दिल्ली सरकार द्वारा प्रस्तावित Delhi School Education (Transparency in Fixation and Regulation of Fees) Bill, 2025 के ड्राफ्ट बिल को आज मंजूरी मिल गई है. कहा जा रहा है कि इस बिल के पारित होने के बाद सभी निजी स्कूलों में मनमानी फीस वृद्धि पर कंट्रोल लगाया जा सकेगा. आइए जानते हैं इस बिल की खास बातें...
दिल्ली के निजी स्कूलों में फीस बढ़ोत्तरी को लेकर लगातार सवाल उठते रहते हैं. हाल ही में अभिभावकों द्वारा लगातार फीस बढ़ने की शिकायतें और विपक्ष द्वारा शिक्षा के कमर्शियल होने को लेकर सवाल उठे थे. स्कूलों की मनमानी पर लगाम लगाने को लेकर दिल्ली सरकार ने अपनी इच्छाशक्ति दिखाए हुए स्कूल फीस रेगुलेशन एक्ट लाने की तैयारी की है. अभी यह बिल वर्तमान में मसौदा चरण में है और जल्द ही विधानसभा में पेश किया जाएगा. फिलहाल ड्राफ्ट बिल पास हो चुका है.
आइए जानते हैं इस बिल में क्या खासियतें हैं
फीस बढ़ाने से पहले इजाजत लेनी होगी: निजी स्कूलों को किसी भी प्रकार की फीस वृद्धि से पहले शिक्षा निदेशालय (DoE) से अनुमति लेनी होगी. हालांकि ये अनुमति पहले भी लेनी होती थी, लेकिन पहले ये नियम सिर्फ 355 उन स्कूलों पर लागू होता था जो सरकारी जमीन पर बने हैं. अब इस एक्ट से दिल्ली के सभी 1677 से ज्यादा ऐसे प्राइवेट स्कूलों को भी कवर किया जाएगा जो अनधिकृत या लीज पर ली जमीन पर बने हैं और अब तक इस निगरानी से बाहर थे.
पहले नियम थे, अब कानून बनने की तैयारी
पहले DoE की अनुमति की बात अधिसूचना या गाइडलाइंस के तौर पर थी जिसका उल्लंघन करने पर कार्रवाई सीमित थी. अब इसे कानूनी रूप देने के लिए विधेयक लाया गया है यानी अब उल्लंघन पर दंड, मान्यता रद्द और प्रबंधन जब्त जैसी सख्त कार्रवाई भी की जा सकेगी.
फीस कितनी हो और कैसे बढ़े, इसका एक प्रोसेस बनेगा
स्कूल फीस कैसे तय हो, इसमें स्कूल कितना खर्च दिखा सकता है, मुनाफा कितना हो सकता है. अब इसके लिए स्पष्ट नियम बनाए जाएंगे. स्कूलों को फीस बढ़ाने के लिए आवेदन करते समय अपने वित्तीय रिकॉर्ड्स का ऑडिट कराना जरूरी होगा. यह ऑडिट CAG द्वारा अनुमोदित ऑडिटर्स से कराया जाएगा. सबसे जरूरी बात यह है कि अब जिला मजिस्ट्रेट की अध्यक्षता में फीस निगरानी समिति बनाई जाएगी जो स्कूल के ऑडिट रिपोर्ट, फीस स्ट्रक्चर और शिकायतों की जांच करेगी.
पहले से कठोर होगी मनमानी पर दंड की प्रक्रिया
इस बिल के कानून बनने के बाद स्कूलों को मनमानी करने पर दंड की प्रक्रिया पहले से अलग होगी. उदाहरण के लिए पहले ज्यादातर मामलों में सिर्फ चेतावनी देकर या मामूली जुर्माना लगाकर छोड़ दिया जाता था जिसकी सीमित कानूनी वैधता थी. लेकिन अब नये कानून के तहत ₹1 लाख से ₹10 लाख तक जुर्माना तय किया गया है, जो कि अपराध की गंभीरता के हिसाब से न्यायिक रूप से वसूला जा सकेगा.
मान्यता रद्द होगी
देखा जाए तो पहले भी यह प्रावधान मौजूद था, लेकिन सिर्फ बहुत गंभीर मामलों में उपयोग होता था. यही नहीं ये एक लंबी प्रक्रिया के बाद ही हो पाता था. अब बिल में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि दिशानिर्देशों की बार-बार अवहेलना करने पर मान्यता रद्द की जा सकती है और इसकी प्रक्रिया को तेज और पारदर्शी बनाया जाएगा. बाकी ये तो वक्त बताएगा कि इस कानून का किस तरह पालन कराया जाता है.
दूसरी बात है पहले प्रबंधन का अधिग्रहण करने का भी सरकार के अधिकार क्षेत्र में आता था, इस बिल में भी इसका प्रावधान किया गया है. सच्चाई यह थी कि बहुत कम मामलों में ही इसका इस्तेमाल हुआ, वजह ये थी कि अधिग्रहण की कानूनी वैधता अस्पष्ट थी. लेकिन नये कानून में इस प्रावधान को बिल में ठोस रूप में दिया गया है ताकि लगातार उल्लंघन करने वाले स्कूलों का संचालन सरकार अपने हाथ में ले सके. यानी अब ये सिर्फ कागज़ी नहीं, बल्कि प्रैक्टिकल इम्प्लिमेंटेशन की गुंजाइश बनी है.
शो-कॉज नोटिस को भी प्रभावी बना रही सरकार
पहले शो-कॉज नोटिस देना शिक्षा निदेशालय की आम प्रक्रिया थी, लेकिन स्कूल अक्सर इसे नजरअंदाज कर देते थे. अब इसे कानून के तहत लाया जा रहा है ताकि नोटिस के साथ कार्रवाई के अगले स्टेप्स (जैसे ऑडिट, जुर्माना, मान्यता रद्द) भी जोड़ दिया जाए.
मेंटल टॉर्चर या भेदभाव पर भी मिलेगी सजा
अब तक जो नियम थे, उसमें फीस न देने वाले बच्चों को क्लास से बाहर बैठाने जैसे मामलों में स्कूल पर कड़ी कार्रवाई नहीं होती थी. लेकिन अब यह व्यवहार कानूनन अपराध माना जाएगा और ऐसे मामलों में मानवाधिकार उल्लंघन के तहत कोर्ट में केस चल सकता है. यदि किसी स्कूल के खिलाफ ऐसी शिकायत मिलती है, तो सरकार उस पर सख्त कार्रवाई कर सकेगी.