अरावली को बचाना क्यों जरूरी, नियम बदलने के खतरे क्या? सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से पूछे ये 6 सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने अरावली की परिभाषा पर चिंता जताई है. 20 नवंबर के फैसले को 21 जनवरी तक लागू करने पर रोक लगा दी है. कोर्ट ने केंद्र से सवाल किए कि 500 मीटर गैप वाली परिभाषा से संरक्षण क्षेत्र कम तो नहीं होगा? खनन से इकोलॉजिकल कनेक्टिविटी कैसे बचेगी? नई हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनेगी.
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अरावली पहाड़ियों से दिखता जयपुर शहर. (File Photo: Getty)
सुप्रीम कोर्ट ने आज अरावली हिल्स की परिभाषा और खनन से जुड़े मामले पर महत्वपूर्ण सुनवाई की. 20 नवंबर 2025 के अपने फैसले में कोर्ट ने अरावली की एक समान परिभाषा स्वीकार की थी, लेकिन आज कोर्ट ने कहा कि इस फैसले को लागू नहीं किया जाएगा, जब तक अगली सुनवाई (21 जनवरी 2026) में स्पष्टता न आ जाए. कोर्ट ने चिंता जताई कि अरावली रेंज की परिभाषा सही तरीके से होनी चाहिए वरना पर्यावरण को नुकसान हो सकता है.
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20 नवंबर 2025 का फैसला क्या था?
सुप्रीम कोर्ट ने पर्यावरण मंत्रालय की कमेटी की सिफारिश स्वीकार की...
अरावली हिल: कोई भी जगह जो स्थानीय जमीन से 100 मीटर या उससे ज्यादा ऊंची हो.
अरावली रेंज: दो या ज्यादा ऐसी हिल्स जो एक-दूसरे से 500 मीटर के अंदर हों, तो उनके बीच की जमीन (घाटियां, छोटी पहाड़ियां आदि) भी रेंज का हिस्सा मानी जाएगी.
नए खनन लाइसेंस पर रोक तक कि सस्टेनेबल माइनिंग प्लान तैयार न हो जाए.
कोर/संवेदनशील इलाकों (जैसे वन्यजीव क्षेत्र, वेटलैंड) में खनन पूरी तरह प्रतिबंधित (कुछ खास मिनरल्स को छोड़कर).
पहले से चल रहे खनन को सख्त नियमों के साथ जारी रखने की अनुमति.
इस फैसले के बाद कुछ लोगो ने चिंता जताई कि 100 मीटर से कम ऊंची पहाड़ियां संरक्षण से बाहर हो जाएंगी. खनन बढ़ सकता है.
चीफ जस्टिस की बेंच ने कहा कि नवंबर के फैसले की कुछ बातें गलत समझी जा रही हैं, इसलिए स्पष्टता जरूरी है. कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब मांगा और एक हाई-पावर्ड एक्सपर्ट कमेटी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसमें डोमेन एक्सपर्ट्स (पर्यावरण, भूविज्ञान, इकोलॉजी विशेषज्ञ) हों.
कोर्ट के मुख्य सवाल...
क्या 500 मीटर की दूरी वाली परिभाषा से संरक्षण क्षेत्र कम हो जाएगा. एक स्ट्रक्चरल पैराडॉक्स बनेगा?
क्या इससे गैर-अरावली क्षेत्र बढ़ जाएगा जहां नियंत्रित खनन हो सकता है?
अगर दो 100 मीटर ऊंची हिल्स के बीच 700 मीटर या ज्यादा गैप हो, तो बीच की जमीन में खनन की अनुमति दी जाएगी?
अरावली की इकोलॉजिकल कंटिन्यूटी (पारिस्थितिक जुड़ाव) कैसे बचाई जाएगी?
अगर कोई बड़ा नियामक कमी पाई जाती है, तो क्या रेंज की संरचनात्मक अखंडता बचाने के लिए बड़ा मूल्यांकन जरूरी होगा?
क्या मीडिया में फैली आलोचना सही है कि 11 हजार से ज्यादा पहाड़ियां खनन के लिए खुल जाएंगी? क्या पूरी वैज्ञानिक मैपिंग जरूरी है?
कोर्ट ने कहा कि खनन का कोई प्लान लागू करने से पहले निष्पक्ष और स्वतंत्र जांच होनी चाहिए. के. परमेश्वर को अमिकस क्यूरी बनाया गया. अगली सुनवाई 21 जनवरी 2026 को होगी.
वैज्ञानिक अध्ययनों (FSI, CEC रिपोर्ट्स, पर्यावरण विशेषज्ञों) के अनुसार...
संरचनात्मक पैराडॉक्स: हां, संभव है. अरावली सिर्फ ऊंची पहाड़ियां नहीं, बल्कि पूरा इकोसिस्टम है. छोटी पहाड़ियां (100 मीटर से कम), घाटियां और कनेक्टिंग क्षेत्र ग्राउंडवाटर रिचार्ज, वन्यजीव कॉरिडोर और रेगिस्तान रोकने में महत्वपूर्ण हैं. इन्हें बाहर करने से इकोलॉजिकल कनेक्टिविटी टूट सकती है.
गैर-अरावली क्षेत्र बढ़ना: अध्ययनों से पता चलता है कि अरावली का 90% हिस्सा 100 मीटर से कम ऊंचाई वाला है, लेकिन ये हिस्से भी पानी सोखने और जैव विविधता के लिए जरूरी हैं. इन्हें बाहर करने से खनन का दायरा बढ़ सकता है.
500 मीटर से ज्यादा गैप में खनन: वैज्ञानिक रूप से गलत है. अरावली एक कनेक्टेड सिस्टम है. बड़े गैप में भी छोटी पहाड़ियां और घाटियां वन्यजीवों के लिए कॉरिडोर बनाती हैं. खनन से ये टूट जाएंगे, जिससे जानवरों की आवाजाही रुकेगी और जैव विविधता कम होगी.
इकोलॉजिकल कंटिन्यूटी बचाना: पूरी रेंज को लैंडस्केप लेवल पर देखना चाहिए. खनन से मिट्टी का कटाव, पानी का प्रदूषण, धूल और ग्राउंडवाटर लेवल गिरता है. अध्ययनों में पाया गया कि राजस्थान में 50 सालों में 31 पहाड़ियां खनन से गायब हो गईं.
नियामक कमी और मूल्यांकन: हां, जरूरी. खनन से लंबे समय में रेगिस्तान फैल सकता है (थार डेजर्ट का पूर्व की ओर बढ़ना), दिल्ली-NCR में धूल और पानी की कमी बढ़ सकती है. कम्युलेटिव इम्पैक्ट असेसमेंट (सभी खदानों का कुल प्रभाव) जरूरी है.
11 हजार पहाड़ियां और मैपिंग: कुछ रिपोर्ट्स में अनुमान है कि 100 मीटर क्राइटेरिया से कई क्षेत्र बाहर हो सकते हैं, लेकिन सटीक संख्या के लिए पूरी सैटेलाइट और ग्राउंड मैपिंग जरूरी. पुरानी FSI परिभाषा (स्लोप, बफर जोन आदि) ज्यादा व्यापक संरक्षण देती थी.
वैज्ञानिकों का कहना है कि खनन का कोई भी रूप (नियंत्रित भी) अरावली जैसे नाजुक इकोसिस्टम में जोखिम भरा है. संरक्षण के लिए ऊंचाई से ज्यादा इकोलॉजी, हाइड्रोलॉजी और जैव विविधता पर आधारित परिभाषा बेहतर होगी. कोर्ट की नई कमेटी से उम्मीद है कि ये सवालों के सही जवाब देगी और अरावली की रक्षा मजबूत होगी. यह मामला पर्यावरण और विकास के बीच संतुलन का बड़ा उदाहरण है.
ऋचीक मिश्रा