देश में एक तरफ दलित समाज को लेकर लोगों की सोच बदल रही है. वहीं, दूसरी तरफ अभी भी ऐसी कई मामले सामने आते हैं, जहां अभी भी लोगों की सोच नहीं बदली है. सदियों तक दलित समाज के लोगों को शिक्षा, मंदिरों, पानी के स्रोतों और सार्वजनिक स्थानों से दूर रखा गया. भले ही अब कानून ने छुआछूत को मानने वाले को अपराध की श्रेणी में रखा है, लेकिन आज भी कई जगहों पर लोगों के व्यवहार में यह भेदभाव कई रूपों में देखने को मिलता है. इससे जुड़ा एक मामला कर्नाटक के चामराजनगर नगर में सामने आया है.
यहां कर्नाटक के चमारगंज नगर के एक सरकारी स्कूल में छात्रों और उनके अभिभावकों द्वारा भेदभाव करने का मामला सामने आया है. यहां कुल 21 छात्रों ने सरकारी स्कूल से सिर्फ इसलिए अपना दाखिला वापस ले लिया है क्योंकि यहां भोजन (Mid Day Meal) बनाने के लिए एक दलित महिला को नियुक्त किया गया था. जब शैक्षणिक वर्ष 2024-25 के लिए दाखिला हुए थे तब कुल 22 छात्रों ने अपना एडमिशन सरकारी स्कूल में लिया था, लेकिन मिड डे मील में दलित महिला द्वारा खाना पकाने की बात पता लगी तो छात्रों के अभिभावकों ने फैसला लिया कि वे अपने बच्चों को स्कूल से निकाल लेंगे. अब इस स्कूल में केवल एक छात्र बचा है.
2018 से 2022 तक 35% दलित भेदभाव के मामले
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आंकड़ों की मानें तो दलितों के साथ अत्याचार के 150 से ज्यादा मामले अब भी रोजाना दर्ज किए जाते हैं. हैरान करने वाली बातये है कि एनसीआरबी की रिपोर्ट बताती है कि 2018 से 2022 के बीच दलित अत्याचार के मामले 35% तक बढ़ गए हैं. आंकड़ों के मुताबिक, 2018 के बाद से हर साल मामले लगातार बढ़े हैं.
2018 में दलितों के खिलाफ अपराध के 42,793 मामले दर्ज किए गए थे. जबकि, 2022 में 57,582 मामले दर्ज हुए थे. वहीं, 2021 में 50,900 मामले सामने आए थे. एनसीआरबी के मुताबिक, दलितों पर अत्याचार के सबसे ज्यादा मामले उत्तर प्रदेश में सामने आते हैं.