भारत और अंग्रेजों के बीच पहला युद्ध सिख राजाओं और ईस्ट इंडिया कंपनी के
बीच 1845 से 1846 ई के बीच लड़ा गया. परिणाम यह हुआ कि लार्ड डलहौजी की 29
मार्च 1849 ई की घोषणा द्वारा पंजाब का विलय अंग्रेजी राज्य में कर लिया
(1) सिक्ख सम्प्रदाय की स्थापना का श्रेय गुरू नानक (प्रथम गुरू) को जाता है. गुरू नानक के अनुनायी ही सिक्ख कहलाए.
(2) ये बादशाह बाबर एवं हुमायूँ के समकालीन थे.
सन् 1496 ई. की कार्तिक पूर्णिमा को नानक को आध्यात्मिक पुनर्जीवन का आभास हुआ.
गुरू नानक ने गुरू का लंगर नामक निःशुल्क सह भागी भोजनालय स्थापित किया.
(3) गुरू नानक ने अनेक स्थानों पर संगत (धर्मशाला) और पंगत (लंगर) स्थापित किया.
संगत और पंगत ने गुरू नानक के अनुयायियों के लिए एक संस्था का कार्य किया जहां वह प्रतिदिन मिलते थे.
(4) गुरू नानक की सन् 1539 ई. में करतारपुर में मृत्यु हो गई
इन्होने नानक द्वारा शुरू की गई लंगर व्यावस्था को स्थायी बना दिया गया.
गुरूमुखी लिपि का आरम्भ गुरू अंगद ने किया.
(5) सिक्खों के तीसरे गुरू अमरदास (सन् 1552-74 ई.) थे.
गुरू अमरदास ने हिन्दुओं से पृथक होने वाले कई कार्य किए. हिन्दुओं से अलग विवाह पद्धति लवन को प्रचलित किया.
(6) अकबर ने 22 गद्दियों की स्थापना की और प्रत्येक पर एक महन्त की नियुक्ति की.
(7) बीबी के पति रामदास (सन् 1574-81 ई.) सिक्खों के चौथे गुरू हुए.
(8) अकबर ने इन्हें 500 बीघा भूमि दी.
(9) इन्होंने अमृतसर नामक जलाशय खुदवाया और अमृतसर नगर की स्थापना की.
(10) गुरू रामदास ने अपने तीसरे पुत्र अर्जुन को गुरू का पद सौंपा. इस प्रकार इन्होंने गुरू पद को पैतृक बनाया.
(11) गुरू अर्जुन (सन् 1581 ई.-1605 ई.) सिक्खों के पाँचवे गुरू हुए.
(12) इन्होंने सिक्खों के धार्मिक ग्रंथ आदिग्रंथ की रचना की.इसमें गुरू नानक प्रेरणाप्रद प्रार्थनाएँ और गीत संकलित हैं.
(13) गुरू अर्जुन ने अमृतसर जलाशय के मध्य में हरमन्दर साहब का निर्माण कराया.
(14) राजकुमार खुसरो की सहायता करने के कारण जहाँगीर ने (1606 ई.) में गुरू अर्जुन को मरवा दिया.
(15) सिक्खों के छठे गुरू हरगोबिन्द (1606-44 ई.) हुए. इन्होंने सिक्खों को सैन्य संगठन का रूप दिया और अकाल तख्त या ईश्वर के सिंहासन का निर्माण करवाया.
(16) ये दो तलवार बाँधकर गद्दी पर बैठते थे एवं दरबार में नगाड़ा बजाने की व्यावस्था की.
(17) इन्होंने अमृतसर की किलेबंदी करवाई.
हरगोबिन्द ने अपने आपको सच्चा पादशाह कहना शुरू किया.
इन्होंने सिक्खों को मांस खाने की भी आज्ञा दी.
(18) सिक्खों के सातवें गुरू हरराय (1644-61 ई.) हुए. इन्होंने दाराशिकोह को मिलने आने पर आशीर्वाद दिया.
(19) सिक्खों के दसवें एवं अंतिम गुरू, गुरू गोबिन्द सिंह (1675-1708 ई.) हुए. इनका जन्म 1666 ई. में पटना में हुआ था.
गुरू गोबिन्द सिंह अपने को सच्चा पादशाह कहा.
(20) इन्होंने सिक्खों के लिेए पाँच ककार अनिर्वाय किया. अर्थात प्रत्येक सिक्ख को केश, कंघा, कृपाण, कच्छा और कड़ा रखने की अनुमति दी और सभी लोंगों को अपने नाम के अन्त मे सिंह शब्द जोड़ने के लिए कहा.
(21) गुरू गोबिन्द सिंह का निवास-स्थान आनंदपुर साहिब था एवं कार्यस्थली पओता थी.
इनके दो पुत्र फतह सिंह एवं जोरावर सिंह को सरहिन्द के मुगल फौजदार वजीर खाँ ने दीवार में चिनवा दिया.
(22) 1699 ई. में वैशाली के दिन गुरू गोबिन्द सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की.
पाहुल प्रणाली की शुरुआत गुरू गोबिन्द सिंगह ने किया.
गुरू गोबिन्द सिंह ने सिक्खों के धार्मिक ग्रन्थ को वर्तमान रूप दिया और कहा कि अब गुरूवाणी सिक्ख सम्प्रदाय के गुरू का कार्य करेगी.
(23) गुरू गोबिन्द सिंह की हत्या 1708 ई. में नादेड़ नामक स्थान पर गुल खाँ नामक पठान ने कर दी.
बन्दा बहादुर इनका जन्म 1670 ई. में पुँछ जिले के रजौली गाँव में हुआ था
(24) इनके बचपन का नाम लक्ष्मणदास था. इनके पिता रामदेव भारद्वाज राजपूत थे.
बन्दा का उद्देश्य पंजाब में एक सिक्ख राज्य स्थापित करने का था. इसके लिए इन्होंने लौहगढ़ को राजधानी बनाया. इन्होंने गुरू नानक एवं गुरू गोबिन्द सिंह नाम के सिक्के चलवाए.
(25) बन्दा ने सरहिन्द के मुगल फौजदार वजीर खाँ की हत्या कर दी.
मुगल बादशाह फर्रूखसियर के आदेश पर 1716 ई में बंदा सिंह को गुरूदासपुर पर नांगल जगह पर पकड़कर मौत के घाट उतार दिया गया.
(26) शाहदरा कल्लगढ़ी के नाम से विख्यात है जहां बन्दा ने हजारों मुस्लिम सैनिकों को मौत के घाट उतारा था.
(27) बन्दा की मौत के बाद सिक्ख कई टुकड़ों में बंट गए थे. 1748 ई में नवाब कर्पूर सिंह की पहल पर सभी सिख टुकड़ियों का दल खालसा में विलय हुआ.
(28) दल खालसा को जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्व में रखा गया.
इस दल को बाद में बारह दलों में बांटा गया जिसे 'मिसल' कहा गया.
'मिसल' का अर्थ होता है समान
(29) महाराजा रणजीत सिंह पंजाब के महान राजा थे, वे शेर-ए पंजाब के नाम से प्रसिद्ध हैं.
महाराजा रणजीत एक ऐसी व्यक्ति थे, जिन्होंने न केवल पंजाब को एक सशक्त सूबे के रूप में एकजुट रखा, बल्कि अपने जीते-जी अंग्रेजों को अपने साम्राज्य के पास भी नहीं फटकने दिया.
(28) रणजीत सिंह का जन्म सन 1780 में गुजरांवाला जो अब पाकिस्तान में है, हुआ था. उन दिनों पंजाब पर सिखों और अफगानों का राज चलता था जिन्होंने पूरे इलाके को कई मिसलों में बांट रखा था.
(29) 1798 ई में रणजीत सिंह लाहौर का शासक बना.
(30) 1809 ई में रणजीत सिंह और चार्ल्स मेटकॉफ के बीच अमृतसर की संधि हुई.
(31) सन 1839 में महाराजा रणजीत का निधन हो गया. उनकी समाधि लाहौर में बनवाई गई, जो आज भी वहां है.
(32)रणजीत सिंह का राज्य चार सूबों में बंटा हुआ था, पेशावर, कश्मीर, लाहौर और मुल्तान.
(33)प्रथम आंग्ल-सिक्ख युद्ध 1845-1846 ई में हुआ.
दूसरा आंग्ल-सिक्ख युद्ध 1849 ई में हुआ.
(34)29 मार्च 1849 को लॉर्ड डलहौजी ने पंजाब को अंग्रेजी राज्य में मिला लिया.
अंग्रेजों और सिक्खों के बीच संधि हुई
1.लाहौर की संधि-मार्च 1846 ई
2.भैरोवाल की संधि-22 दिसंबर 1846 ई
इस संधि के तहत दलीप सिंह के संरक्षण हेतू अंग्रेजी सेना का प्रवास में मान लिया गया.
(35) 20 अगस्त 1847 ई में महारानी जिंदा को राजा दलीप सिंह से अळग कर 48000 रूपए वार्षिक पेंशन देकर शेखपुरा भेज दिया.
द्वितीय आंग्ल युद्ध के दौरान पहली लड़ाई चिलियानवाला की लड़ाई सिक्ख नेता शेर सिंह और अंग्रेज कमांडर के बीच हुई.
(36) दूसरी लड़ाई गुजरात के चिवाब नदी के किनारे चार्ल्स ने अंग्रेजों ने 21 फरवरी 1849 ई को लड़ी.
(37) इस युद्ध में सिक्ख पराजित हुए.
लार्ड डलहौजी की 29 मार्च 1849 ई की घोषणा द्वारा पंजाब का विलय अंग्रेजी राज्य में कर लिया.
(38) राजा दलीप सिंह को 50000 पौंड की वार्षिक पेंशन दे दी गई और पढ़ाई के लिए इंग्लैंड भेज दिया.
सिक्ख राज्य का प्रसिद्ध हीरा कोहिनूर को महारानी विक्टोरिया को भेज दिया गया.