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घर-घर अखबार पहुंचाने वाले भैया को एक पेपर पर कितने रुपये मिलते हैं?

न्यूजपेपर बांटने वाले हॉकर अरविंद कुमार कहते हैं कि अगर किसी अखबार की कीमत ₹5 से ₹8 रुपये है तो हॉकर को मिलने वाला हिस्सा  ₹1.5 से ₹2.5 प्रति अखबार होगा. यानि हर अखबार से हॉकर की बचत ₹1 से ₹2 प्रति कॉपी होती है.

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न्यूजपेपर बांटने वाले हॉकर अरविंद कुमार कहते हैं कि अगर किसी अखबार की कीमत ₹5 से ₹8 रुपये है तो हॉकर को मिलने वाला हिस्सा ₹1.5 से ₹2.5 प्रति अखबार होगा.  (Photo: AI Generated)
न्यूजपेपर बांटने वाले हॉकर अरविंद कुमार कहते हैं कि अगर किसी अखबार की कीमत ₹5 से ₹8 रुपये है तो हॉकर को मिलने वाला हिस्सा ₹1.5 से ₹2.5 प्रति अखबार होगा. (Photo: AI Generated)

एक वक्त था जब सुबह की शुरुआत अखबार की खड़खड़ाहट और हॉकर्स की आवाज से होती थी...हर गली-मोहल्ले में सुबह-सुबह साइकिल पर अखबारों का गट्ठर लिए दौड़ते हॉकर्स, हर घर में देश-दुनिया की हर अपडेट पहुंचाते थे. हर घर में बड़े-बुजुर्गों की सुबह की शुरुआत चाय और अखबार से होती थी. बच्चे कार्टून देखते, बुज़ुर्ग राजनीति पढ़ते, और युवा स्पोर्ट्स कॉलम में दिलचस्पी लेते थे. हर घर अखबार पहुंचाने वाले हॉकर्स का दिन सूरज से भी पहले शुरू होता था और उनकी कमाई भी अच्छी-खासी होती थी. 

हॉकर जितने ज्यादा अखबार बांटते, उनकी उतनी ज्यादा कमाई होती थी. त्योहार, चुनाव, बड़ी ख़बरें सब उनके लिए बोनस कमाई लाते थे. क्योंकि ऐसे मौके पर अखबार ज्यादा बिकता है.  इन हॉकर्स की कमाई भी अच्छी होती थी क्योंकि ज्यादातर घरों में एक नहीं, कई-कई अख़बार लगते थे, पेंफलेट (pamphlets) का पैसा भी मिलता था, त्योहार में बोनस भी. तो चलिए जानते हैं एक न्यूजपेपर पर हॉकर की कमाई कितनी होती है. 

हॉकर्स की कमाई आधी भी नहीं रही
लेकिन अब तस्वीर काफी बदल चुकी है. लोगों के दिन की शुरुआत अब अखबार की जगह मोबाइल से होने लगी है. लोग अब उठते ही सबसे पहले फोन चेक करते हैं. वे बेड पर आराम से फोन पर देश-दुनिया की खबर से अपडेट हो जाते हैं. टीवी चैनलों की बात करें तो हर पल ‘ब्रेकिंग न्यूज़’आती रहती है. ऐसे में अखबार का रोल धीरे-धीरे कम होने लगा. जब लोग अखबार कम लेने लगे तो हॉकर्स की कमाई भी कम होने लगी.

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जिन हॉकर्स की रोज की आमदनी पहले सैकड़ों से हजार तक पहुंच जाती थी, वो अब मुश्किल से 100 रुपये तक सिमट जाती है. कई इलाके ऐसे भी हैं जहां हॉकर्स की कमाई आधी भी नहीं रही. पहले जहां एक हॉकर रोजाना 200-300 अखबार बेचकर 500-1000 रुपये तक कमा लेता था, वहीं अब कई जगह मुश्किल से 100-150 रुपये बच रहे हैं. कम कमाई को देखते हुए कुछ हॉकर्स ने इस पेशे को ही छोड़ दिया, और जो कर रहे हैं, वो पुराने ग्राहकों के भरोसे टिके हैं.

अब कम लोगों को है अखबार का इंतजार 
दिन- पर-दिन महंगाई बढ़ते जा रही है, इसके साथ ही अखबार के दाम भी बढ़ रहे हैं. ऐसे में कई घरों में लोगों अखबार लगवाना बंद कर दिया. इसका नतीजा यह हुआ कि इससे हॉकर्स की जेब पर काफी असर पड़ने लगा. इसके बाद भी कई हॉकर्स ने हार मानने की जगह अखबार के साथ-साथ दूध और मैगजीन भी बांटने लगे, कोई ऑनलाइन डिलीवरी करने लगा, तो कोई दूसरी नौकरियों में हाथ आजमाने लगा. आज भी बुजुर्गों के लिए अखबार अब भी आदत और शौक है, लेकिन ज्यादातर युवाओं की सुबह मोबाइल पर ही शुरू और खत्म हो जाती है.  

तो चलिए जानते हैं एक न्यूजपेपर पर हॉकर को कितना रुपया बचता है?
न्यूजपेपर बांटने वाले हॉकर अरविंद कुमार कहते हैं कि अगर किसी अखबार की कीमत ₹5 से ₹8 रुपये है तो हॉकर को मिलने वाला हिस्सा ₹1.5 से ₹2.5 प्रति अखबार होगा. यानि हर अखबार से हॉकर की बचत ₹1 से ₹2 प्रति कॉपी  होती है. हॉकर अखबार एजेंसी से थोक रेट में पेपर लेता है. उसके बाद वो घर-घर जाकर पहुंचाता है और ग्राहक से रिटेल कीमत लेता है.  तो, एक हॉकर को हर पेपर से ₹1–2 तक की कमाई होती है. 

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यहां समझते हैं कैलकुलेशन

  • यदि कोई हॉकर रोज 200 अखबार बांटता है तो-  ₹1.5 × 200 = ₹300/दिन.
  • महीने भर में (30 दिन)-                             ₹300 × 30 = ₹9,000 / महीना.
  • अगर हाई-क्लास कॉलोनी है (महंगे पेपर)       ₹2–3 प्रति कॉपी की कमाई हो सकती है. 

अब जानिए कौन कितना कमाता है?
1. डिस्ट्रीब्यूटर की कमाई: 
आपको बता दें कि कोई भी डिस्ट्रीब्यूटर कंपनी से थोक में ₹3.5–₹4 में पेपर खरीदता है, इसके बाद उसे हॉकर को ₹4.5–₹5 में बेचता है. इससे उसकी बचत ₹0.5–₹1 प्रति पेपर हो जाती है.  मान लीजिए अगर किसी अगर किसी डिस्ट्रीब्यूटर के पास 1000 हॉकर हैं तो ₹1 × 1000 पेपर = ₹1000 उसकी रोज की कमाई अच्छी खासी हो जाएगी. 

2. चलिए जानते हैं हॉकर की कमाई
अगर किसी हॉकर ने किसी न्यूजपेपर को डिस्ट्रीब्यूटर से ₹5 में खरीदा और उस न्यूजपेपर को ग्राहक को ₹6–₹8 में बेचा तो इससे हर अखबार पर बचत ₹1–₹2.5 प्रति पेपर होगी. उदाहरण के लिए मान लीजिए कि अगर कोई हॉकर रोज 200 पेपर बांटता है और प्रति पेपर ₹2 कमाता है तो ₹2 × 200 = ₹400/दिन और 30 दिन में ₹400 × 30 = ₹12,000/महीना की कमाई होगी.  

किन बातों पर निर्भर करती है हॉकर की कमाई 

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  • हॉकर की कमाई कई बातों पर निर्भर करती है, जैसे-
  • पेपर की संख्या -जितने ज़्यादा पेपर बांटे, उतनी ज्यादा कमाई, 
  • इलाका- पॉश एरिया में महंगे पेपर बिकते हैं (TOI, HT, ET आदि)
  • टाइमिंग- सुबह जल्दी उठना और सही टाइम पर डिलीवरी ज़रूरी
  • अतिरिक्त सेवाएं जैसे- अगर हॉकर न्यूजपेपर के साथ-साथ दूध, मैगजीन बेचता है तो उसकी अच्छी कमाई हो जाएगी. 

पेंफलेट बांटने पर प्रति पैम्फलेट कितना पैसा मिलता है 
अरविंद कुमार बताते हैं कि किसी पर्व-त्योहार या बच्चों के रिजल्ट और एडमिशन के वक्त काफी ज्यादा पेंफलेट बांटने का काम मिल जाता है. इससे अच्छी कमाई हो जाती है. अखबार बांटने पर एक हॉकर को आमतौर पर हर अखबार पर 25 से 50 पैसे का कमीशन मिलता है. पेंफलेट बांटने के लिए हॉकर को आमतौर पर 20 पैसे प्रति पैम्फलेट का कमीशन मिलता है. इसलिए, अगर एक हॉकर एक अखबार के साथ एक पेंफलेट भी बांटता है, तो उसकी कुल कमाई प्रति अखबार पर लगभग 45 से 70 पैसे तक हो सकती है. यह कमीशन अखबार के प्रकार और हॉकर की लोकेशन पर भी निर्भर करता है.

अगर कोई हॉकर्स न्यूज़पेपर के साथ पेंफलेट (leaflet या विज्ञापन पर्ची) बांटता है, तो उसे हर पेंफलेट के बदले में एक तय कमाई होती है, जो इस बात पर निर्भर करती है कि हॉकर को पेंफलेट से कितनी कमाई होती है? पेंफलेट का रेट अगर  ₹0.30-₹1.00 प्रति पेंफलेट है तो इससे हॉकर की कमाई (एक पेंफलेट पर) ₹0.30 से लेकर ₹1.00 प्रति पेंफलेट होती है. 

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तो चलिए समझते हैं Calculation
अगर एक हॉकर 500 घरों में पेंफलेट बांटता है और उसे हर पेंफलेट पर ₹0.50 मिलते हैं, तो इस हिसाब से 500 × ₹0.50 = ₹250, तो रोज की एक्स्ट्रा कमाई 250 रुपये हुई. 

कहां से मिलता है पेंफलेट
पर्व-त्योहार या एडमिशन-रिजल्ट के मौके पर काफी ज्यादा पेंफलेट मिलते हैं. हॉकर को यह पेंफलेट एजेंसी या दुकानदार से मिलता है. इसके बाद हॉकर पेंफलेट अखबार के अंदर डालकर हर घर में पहुंचाता है. पम्पलेट की संख्या और दर दोनों इलाके के हिसाब से बदलती हैं. अगर कोई हॉकर एक दिन में 2–3 पेंफलेट भी बांटता है, तो उनकी अतिरिक्त आय ₹300–₹500 तक पहुंच सकती है.

बचे हुए न्यूजपेपर का क्या होता है?
हॉकर अरविंद बताते हैं कि जो न्यूजपेपर नहीं बिक पाता है, उसे डिस्ट्रीब्यूटर को वापस करना होता है. उसके बदले पैसे नहीं मिलते हैं लेकिन अगले दिन का न्यूज़पेपर मिल जाता है. 

क्या खत्म हो जाएगा हॉकर्स का काम?
डिजिटल दौर ने अख़बार के साथ-साथ हॉकर्स के भविष्य पर भी असर डाला है. लेकिन आज भी कई ऐसे लोग हैं जिनके दिन की शुरुआत न्यूजपेपर से होती है. 
शहरों में अखबार की मांग लगातार कम हो रही है, और इसका सबसे बड़ा खामियाजा हॉकर्स को भुगतना पड़ रहा है.

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