इजरायल से जंग के बाद क्या ढह जाएगा इस्लामिक शासन? अब क्या होगा ईरान का भविष्य

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में शासकों ने अपने रूढ़िवादी समाजों को आधुनिक बनाने की कोशिश की है, वहीं इस्लामी गणराज्य ईरान में, घर में धार्मिक शासन और विदेश में टकराव का तर्क अभी भी कायम है.

Advertisement
अमेरिकी हमलों के खिलाफ तेहरान में प्रोटेस्ट अमेरिकी हमलों के खिलाफ तेहरान में प्रोटेस्ट

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 24 जून 2025,
  • अपडेटेड 12:18 PM IST

इजरायल और ईरान के बीच 12 दिन से जारी जंग अब थम चुकी है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को दोनों देशों के बीच सीजफायर का ऐलान कर दिया. लेकिन ईरान पर हुए इजरायली हमले और अमेरिकी बमबारी ने इस्लामिक रिपब्लिक को उसके 50 साल के इतिहास में सबसे बड़ी चुनौती दी है. यहां तक कि इस जंग के बीच वॉशिंगटन और तेल अवीव ने खुले तौर पर सुप्रीम लीडर अयातुल्ला खामेनेई की हत्या के संकेत भी दे दिए.

Advertisement

ईरान का भविष्य कैसे होगा?

ईरानी मीडिया की रिपोर्ट के मुताबिक इस चौंकाने वाली घटना ने ईरानियों को अविश्वास के साथ तेजी से बदल रहे हालात पर गौर करने के लिए मजबूर कर दिया है. दशकों के ठहराव और टूटी हुई उम्मीदों के साथ ईरानी नागरिक देश के भविष्य को महत्वाकांक्षा और भय दोनों के साथ देखने की कोशिश करते हैं. कई लोग एक विघटित देश की संभावना से कांप उठते हैं, कुछ लोग चिंतित हैं कि युद्ध के बाद, ईरान दशकों तक एक फेल स्टेट में बदल हो सकता है, जिसकी चेतावनी पड़ोसी देश इराक और अफगानिस्तान दे सकते हैं.

इजरायल से जंग के बाद ईरान में अगर धर्मतंत्र खत्म हो जाए तो तीन तरह के सैनेरियो बन सकते हैं. 

1. सेना के भीतर एक गुट सत्ता पर कब्ज़ा कर सकता है और बुनियादी बदलावों के लिए दबाव बना सकता है
2. निर्वासित विपक्षी समूह पश्चिमी समर्थन के साथ या उसके बिना भी अहम भूमिका हासिल कर सकते हैं
3. घरेलू विरोधियों का गठबंधन हावी हो सकता है

Advertisement

चौथे सैनेरियो के रूप में खामेनेई से ज़्यादा कट्टरपंथी राज्य का उदय बहुत कम संभावना वाला है, लेकिन असंभव भी नहीं है. मुमकिन है यह अल्पकालिक होगा, क्योंकि इससे तुरंत अमेरिका और इजरायल के कड़े प्रहार शुरू हो जाएंगे. इससे एक ऐसी जनता को झटका लगेगा जो पहले से ही बुज़ुर्ग नेता के कट्टरपंथी शासन से तंग आ चुकी है.

किन नीतियों के साथ बढ़ेगा देश

अपने सभी मतभेदों के बावजूद इन तीन संभावित सैनेरियो में बहुत सी समानताएं होंगी. वे ज्यादा धर्मनिरपेक्ष और विकास के पैरोकार होंगे. यह लगभग तय है कि वे इस्लामी गणराज्य के पश्चिम-विरोधी रुख से दूर रहेंगे. अयातुल्ला रूहोल्लाह खुमैनी और उनके उत्तराधिकारी की ओर से स्थापित सिस्टम को धार्मिक शासन, हिंसक दमन, भ्रष्टाचार और कुप्रबंधन से परिभाषित किया जाता है.

ये भी पढ़ें: न अपने आसमान पर कंट्रोल दिखा, न मदद के लिए आए रूस-चीन... ईरान के लिए इस युद्ध के 5 सबक क्या हैं?

ईरान के इतिहास में बहुत कम सरकारों ने एक ही सिस्टम में इतने सारी खामियों को समेटा है. तीनों में से जो भी सैनेरियो बनेगा, यह बहुत कम संभावना है कि कोई भी ऐसी विफलताओं में इस्लामी गणराज्य का मुकाबला कर सकेगा. यहां तक कि सबसे कम डेमोक्रेटिक सैनेरियो एक सैन्य सरकार का उदय भी संभावित रूप से सामाजिक स्वतंत्रता और आर्थिक विकास ला सकता है.

Advertisement

क्या ईरान अगला सीरिया, इराक बन जाएगा?

हाल के वर्षों में, इस्लामिक गणराज्य के कई विरोधियों ने बड़े बदलाव के आह्वान का विरोध किया, क्योंकि उन्हें डर था कि ईरान युद्ध-ग्रस्त सीरिया की तरह अराजकता में उतर सकता है. फिर भी हाल के महीनों में कम से कम इंटरनेशनल सैनेरियो में सीरिया के पुनर्वास ने कुछ लोगों के लिए उम्मीद जगाई है.

कट्टरपंथी इस्लामी आतंकवादी समूहों के साथ अपने पिछले संबंधों के बावजूद नए सीरियाई नेता अहमद अल-शरा ने देश को पश्चिम के साथ जोड़ दिया और इसे संभावित विकास के रास्ते पर आगे कर दिया. अमेरिकी प्रतिबंध हटा दिए गए हैं और सीरिया अब ग्लोबल स्विफ्ट बैंकिंग सिस्टम में फिर से शामिल होने की कगार पर है. अमेरिकी कंपनियों ने देश के बाजार में तेजी से दाखिल होने के लिए कदम उठाए हैं. हालांकि, स्थिति अभी भी नाजुक है और अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पिछले महीने कहा था कि सीरिया में जल्द ही गृहयुद्ध छिड़ सकता है.

विकास का अमेरिकी मॉडल

सीरिया का स्वागत करके अमेरिका यह संदेश देना चाहता है कि पश्चिम के लिए अपनी दुश्मनी छोड़ने वाले देश जल्दी से वैश्विक दायरे में फिर से आ सकते हैं और समृद्धि के मौके हासिल कर सकते हैं. इस मॉडल का एक वर्जन 20वीं सदी में कोरियाई प्रायद्वीप पर आजमाया गया था, जिसमें उत्तर कोरिया के खिलाफ़ दक्षिण कोरिया को अमेरिका का समर्थन हासिल था. कोरियाई युद्ध के बाद, दक्षिण कोरिया ने पश्चिमी गठबंधनों और लोकतांत्रिक संस्थाओं को अपनाया, जिसने एक गरीब, सत्तावादी राज्य को आधुनिक, समृद्ध लोकतंत्र में बदल दिया.

Advertisement

ये भी पढ़ें: युद्ध आखिरकार खत्म... सीजफायर पर कंफ्यूजन का The End! ईरान के अटैक में 4 इजरायलियों की मौत

ईरान को चीनी और रूसी नियंत्रण से बाहर निकालने के लिए वॉशिंगटन और उसके सहयोगी इसी तरह का नजरिया अपना सकते हैं. पश्चिमी देशों के समर्थन से ईरान की प्रगति का मार्ग इस्लामिक गणराज्य के अधीन पिछले पांच दशकों के लंबे और दमघोंटू दौर की तुलना में कहीं ज्यादा आसान हो सकता है.

विकास का यह मॉडल कई ईरानियों की आकांक्षाओं से भी गहराई से जुड़ा है. वैचारिक झगड़ों से थककर वे समृद्धि की कामना करते हैं और बराबरी के साथ सम्मान भी चाहते हैं. साल 2022 में देश भर में हुए महिला, जीवन, स्वतंत्रता के लिए हुए प्रदर्शनों में सामान्य जीवन का सिद्धांत बार-बार दोहराया गया.

युवा पीढ़ी के कंधों पर जिम्मेदारी

ईरान की युवा पीढ़ी, जो इस आंदोलन के पीछे अहम ताकत है, इस क्षमता का एक बड़ा हिस्सा है. 1979 के बाद से, यह एकमात्र ऐसा समूह रहा है जिसने सत्ता को हिजाब कानून में रियायत देने के लिए मजबूर किया है, जिससे व्यवस्था के मुख्य सामाजिक एजेंडे में से एक विफल हो गया है. इसी पीढ़ी के इस्लामी गणराज्य की जगह लेने की चाह रखने वाली किसी अन्य तानाशाही के आगे झुकने की संभावना नहीं है.

Advertisement

ये भी पढ़ें: ईरान-इजरायल के बीच सीजफायर... अगर ये युद्ध लंबा चलता तो भारत पर क्या असर होता?

कुछ ईरानी 2003 में अमेरिकी आक्रमण के बाद इराक में मची उथल-पुथल का हवाला देते हुए ईरान के भविष्य में संभावित अस्थिरता को लेकर परेशान हैं. फिर भी ईरान ने ही उस संघर्ष को काफी हद तक भड़काया. यह साफ नहीं है कि भविष्य के ईरानी समाज को कमजोर करने में किसकी रुचि होगी. हाल के दशकों में, फारस की खाड़ी में ईरान के कुछ पड़ोसियों ने विचारधारा से ऊपर विकास को तरजीह दी है.

रूढ़िवाद छोड़कर विकास की चाह

सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में शासकों ने अपने रूढ़िवादी समाजों को आधुनिक बनाने की कोशिश की है, वहीं इस्लामी गणराज्य ईरान में, घर में धार्मिक शासन और विदेश में टकराव का तर्क अभी भी कायम है. 1979 की इस्लामी क्रांति ने इस क्षेत्र में एक निर्णायक क्षण को चिह्नित किया, जिसने कई देशों को इस्लामवाद और धार्मिक चरमपंथ की ओर मोड़ दिया. यह लहर सऊदी अरब से होकर दूसरे देशों तक पहुंची.

सऊदी अरब के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान ने 2017 में आधुनिकीकरण प्रयासों को आगे बढ़ाते हुए कहा था, 'पिछले 30 साल में जो कुछ हुआ वह सऊदी अरब नहीं है. पिछले 30 साल में इस क्षेत्र में जो कुछ हुआ वह मिडिल ईस्ट नहीं है.' एक लोकतांत्रिक ईरान इस क्षेत्र के लिए एक शक्तिशाली नए मॉडल के रूप में काम कर सकता है, जो अन्य देशों को अधिक खुले और जवाबदेह शासन की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित कर सकता है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement