दिल्ली की हवा आजकल फिर से जहरीली हो गई है. सर्दियों में स्मॉग की चादर फैल जाती है, जिससे सांस लेना मुश्किल हो जाता है. लेकिन दुनिया के कई बड़े शहर कभी दिल्ली जैसी ही समस्या से जूझ चुके हैं. वहां प्रदूषण इतना बढ़ गया था कि लोग बीमार पड़ने लगे, दृश्यता कम हो गई और मौतों का आंकड़ा बढ़ गया. लेकिन इन शहरों ने हार नहीं मानी.
उन्होंने सख्त कानून, नई तकनीक और लोगों की भागीदारी से प्रदूषण को काबू किया. आज हम बात करेंगे लंदन, बीजिंग, मैक्सिको सिटी, लॉस एंजिल्स और पेरिस की. दिल्ली को इनसे सबक लेना चाहिए. आइए जानें कैसे इन शहरों ने हवा साफ की...
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लंदन को 1950 के दशक में 'ग्रेट स्मॉग' ने जकड़ लिया था. ठंडे मौसम में घरों और फैक्ट्रियों से कोयला जलाने से धुंध छा गई. दृश्यता कुछ फीट रह गई. 10000 से ज्यादा लोग मारे गए. यह दिल्ली के स्मॉग जैसा ही था.
फिर क्या हुआ? 1956 में ब्रिटेन ने 'क्लीन एयर एक्ट' पास किया. इसमें घरों और फैक्ट्रियों से धुआं नियंत्रित किया गया. स्मोक कंट्रोल एरिया बनाए गए, जहां सिर्फ साफ ईंधन इस्तेमाल हो. लोगों को साफ ईंधन के लिए सब्सिडी दी गई. बाद में 1968 में कानून को और सख्त किया. आजकल अल्ट्रा लो एमिशन जोन (ULEZ) है, जहां गंदे वाहनों से पैसे वसूले जाते हैं.
नतीजा? दशकों में हवा बहुत साफ हो गई. छह महीनों में जहरीली हवा एक तिहाई कम हुई. लेकिन अभी भी नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और कण प्रदूषण से हजारों मौतें होती हैं. फिर भी, लंदन ने साबित किया कि कानून और सब्सिडी से बदलाव आ सकता है.
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बीजिंग में 1980 के दशक से तेजी से फैक्ट्रियां बढ़ीं. कोयला जलाने वाली बिजली संयंत्र और करोड़ों कारों से हवा जहरीली हो गई. 2013-17 के बीच पीएम2.5 कणों का स्तर बहुत ऊंचा था, जो फेफड़ों को नुकसान पहुंचाते हैं. यह दिल्ली के AQI जैसा था.
1998 से कदम उठाए गए. अल्ट्रा-लो एमिशन स्टैंडर्ड लगाए, हवा की निगरानी के लिए स्टेशन बनाए. सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाया, वाहनों के उत्सर्जन को कंट्रोल किया. फैक्ट्रियों को साफ ईंधन पर शिफ्ट करने के लिए इंसेंटिव दिए. डेटा पारदर्शी रखा, ताकि लोग जान सकें. अर्थव्यवस्था को भारी उद्योग से हटाकर हल्के क्षेत्रों में ले गए. कोयले से गैस पर सब्सिडी दी.
परिणाम कमाल का! 2013-17 में पीएम2.5 35% कम हो गया, आसपास के इलाकों में 25%. संयुक्त राष्ट्र ने कहा कि दुनिया का कोई शहर इतनी तेजी से नहीं सुधरा. 50% तक प्रदूषण घटा. लेकिन अभी भी मास्क लगाने पड़ते हैं.
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1980-90 के दशक में मैक्सिको सिटी दुनिया का सबसे प्रदूषित शहर था. लाखों कारें और ऊंचाई वाली घाटी से प्रदूषण फंस जाता था. सांस लेना सिगरेट पीने जैसा था. 1992 में यूएन ने इसे सबसे खराब बताया. दिल्ली जैसी कारों की भीड़ थी.
1989 में पहला कदम: कारों पर नंबर के आधार प्रतिबंध. सोमवार से शुक्रवार 20% कारें सड़क पर नहीं. फिर प्रोएयर रिफॉर्म्स लाया गया, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट बढ़ाया, वाहनों के उत्सर्जन मानक सख्त किए.
सफलता मिली. हवा साफ हुई, लेकिन अब आबादी बढ़ने से समस्या फिर लौट रही. लोग दूसरी कारें खरीद लेते हैं. मई में पीएम2.5 छह गुना ऊपर था, इमरजेंसी लगानी पड़ी. फिर भी, शुरुआती कदमों से बड़ा सुधार हुआ.
लॉस एंजिल्स को 'स्मॉग कैपिटल' कहा जाता था. 1940-70 के दशक में कारों और फैक्ट्रियों से ओजोन और कण प्रदूषण चरम पर था. गर्मी में स्मॉग फैलता, जो फेफड़ों को जला देता. यह दिल्ली के वाहन प्रदूषण जैसा था.
क्लीन एयर एक्ट से शुरूआत हुई. सड़क पर वाहनों के उत्सर्जन पर फोकस. स्मॉग चेक प्रोग्राम बनाया गया. साफ ईंधन का इस्तेमाल होने लगा. बस-ट्रक इंजन साफ किए गए. पोर्ट पर डीजल ट्रकों को हटाया. 1990 से सैकड़ों नीतियां बनीं.
नतीजे शानदार! 2000 से ओजोन के खराब दिन 40% कम. पीएम2.5 में भारी गिरावट. 2.8 मिलियन स्कूल अनुपस्थितियां टलीं, $220 मिलियन की बचत. बच्चों के फेफड़े मजबूत हुए. लेकिन अभी भी अमेरिका का सबसे प्रदूषित शहर है.
पेरिस 2000 के दशक में यूरोप का प्रदूषित शहर था. डीजल कारों से नाइट्रोजन डाइऑक्साइड और पीएम2.5 ऊंचा. सांस की बीमारियां बढ़ीं. दिल्ली जैसा ट्रैफिक जाम.
मेयर ऐन हिडाल्गो ने कारों को कम किया. लो एमिशन जोन, साइकिल लेन बढ़ाईं (1,400 किमी), पैदल क्षेत्र बनाए. डीजल वाहन 2020 तक बैन. स्पीड लिमिट 50 किमी/घंटा, SUV पर ज्यादा पार्किंग शुल्क. सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट इलेक्ट्रिक.
परिणाम? 2005 से पीएम2.5 55% कम, NO2 आधा. 2010-19 में प्रदूषण से होने वाली मौतें एक तिहाई घटीं. 40% कुल प्रदूषण कम. ओलंपिक 2024 के लिए शहर और साफ हुआ.
आजतक साइंस डेस्क