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मुंबई में पुनर्विकास की होड़, बिल्डरों को फायदा और किराएदारों का जोखिम

पुनर्विकास के दौरान, निवासियों को अस्थायी रूप से कहीं और जाना पड़ता है. यह बदलाव हमेशा आसान नहीं होता. कई मामलों में, बिल्डर द्वारा दिए गए वादे पूरे नहीं होते, जिससे किराएदारों को महीनों या सालों तक इंतजार करना पड़ता है.

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पुनर्विकास के दौरान, निवासियों को अस्थायी रूप से कहीं और जाना पड़ता है (AI GENERATED)
पुनर्विकास के दौरान, निवासियों को अस्थायी रूप से कहीं और जाना पड़ता है (AI GENERATED)

मुंबई की तंग गलियों और पुरानी इमारतों में रहने वाले लाखों लोगों के लिए पुनर्विकास एक उम्मीद की किरण है. बिल्डर उन्हें बड़े घर, आधुनिक सुविधाएं और बेहतर जीवनशैली का सपना दिखाते हैं. लेकिन इस सपने को पूरा करने की प्रक्रिया में एक बड़ी चुनौती भी है. क्या किराएदारों को समय पर उनका नया घर मिल पाएगा और क्या उन्हें पुनर्विकास के दौरान सही अस्थायी आवास मिलेगा?

अक्सर, कागजों पर किए गए वादे और जमीनी हकीकत में बड़ा फर्क होता है. मुंबई का यह तेज़ी से बढ़ता पुनर्विकास बाजार किरायेदारों के लिए उम्मीद और अनिश्चितता, दोनों लेकर आया है.

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पुरानी इमारतों को तोड़कर बन रही हैं नई इमारतें

मुंबई में ज़मीन की कमी ने निर्माण के तरीकों को पूरी तरह बदल दिया है. खाली जमीन न होने से डेवलपर्स अब पुरानी इमारतों को तोड़कर उनकी जगह आधुनिक, ऊंची और सुविधायुक्त इमारतें बना रहे हैं. इसे पुनर्विकास (Redevelopment) कहा जाता है, जिसमें मौजूदा निवासियों को बड़े घर, बेहतर सुविधाएं और मजबूत सुरक्षा का वादा किया जाता है. 2025 की पहली छमाही में इस क्षेत्र में जबरदस्त उछाल देखा गया है, जिसमें 18,000 करोड़ रुपये से ज्यादा के पुनर्विकास प्रोजेक्ट्स की घोषणा हुई है. कई बड़े डेवलपर्स, दिल्ली और बेंगलुरु से आए नए खिलाड़ी भी इस दौड़ में शामिल हो गए हैं.

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नाइट फ्रैंक की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि मुंबई में हर महीने होने वाले 10,000 से 12,000 प्रॉपर्टी रजिस्ट्रेशन में से 10-20% यानी 1,000 से 2,400 रजिस्ट्रेशन पुनर्विकास प्रोजेक्ट्स से जुड़े हैं. खासकर बांद्रा, गोरेगांव, मलाड और बोरिवली जैसे पश्चिमी उपनगरों में यह गतिविधि तेज़ी से चल रही है, जहां सीमित जमीन की उपलब्धता के कारण डेवलपर्स के बीच प्रोजेक्ट्स हासिल करने के लिए कड़ी प्रतिस्पर्धा है.

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उछाल का कारण और चुनौतियां

पुनर्विकास में इस उछाल का मुख्य कारण मुंबई में जमीन की कमी और बढ़ती आबादी है. यह न केवल डेवलपर्स के लिए कम पूंजी वाला विकल्प है, बल्कि निवासियों को भी बेहतर जीवनशैली का लाभ मिलता है. यही वजह है कि दिल्ली और बेंगलुरु जैसे शहरों के डेवलपर्स भी मुंबई में प्रवेश कर रहे हैं, क्योंकि यहां रिटर्न की संभावना अधिक है.

हालांकि, इस प्रक्रिया में भारी शुरुआती लागत भी शामिल होती है, जैसे जमीन का मुआवजा, निर्माण लागत और फाइनेंसिंग. ये सारे खर्च प्रोजेक्ट से कोई आय शुरू होने से पहले ही उठाने पड़ते हैं. बढ़ती महंगाई और फाइनेंसिंग की लागत ने डेवलपर्स पर दबाव बढ़ा दिया है, क्योंकि उन्हें अपने वादों को पूरा करना है.

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किराएदारों के लिए अनिश्चितता

पुनर्विकास के दौरान, निवासियों को अस्थायी रूप से कहीं और जाना पड़ता है. यह बदलाव हमेशा आसान नहीं होता. कई मामलों में, बिल्डर द्वारा दिए गए वादे पूरे नहीं होते, जिससे किराएदारों को महीनों या सालों तक इंतजार करना पड़ता है.  बांद्रा, सांताक्रूज़ और मलाड जैसे इलाकों में पुनर्विकास के कारण किराए की मांग तेजी से बढ़ी है. इससे किराएदारों के लिए सही और सस्ते अस्थायी घर ढूंढना मुश्किल हो गया है.

कई बिल्डर समय पर प्रोजेक्ट पूरा करने और तय किराया देने में विफल रहते हैं, जिससे लोगों को आर्थिक और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ता है.

विशेषज्ञों का मानना है कि पुनर्विकास की यह लहर अपने चरम पर हो सकती है. कई डेवलपर्स ने भविष्य में कीमतें बढ़ने की उम्मीद में आक्रामक बोलियां लगाई हैं. अगर कीमतें स्थिर रहती हैं या गिरती हैं, तो कई प्रोजेक्ट्स को भारी नुकसान हो सकता है. इसके अलावा, मुंबई की पुरानी सड़कें, सीवरेज और ट्रांजिट सिस्टम पहले से ही दबाव में हैं. ऊंची इमारतों के कारण बढ़ती आबादी इस स्थिति को और बिगाड़ सकती है.

कुल मिलाकर, मुंबई का पुनर्विकास बाजर निश्चित रूप से अवसरों से भरा है, लेकिन इसके साथ आने वाले जोखिमों को नजरअंदाज़ नहीं किया जा सकता. लॉन्च और कुल विकास मूल्य भले ही ऊंचे हों, लेकिन प्रीमियम यूनिट्स की बिक्री उस गति से नहीं हो रही है. अगर कीमतों की उम्मीदें पूरी नहीं हुईं, तो यह दबाव और बढ़ सकता है, जिसका सीधा असर किराएदारों और घर खरीदारों पर पड़ेगा.

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