उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भीषण तबाही मच गई. अबतक 5 लोगों की मौत और करीब 70 से ज्यादा लोग लापता होने की खबर है. पीडितों के बचाव में लगी रेस्क्यू टीमों के कुछ जवान भी इसके कारण लापता हो गए हैं. वहां खराब मौसम के कारण रेस्क्यू ऑपरेशन में दिक्कतें आ रही हैं. हालांकि पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की घटना आम है. लेकिन क्या मैदानी इलाकों में भी इसकी गुंजाइश बचती है? आइए जानते हैं...
क्लाउड-बर्स्ट क्या है?
इंडियन मेट्रोलॉजिकल डिपार्टमेंट के अनुसार, क्लाउडबर्स्ट उसे कहा जाता है, जब एक छोटे से इलाके में (करीब 20-30 किलोमीटर के), अचानक और लगातार बहुत तेज बारिश होती है. यानी एक घंटे में 10 सेंटीमीटर से ज्यादा. क्लाउडबर्स्ट के आफ्टरशॉक के तौर पर उस जगह के आसपास फ्लैशफ्लड्स, लैंडस्लाइड हो जाते हैं. वैसे तो बादल ज्यादातर पहाड़ी इलाकों में ही फटते हैं, लेकिन कभी-कभी मैदानी इलाके भी इसकी चपेट में आ जाते हैं.
बादल फटते क्यों हैं?
अब आपको बताते हैं कि आखिर बादल फटते क्यों है और इसके पीछे के साइंस को समझते हैं... बादल 3 टाइप के होते हैं- सिरस, स्ट्रेटस और क्यूम्यूलस. क्लाउडबर्स्ट में जो बादल फटते हैं, वो हैं ‘क्यूम्यूलोनिम्बस’ बादल. ये दिखने में किसी ऊंचे टावर या पहाड़ जैसे होते हैं और ऊपर से फ्लैट, घने और काले होते हैं. अगर ये आपको दिख जाए, तो समझ जाइए कि उस जगह पर मूसलाधार बारिश या तूफान आ सकता है.

अब इस पूरी प्रक्रिया को अच्छे से समझते हैं. आपको ये तो पता है कि पानी जब भाप बनकर ऊपर उठता है और आसमान में एक ऐसे लेवल पर पहुंचता है, जहां का ऐट्मॉस्फेरिक प्रेशर (हवा का दबाव) कम हो, तो उस भाप का टेम्प्रेचर कम होने लगता है और वो बादल बन जाते हैं. अगर यही बादल ज्यादा ऊंचे उठे और इससे भी कम ऐट्मॉस्फेरिक प्रेशर तक पहुंच जाएं, तो अपने अंदर और ज्यादा नमी इकट्ठा करके ये साइज में और भारी और बड़े हो जाते हैं. ऐसे बनते हैं क्यूम्यूलोनिम्बस बादल. इनके अंदर मौजूद पानी की छोटी-छोटी बूंदें आपस में टकराकर बड़ी बूंदों का शेप ले लेती हैं.
जब ये बादल अपने अंदर और नमी इकट्ठी नहीं कर सकता तो ये फट जाता है और उस जगह अचानक बहुत जोरदार बरसात होती है, जिससे वहां फ्लैशफ्लड भी आती है. फ्लैशफ्लड यानी एक छोटे-से इलाके में अचानक बाढ़ आ जाना. ये पानी पहाड के स्लोप से जब तेज स्पीड़ में नीचे आता है तो अपने साथ बाढ़ की स्थिति लेकर आता है. क्युम्युलोनिम्बस बादल बनने के लिए उस जगह का ऐट्मॉस्फेरिक प्रेशर कम होना एक जरूरी कंडिशन है इसलिए ये अक्सर हिलस्टेशंस के आसपास ही पाए जाते हैं.

पर क्या कभी दिल्ली, आगरा या चंडीगढ़ जैसे मैदानी शहरों में बादल फट सकते हैं?
जवाब है हां. पर इसके चांसेस बहुत ही कम हैं, हालांकि दिल्ली में एक बार ऐसा हो चुका है. 15 सितंबर 2011 को दिल्ली के पालम एरिया में बादल फटा था. इस घटना में कोई जनहानी तो नहीं हुई पर 1959 के बाद पहली बार शहर में इतनी ज्यादा बारिश हुई थी. लेकिन ये पहली और शायद आखरी बार ही था, जब दिल्ली के लोगों ने इसे एक्सपीरियंस किया हो. ऐसा होने के आसार बहुत कम हैं क्योंकि-
1. दिल्ली के आसपास कोई पहाड़ नहीं है. जब ज्यादा नमी वाली हवा पहाड़ों से टकराकर तेजी से ऊपर उठती है, तो वो एक बड़ा बादल बनाती है और क्लाउडबर्स्ट के दौरान यहीं बादल फटते हैं.
2. बादल फटने जैसी तेज और छोटे-से इलाके में हुई बारिश दिल्ली में बहुत कम ही होती है.
लेकिन वहां मानसून के दौरान भी अक्सर हवा में बहुत ज्यादा नमी बनी रहती है. ऐसे में क्युम्युलोनिम्बस जैसे बड़े बादल बन सकते हैं और अगर इनमें ज्यादा नमी इकट्ठी हो जाए और एकदम से गिरे, तो दिल्ली में भी बादल फट सकते हैं. हालांकि, ये बहुत ही रेयर स्थिति होगी.