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Bihar: अर्थी पर लेटे, माला चढ़ाई और पहुंचे श्मशान... जिंदा रहते रिटायर्ड अधिकारी ने निकाली खुद की अंतिम यात्रा

बिहार के गया जिले में वायुसेना से रिटायर्ड मोहन लाल ने अपने पैसे से गांव में मुक्तिधाम बनवाया और उसका प्रचार करने के लिए जिंदा रहते खुद की अर्थी यात्रा निकाली. गाजे-बाजे के साथ मुक्तिधाम (श्मशान) पहुंचकर पुतले का दाह संस्कार कर उद्घाटन किया. उन्होंने ग्रामीणों की सुविधा के लिए सेड, चबूतरा और हैंडपंप भी लगवाया. गांव में यह पहली अनोखी घटना है.

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जिंदा रहते खुद अर्थी पर लेटे 'मोहन लाल'.(Photo: Pankaj Kumar/ITG)
जिंदा रहते खुद अर्थी पर लेटे 'मोहन लाल'.(Photo: Pankaj Kumar/ITG)

बिहार के गया जिले में एक अनोखी और प्रेरणादायक घटना सामने आई है. वायुसेना से रिटायर्ड मोहन लाल ने न केवल अपने पैसे से गांव में मुक्तिधाम (श्मशान) बनवाया बल्कि उसके प्रचार-प्रसार के लिए जीवित रहते हुए अपनी ही अर्थी यात्रा भी निकाली. यह अनोखी घटना गया जिले के गुरारू प्रखंड के कोंची गांव की है, जहां 74 वर्षीय मोहन लाल ने लगभग 6 लाख रुपये की लागत से मुक्तिधाम बनवाया है.

ग्रामीणों के मुताबिक, बरसात के दिनों में शवों का दाह संस्कार करना बेहद मुश्किल हो जाता था, क्योंकि नदी में पानी भर जाने से शव जलाने की जगह नहीं बचती थी. इस समस्या को देखते हुए मोहन लाल ने अपने निजी खर्च से गांव में ही एक पक्का मुक्तिधाम बनवाया ताकि किसी को दाह संस्कार के समय दिक्कत न हो.

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गया

मुक्तिधाम में उन्होंने शव के लिए सेड, आने वाले ग्रामीणों के बैठने के लिए छायादार चबूतरा और पीने के पानी की सुविधा के लिए हैंडपंप भी लगवाया है. इस सामाजिक कार्य के उद्घाटन और प्रचार के लिए मोहन लाल ने खुद गाजे-बाजे के साथ अपनी अर्थी यात्रा निकाली, जिससे पूरा गांव अचंभित रह गया. मुक्तिधाम पहुंचकर उन्होंने पुतले का दाह संस्कार कर उद्घाटन किया.

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गया

इस घटना की चर्चा पूरे गया जिले में हो रही है. लोग इसे समाजसेवा का अद्भुत उदाहरण बता रहे हैं. मोहन लाल का कहना है कि  जीवन में किया गया सच्चा धर्म वही है जो दूसरों के काम आए. उनके इस अनोखे प्रयास ने न केवल गांव में सुविधा दी बल्कि एक मिसाल भी कायम की है कि सेवा और त्याग का कोई रूप छोटा नहीं होता.

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रिपोर्ट- पंकज कुमार.
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