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आलोक शुक्ला के नए नाटक 'अजीब दास्तान- एक अनकही कहानी' का हुआ शानदार मंचन

नाटक में पांच गाने थे जिनका खूबसूरत गायन और वादन अभ्यूदय मिश्रा ने किया, इन्होंने ही नाटक का जबरदस्त बैकग्राउंड म्यूजिक दिया. नाटक की मंच सज्जा टेकचंद ने की थी, जहां एक साथ दो घरों का सेट बड़ा ही अच्छा बन पड़ा.

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आलोक शुक्ला के नाटक अजीब दास्तान- एक अनकही कहानी का हिंदी कला भवन गाजियाबाद में मंचन हुआ. (Photo: ITG)
आलोक शुक्ला के नाटक अजीब दास्तान- एक अनकही कहानी का हिंदी कला भवन गाजियाबाद में मंचन हुआ. (Photo: ITG)

दिल्ली से लगे गाजियाबाद के हिंदी भवन में 20 जुलाई की शाम आलोक शुक्ला के नाटक 'अजीब दास्तान- एक अनकहा सच' की प्रस्तुति हुई. इस नाटक के लेखक  आलोक शुक्ला ने ही इसका निर्देशन भी किया. करीब 4 दशकों से रंगमंच कर रहे आलोक शुक्ला का ये नाटक मुंबई महानगर के तलाकशुदा दंपति पर आधारित है. इनके आपसी सबंधों की अजीब दास्तान में उलझकर इनका नाबालिग बच्चा ड्रग्स की लत लगा बैठता है.

करीब 75 मिनिट लंब इस नाटक से दर्शक कुछ इस तरह जुड़ गए कि प्रस्तुति कब खत्म हो गई, इसका एहसास भी दर्शकों को नहीं हुआ. नाटक में मॉडर्न लड़की सुरभि की भूमिका में नतेशा, उसके एक्स हसबैंड मिस्टर प्रणय गुप्ता के किरदार में मृदुल कुमार, प्रणय की वर्तमान पत्नी मोनाली की भूमिका में कविता, प्रणय की पहली पत्नी के टीन एज लड़के अप्पू/आदित्य की भूमिका में निखिल कुमार, मोनाली के एक्स हसबैंड प्रदीप और सुरभि के लिविंग पार्टनर अनुराग की भूमिका में टेकचंद, दोनों ही घरों में काम वाली बाई जानकी की रोचक भूमिका में निकिता, ऐसे ही अटेंडेट की छोटी भूमिका में अभ्यूदय मिश्रा और सुरभि के पिता की छोटी सी भूमिका में आलोक शुक्ला ने अपने-अपने सधे हुए अभिनय से दर्शकों पर खास छाप छोड़ी.

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नाटक में पांच गाने थे जिनका खूबसूरत गायन और वादन अभ्यूदय मिश्रा ने किया, इन्होंने ही नाटक का जबरदस्त बैकग्राउंड म्यूजिक दिया. नाटक की मंच सज्जा टेकचंद ने की थी, जहां एक साथ दो घरों का सेट बड़ा ही अच्छा बन पड़ा. प्रकाश व्यवस्था संभाल रहे सुनील चौहान ने इसे बखूबी उभारा. दोनों घरों में बारी-बारी से एक के बाद एक सीन और किरदारों के संवाद और उस पर लगातार स्पॉट ऑन/ऑफ करना बेहद जटिल और मैजिकल था. इस मैजिक को दर्शकों ने पूरे नाटक में बांध कर रखा.

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यह काम बहुत मुश्किल था, क्योंकि नाटक के गंभीर और गहराई लिए हुए संवाद थे. लेकिन निर्देशक की परिकल्पना अद्भुत थी, जिसे नाटक के प्रकाश ने बखूबी मंच पर उतारा. नाटक के अंत में इसकी गंभीर विषय वस्तु, अभिनय और उसकी अद्भुत प्रस्तुति को दर्शकों ने खूब सराहा. यहां तक कि हिंदी भवन समिति के सचिव सुभाष गर्ग ने लेखक/निर्देशक आलोक शुक्ला को कहा कि जब भी वे मंचन करना चाहें हिंदी भवन का सभागार उनके लिए सदा खुला रहेगा. नाटक में सहयोगी निर्देशन साक्षी चौहान, परिधान और रूप सज्जा में नीतू शुक्ला और विजय लक्ष्मी, निर्माण समन्वयक प्रताप सिंह और वागीश शर्मा थे, तो प्रचार में विनय शर्मा तथा निखिल थे.

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