एक ही ऑर्बिट में दोनों का नया स्पेस स्टेशन, अंतरिक्ष में भी दिखेगा भारत-रूस का याराना

रूस और भारत ने फैसला किया है कि अपने नए अंतरिक्ष स्टेशन ROS और भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन (BAS) एक ही 51.6° कक्षा में रखेंगे. इससे दोनों देशों के अंतरिक्ष यात्री आसानी से एक-दूसरे के स्टेशन पर जा सकेंगे. रोस्कोस्मोस प्रमुख दमित्री बकानोव ने यह घोषणा की.

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ये है भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का मॉडल. (File Photo: ISRO) ये है भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन का मॉडल. (File Photo: ISRO)

ऋचीक मिश्रा

  • नई दिल्ली,
  • 07 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 5:56 PM IST

अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का सफर 2030-31 तक खत्म होने वाला है. इसके बाद रूस और भारत ने भविष्य के अपने अंतरिक्ष स्टेशनों को एक ही कक्षा में रखने का फैसला किया है. यह घोषणा रूस की अंतरिक्ष एजेंसी रोस्कोस्मोस के प्रमुख दमित्री बकानोव ने नई दिल्ली दौरे के दौरान की. वे राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के साथ आए थे.

दोनों स्टेशन 51.6 डिग्री झुकाव वाली कक्षा (inclinaton orbit) में चक्कर लगाएंगे. यह वही कक्षा है जिसमें आज ISS घूमता है. इससे दोनों देशों के अंतरिक्ष यात्री आसानी से एक-दूसरे के स्टेशन पर जा सकेंगे. वैज्ञानिक प्रयोग कर सकेंगे. आपात स्थिति में मदद ले सकेंगे.

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बकानोव ने कहा कि यह फैसला दोनों देशों के लिए आपसी लाभ वाला होगा. इससे पहले रूस अपने रशियन ऑर्बिटल स्टेशन (ROS) के लिए 96 डिग्री झुकाव वाली कक्षा सोच रहा था, लेकिन अब 51.6 डिग्री पर सहमति बनी है.

क्या है यह नया समझौता?

  • रूस का ROS: रशियन स्पेस सेंटर एनर्जिया द्वारा विकसित होगा. यह स्टेशन गहरे अंतरिक्ष में अंतरिक्ष यान बनाने और लॉन्च करने का आधार बनेगा. इसका मॉड्यूलर डिजाइन इसे लंबे समय तक काम करने लायक बनाएगा.
  • भारत का BAS: भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा 2035 तक पूरा करने की योजना है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे स्वतंत्रता के 100वें साल (2047) से पहले चंद्रयान-3 जैसी सफलताओं के बाद घोषित किया था.
  • एक ही कक्षा क्यों? 51.6 डिग्री झुकाव ISS जैसी है, जो पृथ्वी के 51.6 डिग्री उत्तर-दक्षिण अक्षांश को कवर करती है. इससे रूस के सोयूज रॉकेट और भारत के गगनयान मिशन आसानी से डॉकिंग कर सकेंगे. अंतरराष्ट्रीय सहयोग बढ़ेगा.

रूस की न्यूज साइट प्रावदा के अनुसार रूस के पहले उप-प्रधानमंत्री डेनिस मंटुरोव ने कहा कि हम समानांतर पथ पर चल रहे हैं. ROS के लिए 51.6 डिग्री झुकाव तय हो गया है. भारत भी अपने स्टेशन के लिए यही सोच रहा है. बकानोव ने इजवेस्टिया को दिए इंटरव्यू में बताया कि सहयोग के क्षेत्रों में इंजन निर्माण, मानवयुक्त उड़ानें, प्रशिक्षण, रॉकेट ईंधन और राष्ट्रीय स्टेशनों का विकास शामिल है.

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कब तक तैयार होंगे?

  • ROS का निर्माण: पहला वैज्ञानिक और पावर मॉड्यूल 2028 में लॉन्च होगा. बाकी चार मुख्य मॉड्यूल 2030 तक. 2031-33 में अतिरिक्त मॉड्यूल जोड़ेंगे. ख्रुनिचेव सेंटर को तीन मॉड्यूल के लिए अंगारा-A5M रॉकेट ऑर्डर दिए गए हैं.
  • BAS का निर्माण: ISRO ने 2035 तक पूरा करने का लक्ष्य रखा है. हाल ही में स्पेडेक्स सैटेलाइट डॉकिंग सफलता के बाद भारत चौथा देश बना जो यह तकनीक हासिल कर सका (रूस, अमेरिका, चीन के बाद).
  • ISS का अंत: 2030-31 में दोनों देश ISS से अलग हो जाएंगे. रूस पहले ही घोषणा कर चुका है कि वह ISS के लिए अमेरिका का साथ नहीं दोगा. 

क्यों है यह बड़ा कदम?

  • आसान यात्रा: अंतरिक्ष यात्री एक स्टेशन से दूसरे पर ट्रांसफर हो सकेंगे, बिना ज्यादा ईंधन खर्च.
  • सहयोग मजबूत: रूस भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को प्रशिक्षित करेगा. भारत को रॉकेट इंजन और तकनीक मिलेगी.
  • आपात मदद: अगर किसी स्टेशन में समस्या हो, तो दूसरा स्टेशन बचाव भेज सकेगा.
  • वैज्ञानिक लाभ: संयुक्त प्रयोगों से चंद्रमा, मंगल और एस्टेरॉयड मिशनों में मदद मिलेगी. 
  • आर्थिक: रूस इंजन बेचेगा और उत्पादन स्थानांतरित करेगा, जिससे भारत आत्मनिर्भर बनेगा.

भारत-रूस का पुराना रिश्ता

भारत ने अपना पहला सैटेलाइट आर्यभट्ट रूस की मदद से लॉन्च किया था. चंद्रयान-2 में रूस ने मदद की थी. गगनयान मिशन के लिए भारतीय यात्री रूस में ट्रेनिंग ले चुके हैं. पुतिन का यह दौरा ब्रिक्स समिट के बाद हुआ, जहां दोनों नेताओं ने अंतरिक्ष सहयोग पर बात की. बकानोव ने कहा किरूस की उन्नत तकनीक भारत के साथ साझा होगी. 

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विशेषज्ञों का कहना है कि यह समझौता रूस को ISS के बाद नई साझेदारी देगा, जबकि भारत को अमेरिका-चीन के बीच संतुलन बनाने में मदद मिलेगी. अगर सब ठीक रहा, तो 2030 के दशक में अंतरिक्ष में रूसो-भारतीय कॉरिडोर बनेगा. 

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