नेपाल में नई कुमारी देवी का चयन हो गया है. नई 'कुमारी या कुंवापी देवी' चुनी गई बच्ची का नाम आर्यतारा शाक्य है. आर्यतारा की उम्र 2 साल और 8 महीने है. नेपाल में बालपन की अवस्था की बच्चियों में देवी की कल्पना की जाती है और एक खास बच्ची को चुनकर देवी पद पर बैठाया जाता है. इन्हें कुवांपी देवी भी कहते हैं, जो अपने कौमार्य के भंग (यानी पीरियड) न आने तक इस पद पर मौजूद रहेंगी. देवी का आशीर्वाद नेपाल में बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है और समूचे नेपाल में देवी की बहुत मान्यता है. इतनी कि देवी के हाव-भाव, उनके हंसने-रोने और खास तरीके से देखने तक के आधार पर भारत के इस पड़ोसी देश में शकुन-अपशकुन, शुभ-अशुभ तक का विचार माना जाता है.
देवी तब तक इस पद पर रहती हैं जबतक कि उनके पीरियड न आ जाएं और दूसरा किसी तरह से चोट लगने पर उन्हें खून न निकले. इसलिए देवी का बहुत ध्यान रखा जाता है और जब किसी सार्वजनिक समारोह का मौका होता है तो उन्हें नंगे पांव नहीं चलने दिया जाता है, हर जगह उठाकर ले जाया जाता है.
रोचक है नेपाल में देवी की मान्यताएं
देवी की मान्यताएं, भारतीय शाक्त परंपरा से उसका कनेक्शन और सबसे बड़ी बात देवी का चुनाव ये सभी अपने आप में रोचक है. वरिष्ठ पत्रकार चंद्रभूषण अपनी किताब 'भारत से कैसे गया बुद्ध का धर्म' में कुमारी देवी की मान्यताओं और उनके चयन पर विस्तार से चर्चा करते हैं.
नेपाल की कुमारी देवी का भारतीय शाक्त परंपरा से मेल कराते हुए वह लिखते हैं कि, कुमारी देवी 'तुलजा भवानी' का प्रतिनिधित्व करती हैं. यह भारत में हिंदू शाक्त परंपरा की देवी हैं. इन्हें महिषमर्दिनी के तौर पर भी जानते हैं, लेकिन बिना किसी अपवाद के ये देवी नेवार बौद्ध समुदायों से चुनी जाती हैं.' वह लिखते हैं कि तुलजा भवानी का जिक्र या चरित्र किसी बौद्ध परंपरा और ग्रंथ में नहीं मिलता है. नेपाली में तुलजा का उच्चारण भी 'तलजू' जैसा है, जिसे यहां 'तलेजू' भी कहते हैं.

नेपाल की कुमारी देवी का भारतीय कनेक्शन
इस आधार पर भी देखा जाए तो कुमारी देवी का कनेक्शन सनातन परंपरा से कहीं न कहीं जुड़ता है. दक्षिण भारत में कन्या कुमारी का मंदिर, उत्तर भारत में कन्या पूजन और महाराष्ट्र में क्षत्रपति शिवाजी की कुलदेवी तुलजा भवानी का आपस में जुड़ाव नजर आता है. वैसे ध्यान दें तो तुलजा का अर्थ त्वरित (शीघ्रता) से लिया गया है.
कहते हैं कि देवी एक राजकन्या के रूप में जन्म लेने वाली थीं, लेकिन उनके जन्म के समय ही किसी असुर ने गर्भवती रानी पर हमला किया. रानी को संकट में देखकर नवजात के शरीर से देवी प्रकट हो गईं और अपनी मां के प्राण बचाए. एक पुकार पर शीघ्र आ जाने के कारण देवी तुलजा कहलाईं और उनका भी स्वरूप बालिका का ही है.
अब बात करें नेपाल के कुमारी देवियों के चयन की तो यह एक कठिन और छोटी-छोटी बच्चियों के लिए डरावनी प्रक्रिया हो सकती है, लेकिन शायद कोई दैवीय चमत्कार ही होता होगा कि कुमारी बनने वाली कन्या जो महज 2 से 9 साल के बीच की होती है वह इस त्रासद स्थिति को न सिर्फ झेल लेती है, बल्कि इससे उबर भी आती है.
कैसे शुरू होती है चयन प्रक्रिया?
जब ये मान लिया जाता है कि तलेजू देवी ने मौजूदा कुमारी के शरीर को छोड़ दिया है, तो नई कुमारी ढूंढने की हड़बड़ी भरी प्रक्रिया तेजी से शुरू हो जाती है. राजतंत्र के समय में, यह चयन पांच बड़े बौद्ध पुजारी (वज्राचार्य), पंच बुद्ध, मुख्य राजकीय पुजारी (बड़ा गुरुजु), तलेजू के पुजारी (आचजौ) और राजा के ज्योतिषी मिलकर करते थे. राजा और दूसरे धार्मिक लोग, जो योग्य लड़कियों के बारे में जानते थे, उन्हें भी इसकी खबर दी जाती थी.
योग्य कुमारियां नेवार समुदाय की शाक्य जाति से आती हैं. कुमारी बिल्कुल स्वस्थ होनी चाहिए, जिसका कभी खून न बहा हो, उसे कोई बीमारी न लगी हो, उसके शरीर पर कोई दाग-धब्बा न हो, और उसके दांत अभी न गिरे हों. जो लड़कियां ये बुनियादी शर्तें पूरी करती हैं, उनकी जांच 32 खास निशानियों (बत्तीस लक्ष्ण) को देखकर की जाती है. जो दैवीय लक्षण माने जाते हैं. पुजारी कुमारी के शरीर की जांच करते हैं. इनमें कुछ खास हैं...
- गर्दन शंख जैसी
- शरीर बरगद के पेड़ जैसा
- पलकें गाय की तरह
- जांघें हिरण जैसी
- छाती शेरनी जैसी
- आवाज बत्तख की तरह नरम और साफ
इसके अलावा, उसके बाल और आंखें जितनी काली हों उतना अच्छा, हाथ-पैर छोटे और सुंदर, निजी अंग छोटे और अंदर धंसे हुए, और ठीक 20 दांत होने चाहिए.
राजा के समय में, उम्मीदवार लड़की को शांत और बिना डर वाली नजर रखी जाती थी. उसकी कुंडली भी चेक की जाती थी कि वो राजा की कुंडली से मैच करे, क्योंकि हर साल उसे राजा की वैधता साबित करनी पड़ती थी. उसके परिवार को भी जांचा जाता था कि वो धार्मिक और राजा के प्रति समर्पित हो.
जब पुजारी किसी लड़की को चुन लेते हैं, तो उसे और सख्त परीक्षाएं देनी होती हैं, ताकि पता चले कि वो तलेजू देवी का सच्चा रूप है. नवरात्र (शरद नवरात्र) के दौरान सबसे खतरनाक परीक्षण होता है. चंद्रभूषण अपनी किताब में दर्ज करते हैं कि 'नवरात्रि की सप्तमी के दिन तलजू भवानी को 108 भैंसों और बकरों की बलि दी जाती है.
कटे सिरों के बीच गुजारनी होती है रात
परीक्षण में यह भी शामिल है कि कुमारी को पशुओं के कटे हुए सिरों के साथ एक रात बितानी होती है और इस दौरान भयानक मुखौटे लगाए कुछ पुरुष मद्धिम रोशनी में नाच रहे होते हैं. 'दुष्कर्म का इरादा लेकर आए महिष रूपधारी राक्षस का वध करने वाली देवी के रूप में जिस कन्या को पूजा जाना है, उससे पहले अपेक्षा यह की जाती है कि वह ऐसे भयानक दृश्यों ने न डरे.'
ऐसा मानते हैं कि अगर लड़की में तलेजू का गुण है, तो वो बिल्कुल नहीं डरती. अगर डर जाती है, तो दूसरी कुमारी को मौका दिया जाता है.
कई परीक्षणों से गुजरने के बाद आखिरी परीक्षा ये कि उसे पिछली कुमारी की निजी चीजें कई चीजों के बीच से पहचाननी पड़ती हैं. अगर वो सही चुन ले, तो पक्का हो जाता है कि वो चुनी हुई है. ये ठीक-ठीक कुछ वैसी ही है जैसे दलाई लामा की चयन प्रक्रिया होती है. उन्हें भी पिछले दलाई लामा की वस्तुओं को पहचानना होता है.
चुनी गई कुमारी को पहले शुद्ध किया जाता है, ताकि वो तलेजू का साफ-सुथरा रूप बने. पुजारी उसे गुप्त तांत्रिक रस्मों से गुज़ारते हैं, जो उसके शरीर और आत्मा को साफ करते हैं. ये रस्में पूरी होने पर तलेजू उसके अंदर आ जाती है. फिर उसे कुमारी का मेकअप और कपड़े पहनाए जाते हैं. वो तलेजू मंदिर से निकलती है और सफेद कपड़े पर चलकर कुमारी घर जाती है, जहां वो अपनी दिव्यता के दौरान निवास करती हैं.
कुमारी की मान्यता इतनी अधिक है कि उनके हंसने-रोने भर से शकुन विचार माना जाता है. जून 2022 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने पाटन की कुमारी चनीरा बज्राचार्य पर स्टोरी की थी. चनीरा के साथ एक पहलू यह जुड़ा है कि कुमारी बनने के थोड़े समय बाद ही उन्हें न जाने क्यों रुलाई आने लगी और वे चार दिन रोती रहीं. फिर चौथे दिन काठमांडू से शाही परिवार के हत्याकांड की दुखद खबर आई थी.