घुट रही सांस, राहत की नहीं आस... दिल्ली-NCR के आसमान में क्यों टिक गया जहरीला स्मॉग?

दिल्ली-एनसीआर में कमजोर हवाओं ने पॉल्यूशन को फंसा दिया, जिससे रविवार को एक्यूआई 366 (बहुत खराब) पहुंच गया. पीएम2.5 189.6 और पीएम10 316 पर पहुंच गया. इससे सांस लेने में तकलीफ, फेफड़ों-दिल की बीमारियां, अस्थमा बढ़ने का खतरा बढ़ गया है. बच्चे और बुजुर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित हैं. 4 नवंबर तक राहत नहीं.

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इंडिया गेट के सामने स्मॉग गन स्प्रे करता हुआ. जबकि राहत मिल नहीं रही है. (Photo: PTI) इंडिया गेट के सामने स्मॉग गन स्प्रे करता हुआ. जबकि राहत मिल नहीं रही है. (Photo: PTI)

आजतक साइंस डेस्क

  • नई दिल्ली,
  • 03 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 2:02 PM IST

सर्दियों का मौसम शुरू होते ही दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों (NCR) में हवा फिर जहरीली हो गई है. रविवार को हवा की गुणवत्ता इतनी खराब हो गई कि एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 366 तक पहुंच गया, जो 'बहुत खराब' श्रेणी में आता है. लोग सांस लेने में तकलीफ महसूस कर रहे हैं, खासकर बच्चे, बूढ़े और फेफड़ों या दिल के मरीज. लेकिन सवाल यह है कि आखिर क्यों इस जहरीली हवा से कोई राहत नहीं मिल रही? इससे सेहत को क्या-क्या खतरा हो सकता है? 

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क्यों बनी हुई है हवा की खराबी?

दिल्ली की हवा में जहर फैलाने वाले मुख्य दोषी हैं पीएम2.5 और पीएम10 नाम के कण. पीएम2.5 वे बहुत बारीक कण हैं, जिनका आकार 2.5 माइक्रोमीटर से छोटा होता है. ये इतने छोटे होते हैं कि आसानी से फेफड़ों तक पहुंच जाते हैं. वहीं, पीएम10 के कण थोड़े बड़े (10 माइक्रोमीटर तक) होते हैं. रविवार को पीएम2.5 की मात्रा 189.6 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर थी, जो सामान्य से कहीं ज्यादा है. पीएम10 316 पर पहुंच गया.

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केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के आंकड़ों के मुताबिक, एक दिन पहले एक्यूआई 303 था, जो रविवार को तेजी से 366 हो गया. इसका मुख्य कारण? कमजोर हवाएं! हवा की गति 8 किलोमीटर प्रति घंटे से नीचे आ गई, जो उत्तर-पश्चिम दिशा से आ रही थी.

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इससे प्रदूषक कण हवा में फंस गए और फैल नहीं पाए. दिल्ली के एयर क्वालिटी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम (AQEWS) ने बताया कि जब हवा की गति 10 किलोमीटर प्रति घंटे से कम हो और वेंटिलेशन इंडेक्स 6,000 वर्ग मीटर प्रति सेकंड से नीचे हो, तो प्रदूषण फैलना मुश्किल हो जाता है. वो एक ही जगह रुक जाता है.

मौसम विभाग  के अनुसार, रविवार को दिल्ली का अधिकतम तापमान 30.7 डिग्री सेल्सियस रहा (सामान्य से 0.5 डिग्री कम), न्यूनतम 16.8 डिग्री (सामान्य से 1.5 डिग्री ज्यादा). नमी 75% थी. सोमवार को हल्का कोहरा भी है.  ये सब मिलकर प्रदूषण को और गहरा कर रहे हैं. 

एनसीआर के दूसरे शहरों की हालत भी खराब है...

  • गाजियाबाद: 351 (बहुत खराब)
  • गुरुग्राम: 357 (बहुत खराब)
  • नोएडा: 348 (बहुत खराब)
  • ग्रेटर नोएडा: 340 (बहुत खराब)
  • फरीदाबाद: 215 (खराब)
  • हरियाणा का धरूहेरा: 434 (गंभीर)
  • महाराष्ट्र का भिवंडी: 376 (बहुत खराब)

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दिल्ली में वाजिरपुर स्टेशन पर एक्यूआई सबसे ज्यादा 413 था, जो 'गंभीर' श्रेणी में है. कुल 3 स्टेशन गंभीर (400 से ऊपर) और 28 बहुत खराब (300 से ऊपर) दर्ज किए गए. एक्यूआई की श्रेणियां सीपीसीबी के मानकों के अनुसार हैं:

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  • 0-50: अच्छी
  • 51-100: संतोषजनक
  • 101-200: मध्यम
  • 201-300: खराब
  • 301-400: बहुत खराब
  • 401-500: गंभीर

1 नवंबर से दिल्ली में बीएस-3 या उससे कम उत्सर्जन वाले वाहनों पर प्रतिबंध लगा है, लेकिन ये कदम अभी पर्याप्त नहीं लग रहे. एक्यूईडब्ल्यूएस के अनुसार, हवा की गुणवत्ता 4 नवंबर तक 'बहुत खराब' बनी रहेगी.

स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ रहा है?

इस जहरीली हवा से सांस लेना मुश्किल हो जाता है. विशेषज्ञों का कहना है कि पीएम2.5 और पीएम10 फेफड़ों में जमा हो जाते हैं, जिससे सांस की बीमारियां बढ़ जाती हैं. बच्चे, बूढ़े और पहले से फेफड़े या दिल के रोगी सबसे ज्यादा प्रभावित होते हैं.

मुख्य स्वास्थ्य जोखिम

  • सांस लेने में तकलीफ: आंखों में जलन, गला खराब, खांसी और सांस फूलना. गंभीर मामलों में अस्थमा का दौरा पड़ सकता है.
  • दिल की समस्याएं: प्रदूषक कण रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे हार्ट अटैक का खतरा बढ़ता है.
  • फेफड़ों की क्षति: लंबे समय तक सांस लेने से फेफड़ों में सूजन और कैंसर का जोखिम.
  • बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर असर: बच्चों का विकास रुक सकता है. गर्भ में बच्चे को नुकसान पहुंच सकता है.
  • त्वचा और आंखों की समस्या: त्वचा पर खुजली और आंखों में जलन.

विशेषज्ञों के अनुसार, अगर एक्यूआई 300 से ऊपर हो, तो बाहर कम निकलें. मास्क पहनें (एन95 या बेहतर), घर के दरवाजे-खिड़कियां बंद रखें और एयर प्यूरीफायर का इस्तेमाल करें. डॉक्टरों की सलाह है कि दूध, फल-सब्जियां ज्यादा खाएं और पानी पीते रहें.

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विशेषज्ञों की राय 

  • डॉ. अरविंद कुमार (फेफड़ों के विशेषज्ञ, सर गंगा राम हॉस्पिटल): पीएम2.5 कण इतने बारीक हैं कि वे खून में घुल जाते हैं. इससे न सिर्फ सांस, बल्कि पूरे शरीर पर असर पड़ता है. दिल्ली में हर साल सर्दियों में सांस के मरीज 20-30% बढ़ जाते हैं.
  • प्रो. अनुमिता रॉय चौधरी (सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरनमेंट): कमजोर हवाओं के अलावा, पराली जलाना, वाहनों का धुआं और उद्योग मुख्य वजहें हैं. ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (जीआरएपी) को सख्ती से लागू करने की जरूरत है.
  • सीपीसीबी अधिकारी: हम निगरानी कर रहे हैं, लेकिन मौसम परिवर्तन से राहत मिलने में समय लगेगा. लोगों को भी जागरूक रहना चाहिए.

क्या करें आम लोग?

  • घर पर रहें: संभव हो तो बाहर न निकलें, खासकर सुबह-शाम.
  • मास्क और फिल्टर: एन95 मास्क लगाएं, एसी में हीपा फिल्टर लगवाएं.
  • वाहन कम इस्तेमाल: पब्लिक ट्रांसपोर्ट या साइकिल चुनें.
  • पौधे लगाएं: घर में ऑक्सीजन देने वाले पौधे रखें.

दिल्ली सरकार और केंद्र मिलकर कदम उठा रहे हैं, लेकिन लंबे समाधान के लिए बड़े बदलाव चाहिए. अगर हवा साफ न हुई, तो स्वास्थ्य संकट और गहरा सकता है. 

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