जब भी भारत की अंतरिक्ष यात्रा की बात होती है, तो सबसे पहला नाम आता है विंग कमांडर राकेश शर्मा का. 3 अप्रैल 1984 को राकेश शर्मा पहले भारतीय बन गए थे जो अंतरिक्ष में गए. और यह सपना पूरा करने में सबसे बड़ा हाथ रूस (तब सोवियत संघ) का था. आज भी भारत का गगनयान मिशन रूस की तकनीक और दोस्ती पर टिका है. आइए जानते हैं उस ऐतिहासिक मिशन और उस कैप्सूल की पूरी कहानी.
राकेश शर्मा सोवियत संघ के सोयुज T-11 अंतरिक्ष यान से 2 अप्रैल 1984 को बायकानूर कोस्मोड्रोम (कजाकिस्तान) से रवाना हुए थे. उनके साथ सोवियत अंतरिक्ष यात्री यूरी मालिशेव (कमांडर) और गेनादी स्त्रेकालोव (इंजीनियर) थे. यह मिशन इंटरकॉस्मॉस प्रोग्राम का हिस्सा था, जिसमें सोवियत संघ अपने दोस्त देशों के अंतरिक्ष यात्रियों को मौका देता था. भारत को यह सम्मान मिला था.
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सोयुज T-11 ने सैल्यूट-7 अंतरिक्ष स्टेशन से डॉकिंग की. राकेश शर्मा ने वहां पूरे 7 दिन, 21 घंटे और 40 मिनट बिताए. उन्होंने योग किया. पृथ्वी की तस्वीरें लीं और कई वैज्ञानिक प्रयोग किए. जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उनसे पूछा कि ऊपर से भारत कैसा लगता है?, तो राकेश शर्मा का जवाब था – सारे जहां से अच्छा.
अंतरिक्ष से वापसी के लिए अलग कैप्सूल इस्तेमाल होता है. राकेश शर्मा सोयुज T-10 के डिसेंट मॉड्यूल (वापसी कैप्सूल) में 11 अप्रैल 1984 को धरती पर उतरे. यह कैप्सूल कजाकिस्तान के अरकलिक शहर के पास जमीन पर लैंड किया.
इस कैप्सूल की खास बातें...
यह कैप्सूल आज भी रूस में संरक्षित है. कई संग्रहालयों में सोयुज कैप्सूल की रेप्लिका दिखाई जाती हैं.
राकेश शर्मा कहते हैं कि रूस ने न सिर्फ मुझे अंतरिक्ष भेजा, बल्कि भारत को आत्मविश्वास दिया कि हम भी यह कर सकते हैं. आज जब भारत अपना गगनयान 2026 में लॉन्च करने जा रहा है, तो उसकी नींव 41 साल पहले रूस ने रखी थी. वो सोयुज कैप्सूल सिर्फ एक लौह यान नहीं था, बल्कि भारत के अंतरिक्ष सपने का पहला कदम था.
ऋचीक मिश्रा