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जानिए क्या है DFG (ड्यूश फॉरशुंग्सजेमेंशैफ्ट)?

रिसर्च के लिए पैसा देने वाले दुनिया के सबसे बड़े स्वतंत्र संस्थानों में से एक DFG भारतीय स्कॉलर्स को इस काम में मदद की पेशकश कर रहा है. बता रही हैं सोनाली आचार्जी

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जर्मन रिसर्च फाउंडेशन ड्यूश फॉरशुंग्सजेमेंशैफ्ट (DFG) की स्थापना वैसे तो मूल रूप से 1920 में हुई थी लेकिन दूसरे विश्व युद्ध के बाद 1951 में इस फाउंडेशन को फिर से स्थापित किया गया. इसके बाद से DFG लगातार बढ़ता चला गया. आज इसका सालाना बजट 2.9 अरब यूरो के लगभग है.

यह साइंस के क्षेत्र में रिसर्च करने वाला जर्मनी का सबसे महत्वपूर्ण संस्थान होने के साथ-साथ रिसर्च के लिए पैसा देने वाले दुनिया के सबसे बड़े स्वतंत्र संस्थानों में से एक है. इसका मकसद जिज्ञासा पर आधारित फंडामेंटल रिसर्च के लिए मदद देना है, जो नई कड़ियों को जोड़ सकता है, एकदम नए तरह के क्षेत्रों के दरवाजे खोल सकता है या फिर नई खोज के लिए जमीन भी तैयार कर सकता है. इसके लिए यह रिसर्च वेसल्स और डाटा सिस्टम्स जैसी बड़ी रिसर्च सुविधाएं भी मुहैया करता है. डीएफजी का एक और अहम काम एकेडमिक और साइंटिफिक विषयों पर राजनैतिक सलाह देना है.

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर DFG जर्मनी के रिसर्चर्स की कम्युनिटी का प्रतिनिधित्व भी करता है. ऐसे अंतरराष्ट्रीय रिसर्च प्रोग्राम जिनमें अंतरराष्ट्रीय महत्व के सवालों पर ध्यान देने के लिए देशों के बीच सहयोग की जरूरत होती है, उनमें DFG की महत्वपूर्ण भूमिका है. DFG भारत में जर्मन हाउस फॉर रिसर्च ऐंड इनोवेशन (डीडब्ल्यूआइएच, नई दिल्ली) के कंसोर्शियम का हेड है. इस कंसोर्शियम की स्थापना दुनियाभर के देशों के साथ एकेडेमिक सहयोग को बढ़ाने की जर्मन सरकार की पहल पर की गई थी. एकेडमिक और साइंटिफिक आजादी के हिमायती के तौर पर DFG के फंडिंग पोर्टफोलियो और इसके काम-काज ने उसे साइंस और ह्यूमैनिटीज कम्युनिटी के लिए राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण पहचान दिलाई है.

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भारतीय-जर्मन रिसर्च सहयोग बढ़ाने के लिए DFG ने पिछले कुछ वर्षों में किस तरह के कदम उठाए हैं?

DFG रिसर्च के लिए पैसा देने वाला जर्मनी का सबसे बड़ा स्वतंत्र संस्थान है. इसका प्रमुख काम यूनिवर्सिटीज, रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के एकेडमिक प्रोजेक्ट्स और साइंस या ह्यूमैनिटीज के क्षेत्र में चल रहे रिसर्च संबंधी सभी कामों को वित्तीय मदद देना है. एकेडमिक सहयोग राष्ट्रीय सीमाओं में बंधकर नहीं रह सकता इसलिए DFG ने अपने ऑफिस कई देशों में खोल रखे हैं.

DFG ने नई दिल्ली में अपना ऑफिस 2006 में खोला था और आज यह DFG और इसके भारतीय साझेदारों के बीच साझा एकेडमिक गतिविधियों के प्रमुख केंद्र के तौर पर काम करता है. बीते वर्षों में साझेदारी में कई काम किए गए हैं. इस तरह जर्मनी और भारत ने संयुक्त रूप से पैसा उपलब्ध करवाया जिसकी मदद से ढेर सारे संयुक्त रिसर्च प्रोजेक्ट्स पर काम आगे बढ़ा है. नए प्रोजेक्ट्स को शुरू करने के लिए अब दोनों देश नियमित तौर पर धन उपलब्ध करवाते हैं. DFG और DST मिलकर हर साल जर्मनी के लिंडाउ में होने वाली नोबल लॉरिएट मीटिंग में युवा भारतीय रिसर्चर्स को भागीदारी करने का मौका देते हैं. इस मीटिंग के बाद उन्हें जर्मनी के आला रिसर्च इंस्टीट्यूट्स के टूर पर ले जाया जाता है, जो हफ्तेभर तक चलता है. यह टूर भारत और जर्मनी की अगली पीढ़ी के वैज्ञानिकों के बीच नए साइंटिफिक संपर्क बनाने में खासा मददगार साबित होता है.

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DFG के फंडिंग प्रोग्राम्स से भारतीय वैज्ञानिकों को किस तरह से फायदा मिलता है?

डीएफजी के जरिए भारतीय वैज्ञानिकों को कई तरह से फायदे मिल सकते हैं और मिलते हैं. इसके सभी प्रोग्राम्स में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का विकल्प खुला होता है. भारतीय साझेदारों के साथ समझौते करने पर हम उन प्रोजेक्ट्स में साझा रूप से पैसा लगा सकते हैं जिनमें भारतीय एकेडमिक क्षेत्र की महत्वपूर्ण भूमिका हो. जर्मन साइंटिस्ट मोबेलिटी फंडिंग के लिए एप्लाई कर सकते हैं और भारत में अपने भारतीय सहयोगियों के साथ मिलकर साझा वर्कशॉप आयोजित कर सकते हैं.

DFG वेबसाइट (www.dfg.de) पर मौजूद डीएफजी डाटाबेस जीईपीआरआइएस पर उन सभी प्रोजेक्ट्स की जानकारी उपलब्ध है जिनमें हमारी ओर से पैसा लगाया जा रहा है. इस तरह के प्रोजेक्ट्स में कई खाली जगहें हैं, इनमें दिलचस्पी रखने वाले स्कॉलर यहां अपने लिए माकूल विकल्प तलाश सकते हैं. चूंकि DFG जर्मनी के निवासियों के रिसर्च प्रोजेक्ट्स के लिए भी फंडिंग करता है इसलिए कोई भी भारतीय स्कॉलर अगर जर्मनी में रहकर रिसर्च करना चाहता है या उसने अपनी एकेडमिक गतिविधियों का केंद्र किसी जर्मन यूनिवर्सिटी को बना रखा है, ऐसे लोग भी इन प्रोजेक्ट्स के लिए अप्लाइ कर सकते हैं.

DFG से लाभ पाने के लिए भारतीय वैज्ञानिकों को क्या कदम उठाने चाहिए?

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DFG की सेवाओं का फायदा उठाने का सबसे अच्छा तरीका है सबसे पहले इसके बारे में सारी जानकारी लेना जो नई दिल्ली स्थित DFG के ऑफिस से मिल सकती है. इस ऑफिस को स्थापित करने का उद्देश्य ही है भारतीय स्कॉलर्स को उन विभिन्न परिस्थितियों से जुड़ी जानकारियां देना, जिन्हें ध्यान में रखना उनके लिए खास तौर से जरूरी हो. इन जानकारियों को पाने के बाद उनके लिए जरूरी होगा जर्मनी में एकेडमिक साझेदारों की तलाश करना जिससे कि भविष्य में आपसी सहयोग से रिसर्च की योजना बनाई जा सके. साझा रिसर्च के अगर बहुत सारे विकल्प मौजूद हों तो शुरुआत छोटे प्रोजेक्ट्स से करें जो भविष्य की बड़ी सहयोगी योजनाओं में तब्दील हो सके और बड़े साझा प्रोजेक्ट समूह (जैसे कोलेबोरेटिव रिसर्च सेंटर्स) स्थापित करने के विकल्पों के साथ समाप्त हो, जिसे 12 साल तक आर्थिक मदद दी जा सकती है.

भारतीय साइंटिस्टDFG के साथ किस तरह संपर्क कर सकते हैं?

इसके दो विकल्प हैं:
आप DFG वेबसाइट पर जाकर जानकारी पा सकते हैं या फिर नई दिल्ली स्थित DFG के ऑफिस से संपर्क कर सकते हैं. भारतीय स्कॉलर्स की मदद करने में और उनकी जिज्ञासाओं को शांत करने में उन्हें खुशी होगी.

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