Ekadashi Shradh 2024: एकादशी श्राद्ध है आज, जानें किन लोगों का किया जाता है श्राद्ध-तर्पण

Ekadashi Shradh 2024: एकादशी श्राद्ध को सबसे पवित्र दिन माना जाता है. एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से जाना जाता है. इस शुभ दिन पर लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और तर्पण करते हैं. मान्यता है कि इसको करने से दिवंगत लोगों की आत्मा को शांति मिलती है.

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एकादशी श्राद्ध 2024 एकादशी श्राद्ध 2024

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 27 सितंबर 2024,
  • अपडेटेड 6:00 AM IST

Ekadashi Shradh 2024: पितृ पक्ष का आज एकादशी श्राद्ध है. एकादशी श्राद्ध को सबसे पवित्र दिन माना जाता है. एकादशी श्राद्ध को ग्यारस श्राद्ध के नाम से जाना जाता है. इस शुभ दिन पर लोग अपने पूर्वजों की पूजा करते हैं और तर्पण करते हैं. मान्यता है कि इसको करने से दिवंगत लोगों की आत्मा को शांति मिलती है. इसके अलावा बाद के जीवन में उनका निरंतर अस्तित्व सुरक्षित रहता है. कहते हैं कि एकादशी श्राद्ध जीवित और मृत लोगों के बीच एक कड़ी के रूप में कार्य करता है.

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एकादशी श्राद्ध की विधि 

इस दिन सुबह जल्दी उठकर पवित्र स्नान करें. भगवान सूर्य को जल चढ़ाएं और घर को अच्छी तरह से साफ करें. फिर, घर पर ब्राह्मण को आमंत्रित करें और पितृ तर्पण करें. उन्हें भोजन, वस्त्र और दक्षिणा दें. इस शुभ दिन गाय, कौवे, कुत्ते और चींटियों को भोजन खिलाएं. इस दिन भोजन, काले तिल, दूध और चावल का दान करना अत्यधिक फलदायी होता है. साथ ही पिंडदान करना पुण्य फलदायी माना जाता है. जिन लोगों पर पितृ दोष है वे विभिन्न प्रमुख स्थानों जैसे उज्जैन, गया, प्रयागराज और पुष्कर में योग्य पुजारी के माध्यम से पितृ दोष निवारण पूजा कर सकते हैं.

एकादशी श्राद्ध मुहूर्त 

कुतुप मूहूर्त - सुबह 11 बजकर 48 मिनट से  दोपहर 12 बजकर 36 मिनट तक
रौहिण मूहूर्त - दोपहर 12 बजकर 36 मिनट से दोपहर 1 बजकर 24 मिनट तक पी एम
अपराह्न काल - दोपहर 1 बजकर 24 मिनट से 3 बजकर 48 मिनट तक 

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आगामी श्राद्ध की तिथियां

29 सितंबर 2024- मघा श्राद्ध, द्वादशी श्राद्ध
30 सितंबर 2024- त्रयोदशी श्राद्ध
1 अक्टूबर 2024- चतुर्दशी श्राद्ध
2 अक्टूबर 2024- सर्वपित्रू अमावस्या

कैसे करें पितरों को याद (How to remember ancestors during Pitru Paksha?)

पितृ पक्ष में हम अपने पितरों को नियमित रूप से जल अर्पित करें. यह जल दक्षिण दिशा की ओर मुंह करके दोपहर के समय दिया जाता है. जल में काला तिल मिलाया जाता है और हाथ में कुश रखा जाता है. जिस दिन पूर्वज की देहांत की तिथि होती है, उस दिन अन्न और वस्त्र का दान किया जाता है. उसी दिन किसी निर्धन को भोजन भी कराया जाता है. इसके बाद पितृपक्ष के कार्य समाप्त हो जाते हैं.

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