही 20 साल से सत्ता का वनवास झेल रही हो, लेकिन लालू प्रसाद यादव को सियासी लाभ तभी मिला है, जब बिहार में 60 फ़ीसदी से ज़्यादा वोटिंग हुई है। लालू यादव के नेतृत्व वाली आरजेडी जब भी सत्ता में आई, बिहार में 60 फ़ीसदी से ज़्यादा वोटिंग रही. लालू प्रसाद यादव पहली बार 1990 में मुख्यमंत्री बने थे, उस समय बिहार में 62.04 फ़ीसदी मतदान हुआ था.

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1990 में 62.04 फ़ीसदी मतदान हुआ था जबकि उससे पहले 1985 में 56.3 फ़ीसदी मतदान रहा. इस तरह 5.8 फ़ीसदी ज़्यादा वोटिंग ने बिहार की सत्ता परिवर्तित कर दी थी.  इसके बाद 1995 में 61.79 फ़ीसदी वोटिंग हुई तो लालू यादव दोबारा सत्ता में वापसी किए.

 2000 में विधानसभा चुनाव हुए, कुल 62.57 फ़ीसदी मतदान रहा आरजेडी ने सत्ता में वापसी की इबारत लिखी, लेकिन जैसे ही वोटिंग घटी, लालू परिवार के हाथों से सत्ता निकल गई.  फरवरी 2005 में वोटिंग 46 फीसदी के करीब हुई तो सियासी गेम बदल गया. इसके बाद से आरजेडी की अपने दम पर सरकार दोबारा नहीं आ सकी. 

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