किलुआ ज्वालामुखी में लावा की नदियां, हयाली गुबी में धमाका... धरती के अंदर कोई बड़ा खतरा तो नहीं पल रहा

हवाई का किलुआ, इथियोपिया का हयाली गुबी, इंडोनेशिया के मेरापी-सुमेरू और आइसलैंड के ज्वालामुखी एक साथ फट रहे हैं. क्या धरती के नीचे कुछ बड़ी हलचल हो रही है. आइए वैज्ञानिकों की स्टडी और रिपोर्ट्स के मुताबिक समझे कि ये सब क्या हो रहा है.

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ये आइसलैंड का ज्वालामुखी है जो दो साल से रुक-रुक कर फट रहा है. (File Photo: AP) ये आइसलैंड का ज्वालामुखी है जो दो साल से रुक-रुक कर फट रहा है. (File Photo: AP)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 26 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 12:13 PM IST

हवाई द्वीप के किलुआ ज्वालामुखी में लावा की नदियां बह रही हैं. इथियोपिया के हयाली गुबी ने 12,000 साल बाद पहली बार धमाका किया. इंडोनेशिया के मेरापी और सुमेरू से राख का बादल निकल रहा है. आइसलैंड का ज्वालामुखी फिर से फट गया. लगता है जैसे धरती के अंदर कोई बड़ी हलचल हो रही है. क्या यह सामान्य है? या कोई बड़ा खतरा आने वाला है? 

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धरती के अंदर क्या हो रहा है?  

धरती एक सेब की तरह है. ऊपर की छिलका (क्रस्ट) पतली है, सिर्फ 5-70 किलोमीटर मोटी. उसके नीचे मेंटल है – एक गर्म, चिपचिपा चीज जैसा, जो 2900 km तक फैला है. फिर कोर (गर्भ) है, जो लोहे का गर्म गोला है.

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  • मैग्मा का जन्म: धरती के अंदर गर्मी बहुत ज्यादा है (सूरज से 50 गुना!). यह गर्मी चट्टानों को पिघला देती है, जिससे मैग्मा बनता है. मैग्मा हल्का होता है, इसलिए ऊपर की तरफ तैरता हुआ चढ़ता है, जैसे तेल पानी में.
  • टेक्टॉनिक प्लेट्स की लड़ाई: धरती की सतह 15-20 बड़े टुकड़ों (प्लेट्स) में बंटी है. ये प्लेट्स साल में 2-10 सेंटीमीटर की रफ्तार से घूमती हैं. जब दो प्लेट्स टकराती हैं (कन्वर्जेंट बॉर्डर), तो एक नीचे धंस जाती है (सबडक्शन). इससे मैग्मा ऊपर आता है. ज्वालामुखी बनते हैं.
  • हॉटस्पॉट्स: कुछ जगहों पर मैग्मा सीधे अंदर से फूटता है, जैसे हवाई या आइसलैंड. यह प्लेट्स के नीचे गर्म धब्बे (हॉटस्पॉट) से होता है.
  • गैस और दबाव: मैग्मा में गैसें (जैसे पानी की भाप, CO2) कैद होती हैं. जब दबाव ज्यादा हो जाता है, तो मैग्मा फट जाता है. जैसे सोडा बोतल का ढक्कन खोलने पर झाग निकलता है.

ये प्रक्रियाएं लाखों-करोड़ों साल पुरानी हैं. ज्वालामुखी धरती को नया जन्म देते हैं – लावा से नई जमीन बनती है, मिट्टी उपजाऊ होती है. लेकिन जब कई एक साथ फटते हैं, तो लगता है कुछ बड़ा चल रहा है.

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हवाई द्वीप का किलुआ ज्वालामुखी. (File Photo: Getty)

हाल की घटनाएं: क्या वाकई हलचल बढ़ी है?

नवंबर 2025 में ये ज्वालामुखी सुर्खियों में हैं. आइए देखें क्या हो रहा है (USGS और वैज्ञानिक रिपोर्ट्स से)...

हवाई का किलुआ (Kilauea): यह दुनिया का सबसे सक्रिय ज्वालामुखी है. 23 दिसंबर 2024 से फटना शुरू किया. नवंबर 2025 में 37वीं बार लावा फव्वारे 400 फीट ऊंचे उछले. लावा हलेमाऊमाऊ क्रेटर में बह रहा है, लेकिन पार्क के बाहर कोई खतरा नहीं. हॉटस्पॉट से मैग्मा ऊपर आ रहा है – सामान्य है, लेकिन गैस से हवा खराब हो सकती है.

इथियोपिया का हयाली गुबी (Hayli Gubi): अफार रीजन में 23 नवंबर को पहली बार 12,000 साल बाद फटा. राख 14 km ऊपर गई, जो रेड सी पार होकर यमन, ओमान, पाकिस्तान और भारत तक पहुंची. उड़ानें रद्द हुईं. यह अफार रिफ्ट वैली में है, जहां अफ्रीकी प्लेट दो टुकड़ों में बंट रही है. टेक्टॉनिक हलचल से मैग्मा ऊपर आया – दुर्लभ लेकिन प्राकृतिक.

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इंडोनेशिया का मेरापी (Merapi): 24 नवंबर तक लगातार फट रहा. गर्म चट्टानें गिर रही हैं, राख 150 मीटर ऊपर. यह रिंग ऑफ फायर में है, जहां इंडियन और पैसिफिक प्लेट्स टकराती हैं. 10 नवंबर को ऊपर का हिस्सा आंशिक रूप से ढहने से लावा बहा. अलर्ट लेवल 3 – लोग सुरक्षित हैं.

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इंडोनेशिया का सुमेरू (Semeru): 19 नवंबर को जोरदार फटना. राख 5.6 किमी ऊपर, पाइरोक्लास्टिक फ्लो (गर्म राख का बादल) 7 किमी दूर गया. 300 लोग खाली कराए गए. जावा द्वीप का सबसे ऊंचा ज्वालामुखी – सबडक्शन से फटता है.

आइसलैंड का ज्वालामुखी: रेयक्यानेस प्रायद्वीप में 2023-2025 ज्वालामुखी विस्फोट की सीरीज चल रही है. नवंबर 2024 में 10वीं बार फटना, अप्रैल 2025 में 11वीं (1 दिन का), जुलाई 2025 में 12वीं (20 दिन). मैग्मा 15 मिलियन क्यूबिक मीटर जमा हो गया. मिड-अटलांटिक रिज पर प्लेट्स अलग हो रही हैं.

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ये सभी अलग-अलग जगहों पर हैं – हॉटस्पॉट, रिफ्ट, सबडक्शन. कोई एक कनेक्शन नहीं, लेकिन रिंग ऑफ फायर (इंडोनेशिया) और रिफ्ट जोन (इथियोपिया, आइसलैंड) में ज्यादा सक्रियता है. 

वैज्ञानिक कारण: क्या कोई बड़ा बदलाव?

टेक्टॉनिक प्लेट्स: 90% ज्वालामुखी प्लेट बॉर्डर्स पर हैं. प्लेट्स हिलती रहती हैं, मैग्मा ऊपर आता है. वैज्ञानिक कहते हैं, ग्लोबल ज्वालामुखी एक्टिविटी स्थिर है – सालाना 50-70 फटते हैं. बढ़ोतरी लगती है क्योंकि सेंसर ज्यादा हैं (USGS डेटा).

क्लाइमेट चेंज का रोल?: हां, थोड़ा. समुद्र का स्तर बढ़ने से प्लेट्स पर दबाव पड़ता है, जो फॉल्ट्स को ट्रिगर करता है (GFZ स्टडी, 2025). ग्लेशियर पिघलने से (ग्रीनलैंड, आइसलैंड) वजन कम होता है, भूकंप बढ़ते हैं, जो ज्वालामुखी को जगाते हैं. लेकिन यह छोटा प्रभाव है – मुख्य कारण प्लेट टेक्टॉनिक्स.

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स्टडीज क्या कहती हैं?

  • USGS: कोई ग्लोबल बढ़ोतरी नहीं, क्लस्टरिंग सामान्य (2025 रिपोर्ट).
  • GFZ जर्मनी: जलवायु परिवर्तन से तटीय इलाकों में 10-20% ज्यादा भूकंप/ज्वालामुखी हो सकते हैं.
  • स्मिथसोनियन ग्लोबल वॉल्कैनिज्म प्रोग्राम: 1350 सक्रिय ज्वालामुखी, लेकिन फटने की दर स्थिर.
  • 2025 MIT स्टडी: बर्फ पिघलने से जापान जैसे इलाकों में ट्रिगर होता है.

कोई बड़ी हलचल नहीं – बस धरती का सामान्य व्यवहार. लेकिन मॉनिटरिंग से पहले चेतावनी मिल जाती है.

इंडोनेशिया का मेरापी ज्वालामुखी. (File photo: Reuters)

खतरे और सुरक्षा: क्या करें?

  • स्थानीय खतरे: राख से सांस की समस्या, लावा से आग, भूस्खलन. लेकिन ज्यादातर ज्वालामुखी रिमोट एरिया में हैं.
  • ग्लोबल प्रभाव: राख से उड़ानें रुकती हैं (हयाली गुबी ने भारत तक प्रभावित किया). ज्यादा विस्फोट और राख फैलने से ठंडक आ सकती है (जैसे 1991 पिनाटुबो).
  • सुरक्षा टिप्स: अलर्ट ऐप्स डाउनलोड करें (USGS, IMO). यात्रा पर ज्वालामुखी के पास न जाएं. भारत में, रिंग ऑफ फायर से दूर हैं, लेकिन हिमालय में भूकंप संभव.

धरती जीवित है

ये ज्वालामुखी धरती की सांस हैं – वे नई जमीन बनाते हैं, जीवन देते हैं. हां, डरावने लगते हैं, लेकिन विज्ञान की वजह से हम तैयार रहते हैं. अगली बार लावा देखें, तो सोचें – यह धरती का नया जन्म है.

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