इकोनॉमी मजबूत है, लेकिन रुपया गिर रहा है. क्या ये खतरे का संकेत नहीं है? आरबीआई के गवर्नर संजय मल्होत्रा का कहना है कि भारतीय अर्थव्यवस्था ने रुपये की कमजोरी के बावजूद मजबूती दिखाई है, उन्होंने एक इंटरव्यू में कहा कि साल- 2025 में रुपया अबतक करीब 4.68% गिरा है. लेकिन इसका प्रभाव अर्थव्यवस्था पर गंभीर नहीं पड़ेगा.
संजय मल्होत्रा ने बताया कि इस साल रुपया गिरने के पीछे कई कारण हैं, जिनमें मजबूत अमेरिकी डॉलर, विदेशी फंडों की निकासी, और भारत-अमेरिका व्यापार टैरिफ डील में देरी शामिल हैं. हालांकि RBI का मानना है कि कई सेक्टर बेहतरीन प्रदर्शन कर रहे हैं, जिससे अर्थव्यवस्था प्रभावित नहीं होने वाली है.
संजय मल्होत्रा ने क्या-क्या कहा
इंडिया टुडे से बातचीत में मल्होत्रा ने कहा कि पिछले 20 वर्षों में रुपये अवमूल्यन को देखें तो साल 2025 में कोई बहुत बड़ा उतार-चढ़ाव नहीं हुआ है. रुपये में पिछले 10 वर्षों में प्रति वर्ष करीब 3 फीसदी और उससे पिछले 20 वर्षों में करीब 3.4 फीसदी की गिरावट आई है.
बता दें, 16 दिसंबर को रुपया अमेरिकी डॉलर के मुकाबले गिरकर रिकॉर्ड 91.16 के निचले स्तर पर आ गया. 2025 तक मुद्रा में 4.68% की गिरावट आई है, जिससे यह एशियाई मुद्राओं में सबसे खराब प्रदर्शन करने वाली मुद्रा बन गई है.
रुपये की गिरावट का एक और महत्वपूर्ण कारण यह है कि भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने घरेलू मुद्रास्फीति में कमी के चलते पहले की तुलना में कम आक्रामक हस्तक्षेप रणनीति अपनाई है. उन्होंने ने यह भी कहा कि RBI मुद्रा बाजार में प्रतिदिन के उतार-चढ़ाव को नियंत्रित करने की कोशिश करता है.
संजय मल्होत्रा की मानें तो रुपया का मौजूदा स्तर बहुत ज्यादा चिंता का विषय नहीं है, और सरकार की भी इसपर नजर है. सरकार अपने तरीके से निपटने के लिए तैयार है.
व्यापार घाटा में काबू
RBI गवर्नर की मानें तो व्यापार घाटा नवंबर में 5 महीने के निचले स्तर पर आ गया है. जो सोना, तेल और कोयले के आयात में कमी के कारण था. वहीं अमेरिका के लिए भारतीय निर्यात पिछले महीने मंथली आधार पर 10% और सालाना आधार पर 21% बढ़ा है, जिससे विदेशी मांग में सुधार का संकेत मिलता है.
RBI के आंकड़ों के अनुसार, भारत के पास लगभग 11 महीने का आयात कवरेज है, और बाहरी ऋण कवरेज लगभग 92% है, जिससे बैंक बाहरी देनदारियों को पूरा करने में सक्षम है.
विश्लेषकों के अनुसार, भारतीय रुपया की गिरावट को वैश्विक कारकों से जोड़कर देखा जा रहा है, जैसे कि अमेरिका में उच्च ब्याज दरें और डॉलर का मजबूती से उभरना. यह स्थिति न केवल भारत बल्कि कई उभरती बाजारों के लिए सामान्य रही है. हालांकि, RBI ने संकेत दिया है कि वह मौद्रिक और विनिमय-दर नीति में निरंतर संतुलन बनाए रखेगा, ताकि अर्थव्यवस्था में स्थिरता बनी रहे.