उत्तर पूर्वी दिल्ली के मुस्तफाबाद से असदुद्दीन ओवैसी अपनी पार्टी AIMIM की तरफ से ताहिर हुसैन को उम्मीदवार बनाया है. ताहिर हुसैन 2020 में हुए नॉर्थ ईस्ट दिल्ली के दंगों के मुख्य आरोपियों में से एक हैं. ताहिर हुसैन को चुनाव मैदान में उतारने का फैसला चौंकाने वाला तो है ही कई सारे समीकरणों में फेरबदल करने वाला भी नजर आता है. दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है और पिछले दो विधानसभा चुनावों में मुस्लिम अल्पसंख्यक वोट जमकर केजरीवाल के साथ गया है, लेकिन अब समीकरण बदले-बदले नजर आ रहे हैं.
2020 का नॉर्थ ईस्ट का दंगा दिल्ली विधानसभा चुनावों के ठीक बाद हुआ था. बाकी लोकसभा क्षेत्र की तुलना में बीजेपी का प्रदर्शन 2020 विधानसभा चुनावों में अगर किसी एक लोकसभा क्षेत्र में सबसे अच्छा रहा था तो वह नॉर्थ ईस्ट दिल्ली ही था. इसकी वजह थी, जबरदस्त पोलराइजेशन की राजनीति. उसके ठीक बाद सीलमपुर, मुस्तफाबाद, यमुना विहार, घोंडा जैसे इलाकों में दंगाइयों ने जमकर उत्पात मचाया था.
AAP ने ताहिर को दिखाया था बाहर का रास्ता
अरविंद केजरीवाल की सरकार तीसरी बार बनी ही थी और मुस्लिम इलाकों में उन्हें मिले जबरदस्त समर्थन की वजह से अल्पसंख्यकों में यह उम्मीद थी कि केजरीवाल दंगों को रोकने में एक्टिव भूमिका निभाएंगे. लेकिन इन इलाकों में ऐसा आरोप लगाया गया कि तत्कालीन मुख्यमंत्री काफी समय तक निष्क्रिय रहे और इस वजह से दंगों की आग फैलती रही. दंगों में ताहिर हुसैन, जो उस समय आम आदमी पार्टी के पार्षद थे उनका भी नाम मुख्य आरोपी के तौर पर आया. अरविंद केजरीवाल ने उन्हें तत्काल पार्टी से बाहर निकाल दिया और ताहिर हुसैन जेल के अंदर चले गए.
ओवैसी ने क्यों बाहर निकाला ताहिर का जिन्न?
दरअसल, मुस्तफाबाद दिल्ली के मुस्लिम बहुल इलाकों में एक है और मुस्लिम आबादी के हिसाब से सबसे ऊपर आने वाली विधानसभाओं में शुमार है. यहां लगभग 40 फीसदी आबादी मुस्लिम समुदाय की है. इसलिए कई बार मुस्लिम वोटर निर्णायक भी साबित होते हैं.
40% मुस्लिम वोटबैंक पर AAP की नजर
अरविंद केजरीवाल ने 9 दिसंबर को ही अपने पुराने विधायक को बदलकर इस सीट से आम आदमी पार्टी में खास माने जाने वाले आदिल अहमद खान को टिकट दिया. केजरीवाल की नजर मुस्लिम बहुल 40% वोटबैंक पर है. कांग्रेस ने पिछली बार पूर्व विधायक रहे हसन अहमद के बेटे अली मेहंदी को चुनाव लड़वाया था. इस बार भी उम्मीद है कि अली मेहंदी को ही कांग्रेस फिर से टिकट देगी. इसका मतलब यह हुआ कि आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और AIMIM तीनों के उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से ही आएंगे.
ओवैसी ने बढ़ाई केजरीवाल की मुश्किलें
ताहिर हुसैन के मैदान में उतरने से मामला जबरदस्त तरीके से पोलराइज भी होगा और ऐसा माना जा रहा है कि तीन मुस्लिम उम्मीदवारों की वजह से 60% हिंदू आबादी वाले मुस्तफाबाद में बीजेपी का पलड़ा भारी हो सकता है. पहले भी 2015 में जब बीजेपी महज 3 सीटें जीती थी, तब मुस्तफाबाद सीट बीजेपी के जगदीश प्रधान ने जीती थी. यानी इतिहास उठाकर देखें तो ओवैसी ने सबसे ज्यादा मुश्किल केजरीवाल की बढ़ा दी है.
क्या है एआइएमआइएम का आगे का प्लान?
ओवैसी दिल्ली में अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस दोनों का खेल बिगड़ने के लिए इस बार करीब 70 में से 2 दर्जन सीटों पर अपने उम्मीदवार उतार सकते हैं. इनमें लगभग 6 सीटें तो वह हैं, जहां पर मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है. इसके अलावा दलित और कुछ हिंदू बहुल सीटों पर भी ओवैसी अपने उम्मीदवारों को उतार कर बाकियों का गणित उल्टा-पुल्टा करना चाहते हैं. पार्टी के सूत्र बताते हैं कि इस बार सिर्फ मुस्लिम उम्मीदवारों की पहचान पार्टी ने नहीं की है. बल्कि कई सारे सुरक्षित सीटों पर दलित और ऐसी सीटों पर जहां पर ठीक-ठाक मुस्लिम आबादी है, वहां से कुछ हिंदू चेहरों पर भी ओवैसी दांव खेल सकते हैं.