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ऐसे मिलते हैं सरकारी टेंडर... एक बार मिल जाए तो मोटी कमाई! शुरू में कितना पैसा चाहिए?

बिहार के अनुभवी कॉन्ट्रैक्टर सम्राट तिवारी ने बताया कि सरकारी टेंडर कैसे मिलता है, इसके लिए जरूरी डॉक्यूमेंट, पेमेंट का सिस्टम और काम की प्रक्रिया क्या होती है.

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सरकारी टेंडर की जानकारी ऑनलाइन वेबसाइट, अखबार या संबंधित सरकारी दफ्तर से मिलती है. आवेदन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकता है. ( Photo: ITG)
सरकारी टेंडर की जानकारी ऑनलाइन वेबसाइट, अखबार या संबंधित सरकारी दफ्तर से मिलती है. आवेदन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीकों से किया जा सकता है. ( Photo: ITG)

सरकारी टेंडर लेकर काम करना कई लोगों का सपना होता है, लेकिन इसमें सही जानकारी, अनुभव और फंड होना बहुत जरूरी है. आज हम बातचीत कर रहे हैं बिहार के अनुभवी कॉन्ट्रैक्टर सम्राट तिवारी से, जिन्होंने अपनी मेहनत और अनुभव से सरकारी टेंडर के बारे में विस्तार से बताया. उन्होंने बताया कि टेंडर कैसे मिलता है, पेमेंट सिस्टम कैसा होता है, काम की प्रक्रिया क्या होती है और नए कॉन्ट्रैक्टरों को किन चुनौतियों का सामना करना पड़ता है. साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि कि इस लाइन में आने के लिए पैसा और अनुमान के हिसाब से गुणवत्ता और मात्रा का ध्यान रखना होता है. तो चलिए जानते हैं कैसे कर सकते हैं सरकारी टेंडर के लिए आवेदन.

टेंडर की जानकारी और आवेदन प्रक्रिया
बिहार के सम्राट तिवारी बताते हैं कि सरकारी टेंडर की जानकारी ऑनलाइन वेबसाइट, अखबार या संबंधित सरकारी ऑफिस से मिलती है. टेंडर में आवेदन ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरह से किया जा सकता है. इसके लिए जरूरी डॉक्यूमेंट्स में वैध रजिस्ट्रेशन सर्टिफिकेट, पैन, आधार, एफिडेविट, GST आदि शामिल होते हैं, जो विभाग के हिसाब से अलग-अलग हो सकते हैं.

कौन सा विभाग टेंडर निकालता है
सरकारी टेंडर बिहार में कई विभाग निकालते हैं, जैसे BCD, RWD, RCD, BUIDCO, BELTRON, BIADA. ये विभाग अपने टेंडर की जानकारी ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों तरीके से देते हैं. टेंडर में हिस्सा लेने वाले लोगों को समय-समय पर जरूरी डॉक्यूमेंट जमा करने होते हैं. टेंडर अलग-अलग स्तरों पर होते हैं – सेंट्रल, स्टेट, रीजनल, रेलवे. जो व्यक्ति या कंपनी सबसे कम कोटेशन देती है, उस एजेंसी को चुन लिया जाता है और उसे टेंडर मिलता है.

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क्या होता है कोटेशन
BOQ (Bill of Quantities) एक डिटेल्ड लिस्ट होती है जिसमें काम का पूरी डिटेल दी जाती है. इसमें हर आइटम का यूनिट रेट और हर एक डिटेल लिखी होती है. Contractor BOQ देखकर अपनी कॉस्टिंग और प्रॉफिट मार्जिन डिसाइड करता है. फिर वह Rate Quotation देता है.

Below BOQ → यानी BOQ से कम कीमत में काम करने को तैयार.
At BOQ → BOQ के हिसाब से.
Above BOQ → BOQ से ज्यादा (rarely, approval के बाद).

जैसे-BOQ में Total Cost = ₹45,000
Contractor A: ₹44,000
Contractor B: ₹43,500
Contractor C: ₹44,500

पैसे और पेमेंट का सिस्टम
टेंडर मिलने के बाद पैसा आमतौर पर रनिंग बिल्स और फाइनल सेटलमेंट के हिसाब से मिलता है. शुरुआती एडवांस नहीं मिलता. पेमेंट विभाग और प्रोजेक्ट के अनुसार कुछ दिनों में भी आ सकता है या कभी-कभी इसमें एक साल तक का समय भी लग सकता है. जब कॉन्ट्रैक्टर को टेंडर मिल जाता है, तो पैसे सीधे एडवांस के रूप में नहीं मिलते. पैसा काम पूरा होने के हिस्सों (रनिंग बिल्स) और अंतिम सेटलमेंट के हिसाब से मिलता है. पेमेंट का समय विभाग और प्रोजेक्ट पर निर्भर करता है.

सिक्योरिटी और नियम
टेंडर लेने के लिए कॉन्ट्रैक्टर को एग्रीमेंट करना पड़ता है, फिर JE साइट की मार्किंग और काम समझाते हैं. अगर काम समय पर पूरा नहीं होता तो बचे हुए काम के हिसाब से पेनल्टी लगती है. अगर कॉन्ट्रैक्टर काम तय समय में पूरा नहीं करता, तो बाकी बचे काम के हिसाब से उसे पेनल्टी यानी जुर्माना देना पड़ता है. यह इसलिए होता है ताकि काम समय पर और सही तरीके से पूरा हो.

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आसान भाषा में समझें तो एक सरकारी टेंडर शुरू करने के लिए कितने पैसे चाहिए, यह कई चीजों पर निर्भर करता है:

1. सिक्योरिटी डिपॉजिट
हर टेंडर में सिक्योरिटी जमा करना पड़ता है. यह टेंडर की कुल लागत का 2% से 10% तक हो सकता है. उदाहरण- टेंडर की अनुमानित लागत ₹10 लाख है तो सिक्योरिटी डिपॉजिट ₹20,000–₹1,00,000 तक हो सकता है.

2. प्रारंभिक खर्च (Initial Cost)
डॉक्यूमेंट तैयार करना, रजिस्ट्रेशन, GST, PAN, बैंक चार्ज, वेरिफिकेशन. इसमें ₹5,000–₹20,000 तक का खर्च आता है.अगर खुद मटेरियल खरीदना है, तो पहले कुछ स्टॉक का पैसा चाहिए.

3. काम शुरू करने के लिए फंड (Working Capital)
टेंडर मिलने के बाद पैसा पूरा एडवांस में नहीं मिलता, रनिंग बिल और पार्ट- पेमेंट पर काम करना पड़ता है. इसलिए कम से कम 20–30% प्रोजेक्ट लागत काम शुरू करने के लिए खुद के पास होना चाहिए. उदाहरण के लिए ₹10 लाख के प्रोजेक्ट के लिए कम से कम ₹2–3 लाख फंड चाहिए, ताकि मजदूर और सामग्री समय पर मिल सके.कुल मिलाकर छोटे टेंडर पर लगभग ₹50,000–₹2 लाख से शुरुआत कर सकते हैं.

10% तक लग सकता है जुर्माना
अग्रीमेंट के समय सुरक्षा जमा और अतिरिक्त प्रदर्शन गारंटी डिमांड ड्राफ्ट के रूप में जमा करना होता है. कार्य को समय अवधि के अंदर खत्म करना होता है, समय ज्यादा लगने पर जुर्माना नहीं लगता है, ऐसे में परियोजना लागत का 10% तक हो सकता है. काम में एस्टीमेट से डेविएशन पाए जाने पर सिक्योरिटी डिपॉजिट जब्त किया जाता है और कंपनी को भविष्य के टेंडर से ब्लैक लिस्ट कर दिया जाता है. 

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काम की प्रक्रिया और जिम्मेदारियां
टेंडर मिलने के बाद साइट पर काम शुरू करने के लिए, सरकारी अधिकारी आते हैं और काम की क्वालिटी की सख्ती से जांच करते हैं. मटेरियल के मामले में दोनों तरह के टेंडर होते हैं – कुछ में सरकार सामग्री देती है, कुछ में कॉन्ट्रैक्टर खुद खरीदता है.

जब कॉन्ट्रैक्टर को टेंडर मिल जाता है और साइट पर काम शुरू करना होता है, तो सरकारी अधिकारी साइट पर जाकर काम की गुणवत्ता की सख्ती से जांच करते हैं. इसका मतलब है कि काम समय पर और सही तरीके से हो रहा है या नहीं, यह सुनिश्चित किया जाता है. काम में अनुमान से कमी जाने पर सिक्योरिटी डिपॉजिट जब्त किया जाता है और कंपनी को ब्लैक लिस्ट किया जाता है भविष्य के टेंडर से

मटेरियल (ईंट, सीमेंट, लोहे आदि) के मामले में दो तरह के टेंडर होते हैं:
सरकार द्वारा मटेरियल उपलब्ध कराया जाता है – यानी काम के लिए जरूरी सामान सरकार देती है.
कॉन्ट्रैक्टर खुद मटेरियल खरीदता है – ऐसे टेंडर में कॉन्ट्रैक्टर को सभी चीजें खुद खरीदनी होती हैं.
इससे यह तय होता है कि कॉन्ट्रैक्टर को कौन-कौन सी जिम्मेदारियां पूरी करनी हैं और काम कैसे करना है.

नए लोगों के लिए सलाह
कॉन्ट्रैक्टर सम्राट तिवारी बताते हैं कि नए कॉन्ट्रैक्टरों के लिए शुरुआत में सबसे बड़ी दिक्कत फंड की कमी, अनुभव और पेपरवर्क होती है. उनका कहना है कि सही टेंडर वही मिलता है, जिसका क्वोटेशन सबसे कम और काम भरोसेमंद हो और सबसे अहम बात – “भाई, पैसा हो तभी इस लाइन में आओ. यह पैसा वाला खेल है, पैसा फंसता है और ज्यादा पैसा होने पर ही दूसरे साइट्स को मैनेज कर पाओगे, नहीं तो फिर कोई और काम करें.”

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