चाबहार पोर्ट पर ट्रंप प्रशासन का फैसला भारत के लिए कितना बड़ा झटका है? क्या-क्या नुकसान होंगे

ईरान का चाबहार पोर्ट रणनीतिक और व्यापारिक तौर पर भारत के लिए काफी अहम है. इसी वजह से पिछले साल भारत ने 10 साल के लिए इसके प्रबंधन को लेकर ईरान के साथ समझौता किया है. साथ ही पोर्ट के विकास में अरबों डॉलर का निवेश कर रखा है. लेकिन अमेरिकी प्रतिबंधों से न सिर्फ ईरान बल्कि भारत के सामने चुनौतियों का अंबार खड़ा हो गया है.

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चाबहार पोर्ट पर 29 सितंबर से लागू होंगी अमेरिकी प्रतिबंध (Photo: ITG) चाबहार पोर्ट पर 29 सितंबर से लागू होंगी अमेरिकी प्रतिबंध (Photo: ITG)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 19 सितंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:02 PM IST

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पहले भारत पर 25 फीसदी टैरिफ लगाया, फिर 25 फीसदी दंडात्मक टैरिफ और लगाया, इससे भारत पर कुल 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ लागू हो चुका है. अब भारत को एक और झटका देते हुए ईरान के चाबहार पोर्ट पर 2018 से प्रतिबंधों पर मिली हुई छूट को भी खत्म कर दिया गया है. अमेरिका इसे 'अधिकतम दबाव' की रणनीति के तहत उठाया गया कदम बता रहा है. लेकिन इससे ईरान के साथ-साथ भारत और पोर्ट के जरिए व्यापार करने वाले अन्य देशों को काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा.

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29 सितंबर से लागू होंगे प्रतिबंध

अमेरिका ने 2018 में चाबहार पोर्ट को प्रतिबंधों से छूट दी थी, जिसे अब रद्द करने का फैसला लिया गया है. इस फैसले से भारत के लिए रणनीतिक और आर्थिक चुनौतियां खड़ी हो गई हैं. यह फैसला 29 सितंबर 2025 से प्रभावी होगा. चाबहार को भारत के लिए अफगानिस्तान और मध्य एशिया का एंट्री गेट माना जाता है, जिसके जरिए वह पाकिस्तान को बाईपास करते हुए अपना कारोबार करता है. लेकिन अब ऐसा कर पाना मुश्किल होगा. इससे भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी, व्यापार और जियो-पॉलिटिकल स्ट्रैटजी पर गहरा असर पड़ सकता है. 

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भारत ने पिछले साल ही ईरान के साथ चाबहार पोर्ट के मैनेजमेंट के लिए 10 साल का समझौता किया था. यह पहली बार है जब भारत विदेश में किसी बंदरगाह का प्रबंधन कर रहा है. लेकिन हालिया फैसले से इस समझौते को झटका लग सकता है. चाबहार बंदरगाह भारत के लिए एक रणनीतिक संपत्ति भी है, क्योंकि इसे चीन-पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह का जवाब माना जा रहा है, जो ईरान की सीमा के करीब से गुजरता है. अमेरिकी प्रतिबंधों की वजह से इस बंदरगाह के संचालन और विकास में बाधा आ सकती है, जिससे भारत की क्षेत्रीय कनेक्टिविटी कमजोर पड़ सकती है.

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ग्वादर का जवाब है चाबहार पोर्ट

चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए ही भारत ने ईरान के साथ चाबहार पोर्ट को लेकर समझौता किया था. इससे अफगानिस्तान में सीधी पहुंच संभव है. इसी वजह से चाबहार को ग्वादार पोर्ट का जवाब माना जा रहा था, जो सीपीईसी यानी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर के तहत बनाया जा रहा है. अमेरिकी प्रतिबंधों से भारत की यह रणनीति प्रभावित हो सकती है और इसका सीधा फायदा चीन को मिल सकता है. एक तरफ भारत एशिया में चीन के प्रभाव को कम करने की कोशिश में लगा है, दूसरी ओर अमेरिकी प्रतिबंध उसे पीछे की ओर खींचने में लगे हैं.

भारत के लिए मध्य एशिया का एंट्री गेट है चाबहार पोर्ट (Photo: ITG)

चाबहार बंदरगाह इंटरनेशनल नॉर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कॉरिडोर यानी INSTC का एक अहम हिस्सा है, जो भारत, ईरान, रूस और यूरोप के बीच व्यापार को बढ़ाने के हिसाब से तैयार किया गया है. इस परियोजना के जरिए न सिर्फ माल सप्लाई सस्ती पड़ती, बल्कि समय की भी काफी बचत हो सकती है. प्रतिबंधों की वजह से इस कॉरिडोर के विकास में देरी हो सकती है, जो भारत के लिए बड़ा रणनीतिक और आर्थिक नुकसान होगा. सात हजार किलोमीटर लंबे इस कॉरिडोर के जरिए भारत, ईरान से लेकर अफगानिस्तान, अज़रबैजान, रूस, आर्मेनिया, मिडिल एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई आसान हो सकती है.

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भारत ने कर रखा है मोटा निवेश

भारत ने चाबहार पोर्ट के विकास में भारी निवेश कर रखा है. साल 2024 में भारत ने इंडिया पोर्ट्स ग्लोबल लिमिटेड (IPGL) के जरिए 10 साल के लिए शाहिद बेहेश्ती टर्मिनल के संचालन का करार किया था, जिसमें 120 मिलियन डॉलर का निवेश और 250 मिलियन डॉलर की वित्तीय मदद शामिल थी. प्रतिबंधों के कारण इस निवेश में अब जोखिम बढ़ गया है, क्योंकि संचालन में शामिल कंपनियां और व्यक्ति अमेरिकी प्रतिबंधों के दायरे में आ सकते हैं.

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चाबहार बंदरगाह के जरिए भारत ने अफगानिस्तान को 20 हजार टन गेहूं और ईरान को कीटनाशक जैसी सहायता भेजी थी. प्रतिबंधों के कारण इस तरह की व्यापारिक गतिविधियों में कमी आ सकती है, जिससे भारत का क्षेत्रीय आर्थिक प्रभाव कम हो सकता है. ईरान लंबे वक्त से भारत का परस्पर सहयोगी रहा है और इसी वजह से भारत ने 2003 में ही चाबहार को विकसित करने में सहयोग देने का प्रस्ताव रखा था. इसी के बाद 2016 में पोर्ट को विकसित करने के लिए ईरान के साथ एक समझौता किया गया, जो सालाना रिन्यू किया जाता रहा. हालांकि पिछले साल ही इसे 10 के लिए कॉन्ट्रैक्ट में बदल दिया गया. लेकिन अब अगर प्रतिबंधों के वजह से भारत पीछे हटता है तो ईरान के साथ संबंधों पर असर पड़ सकता है.

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प्रतिबंधों से चीन को होगा फायदा?

अमेरिकी प्रतिबंध सीधे तौर पर चीन और पाकिस्तान को फायदा पहुंचाने वाले हैं. चाबहार बंदरगाह का विकास अगर रुकेगा तो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह और चीन की क्षेत्रीय महत्वाकांक्षा को बल मिल सकता है. ग्वादर बंदरगाह अब तक अपने मकसद में सफल नहीं हुआ है, लेकिन चाबहार की विफलता से उसे फायदा मिल सकता है. पहले से ही ट्रंप टैरिफ की चुनौतियां का सामना कर रहे भारत को अब इस नई मुश्किल से निपटना होगा. इसके लिए अमेरिकी पक्ष से बातचीत कर बीच का रास्ता निकलना होगा.

जियो-पॉलिटिकल विश्लेषक ब्रह्म चेलानी ने इसे अमेरिका का दंडात्मक कदम बताया है. उन्होंने एक्स पर पोस्ट करते हुए लिखा, 'ट्रंप प्रशासन ने भारत पर दबाव और सख्त कर दिया है. भारतीय सामानों पर 50% टैरिफ लगाने से संतुष्ट न होकर, अब उसने भारत की तरफ से संचालित ईरान के चाबहार बंदरगाह के लिए 2018 प्रतिबंधों की छूट को रद्द करके का दंडात्मक कदम उठाया है.'

चेलानी ने आगे कहा, 'इस छूट से भारत को 2024 में चाबहार बंदरगाह के विकास और संचालन के लिए 10 साल के समझौते पर हस्ताक्षर करने की इजाजत मिल गई, जो अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ भारत के व्यापार का एंट्री गेट है और पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह, जो कि चीन की बेल्ट एंड रोड परियोजना है, का रणनीतिक जवाब है.'

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ब्रह्म चेलानी लिखते हैं, 'विडंबना यह है कि भारत ने एक बार ट्रंप के पहले कार्यकाल के प्रतिबंधों का पालन करने के लिए ईरान से सभी तेल आयात रोककर अपने हितों को किनारे कर दिया था. इस वजह से बीजिंग को बहुत बड़ा फायदा हुआ, जिससे वह ईरान के कट-रेट कच्चे तेल का एकमात्र खरीदार बन गया. जो दुनिया का सबसे सस्ता है, जिससे भारत की कीमत पर चीन की ऊर्जा सुरक्षा मज़बूत हुई. ट्रंप के अधिकतम दबाव का मतलब हमेशा बीजिंग के लिए अधिकतम लाभ रहा है और इसकी कीमत भारत को चुकानी पड़ी है.

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