राहुल गांधी को क्यों विपक्ष का नेता बनना ही चाहिए

दस साल तक सत्ता में रहने के बाद कांग्रेस इस लायक भी नहीं बची थी कि 2014 में उसे नेता प्रतिपक्ष पद मिल सके. ये पद हासिल करने के लिए उसे दस साल तक इंतजार और कड़ा संघर्ष करना पड़ा - और इसका श्रेय दिया जा रहा है राहुल गांधी को, लेकिन वो खुद विपक्ष का नेता बनना ही नहीं चाहते.

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राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष बनना, जनादेश का भी सम्मान समझा जाएगा राहुल गांधी का नेता प्रतिपक्ष बनना, जनादेश का भी सम्मान समझा जाएगा

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 20 जून 2024,
  • अपडेटेड 2:58 PM IST

2014 और 2019 में कांग्रेस की इतनी भी हैसियत नहीं थी कि उसे नेता प्रतिपक्ष की पोस्ट मिल सके, और तब मल्लिकार्जुन खरगे और उनके 5 साल बाद अधीर रंजन चौधरी को भी अनौपचारिक रूप से लोकसभा में सबसे बड़े विपक्षी दल के नेता के रूप में ये मोर्चा संभालना पड़ा - और ये संयोग ही है कि दोनों ही अपना अगला चुनाव हार गये. 

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अब अगर राहुल गांधी के मन में ऐसा कोई अंधविश्वास नहीं है, तो आगे बढ़ कर ये पद उनको ले लेना चाहिये - क्योंकि पिछले दो चुनावों में देश को बेहद मजबूत सरकार देने वाली जनता ने इस बार एक मजबूत विपक्ष भी दिया है.

निश्चित तौर पर देश के मतदाताओं को ये भी उम्मीद होगी कि पूरा इंडिया ब्लॉक जैसे एक साथ मिल कर वोट मांगने गया था, आगे भी एकजुट रहेगा. विपक्षी गठबंधन को एकजुट रखने की जिम्मेदारी भी कांग्रेस की ही है - और इस नाते कांग्रेस के नेता राहुल गांधी की भी ये महत्वपूर्ण जिम्मेदारी बनती है. 

अपने प्रदर्शन में लगातार सुधार करते हुए कांग्रेस ने 2024 के आम चुनाव में लीडर ऑफ अपोजीशन का ओहदा पाने लायक लोकसभा की 10 फीसदी से ज्यादा सीटें जीत ली है. कांग्रेस को लोकसभा की कुल संख्या का 18 फीसदी 99 सीटें मिली हैं. 2014 में कांग्रेस 44 और 2019 में 52 लोकसभा सीटें ही जीत पाई थी, जो नेता प्रतिपक्ष पद के लिए जरूरी 54 सीटों से कम थी. 

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आखिरी बार बीजेपी की सुषमा स्वराज 2009 से 2014 तक लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष थीं. 18वीं लोकसभा का पहला सेशन 24 जून से शुरू होकर 3 जुलाई को खत्म होने जा रहा है. 9 दिनों के इस स्पेशल सेशन के दौरान लोकसभा स्पीकर का चुनाव कराया जाएगा, और नये सांसदों को शपथ दिलाई जाएगी - और इसी दौरान संसद को नेता प्रतिपक्ष भी मिलेगा. 

2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस की हार के बाद राहुल गांधी ने जिम्मेदारी लेते हुए अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया था, और ये जिद भी पूरी करके ही माने कि गांधी परिवार से बाहर का ही कोई नेता कांग्रेस अध्यक्ष बनेगा. अशोक गहलोत के इनकार कर देने के बाद एक चुनावी प्रक्रिया के तहत शशि थरूर को शिकस्त देते हुए मल्लिकार्जुन खरगे कांग्रेस के अध्यक्ष भी बन गये. 

कांग्रेस चाहती है कि राहुल गांधी ही लोक सभा में विपक्ष के नेता की जिम्मेदारी संभालें. राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खरगे हैं. वैसे अब सोनिया गांधी भी राज्यसभा पहुंच चुकी हैं. और वाया वायनाड प्रियंका गांधी वाड्रा के भी लोकसभा में दाखिला दिलाने की प्रक्रिया शुरू कांग्रेस में शुरू हो चुकी है. 

लेकिन सुनने में तो यही आ रहा है कि राहुल गांधी लोकसभा में विपक्ष का नेता बनने को तैयार नहीं हैं. अव्वल तो राहुल गांधी कई बार कह चुके हैं कि उन्हें सत्ता की राजनीति में कोई दिलचस्पी ही नहीं है, और वो क्या करना चाहते हैं और क्या नहीं, इसका भी उन्हें पूरा अधिकार हासिल है - लेकिन अगर वो विपक्ष का नेता बनते हैं तो ये व्यापक हित में होगा.

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ये जनादेश के सम्मान की बात है

वैसे तो देश के अलग अलग हिस्सों में लोगों ने अपने हिसाब से अपना सांसद चुना है, लेकिन राष्ट्रीय स्तर पर तो उनके सामने राहुल गांधी का ही चेहरा था. 2019 में राहुल गांधी को अमेठी तक से बेदखल कर देने वाले यूपी के लोगों ने तो इस बार कांग्रेस की झोली में 6 सीटें डाल दी हैं.

नंबर चाहे जो भी हो, कांग्रेस को तो लोगों ने बीजेपी के विरोध में ही वोट दिया है. निश्चित तौर पर उनमें कुछ वोटर कांग्रेस के 5 न्याय और 25 गारंटी से प्रभावित हुए और बड़ी संख्या में युवाओं ने बदलाव के लिए वोट डाले.

देश को एक मजबूत विपक्ष देने के मकसद से ही लोगों ने कांग्रेस के अघोषित नेतृत्व वाले विपक्षी गठबंधन को वोट किया है. अब अगर राहुल गांधी विपक्ष का नेता बनते हैं, तो बहुत सारे फायदे तो होंगे ही - देखा जाये तो ये जनादेश का भी सम्मान माना जाएगा.

कांग्रेस कार्यकारिणी CWC ने अपनी तरफ से कर्तव्य का पालन करते हुए राहुल गांधी राहुल गांधी को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष के पद का प्रस्ताव भी पारित कर दिया है. और ये भी कहा जा रहा है कि राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष की तरह लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष का प्रस्ताव भी ठुकरा दिया है.

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कार्यकारिणी में प्रस्ताव को लेकर हुए विचार-विमर्श की एक झलक तब मिली जब कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे मीडिया को ये जानकारी दे रहे थे कि राहुल गांधी रायबरेली अपने पास रखेंगे और उपचुनाव होने पर वायनाड लोकसभा सीट से कांग्रेस की उम्मीदवार प्रियंका गांधी वाड्रा होंगी. 

खबर आई थी कि CWC की मीटिंग में मल्लिकार्जुन खरगे ने हंसते हुए राहुल गांधी से कहा था, 'अगर आप नेता प्रतिपक्ष बनने का प्रस्ताव स्वीकार नहीं करेंगे, तो मैं आपके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई कर दूंगा.' सही बात है. मल्लिकार्जुन खरगे तो ऐसा कर ही सकते हैं, लेकिन उनकी ही कही हुई बात मानें तो ये एक्शन भी उनको राहुल गांधी से पूछ कर ही लेना होगा. 

असल में प्रेस कांफ्रेंस में मल्लिकार्जुन खरगे से जब पूछा गया कि राहुल गांधी को धमकी देने वाली बात सच है क्या? 

मल्लिकार्जुन खरगे तो सकपका गये, लेकिन राहुल गांधी ने मुस्कुराते हुए जरूर कहा, 'लेकिन आपने धमकी तो दी थी.'

जिन सूत्रों के हवाले से राहुल गांधी के विपक्ष का नेता बनने का प्रस्ताव अस्वीकर कर देने की खबरें आ रही हैं, वे ही ऐसे संभावित नेताओं के नाम भी बता रहे हैं, जिनको कांग्रेस की तरफ से नेता प्रतिपक्ष के लिए नॉमिनेट किया जा सकता है - ये नेता हैं, कुमारी शैलजा, गौरव गोगोई और मनीष तिवारी. 

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हरियाणा से आने वाली कुमारी शैलजा की सबसे बड़ी खासियत है कि वो सोनिया गांधी की करीबी और भरोसेमंद हैं. और वैसे ही गौरव गोगोई को राहुल गांधी बहुत पसंद करते हैं. पिछली लोकसभा में कई मौकों पर वो अपने भाषण से लोगों का ध्यान भी खींचा है. 

पेशे से वकील मनीष तिवारी मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री रह चुके हैं, और इस बार चंडीगढ़ लोकसभा सीट से आये हैं - सबसे खास बात मनीष तिवारी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के अकेले संयुक्त उम्मीदवार हैं जो लोकसभा चुनाव 2024 में जीत हासिल कर संसद पहुंचे हैं. 

राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने से क्या होंगे फायदे?

1. विपक्षी खेमे में दबदबा बढ़ेगा : राहुल गांधी के नेता प्रतिपक्ष बनने से कांग्रेस सांसदों के साथ साथ बाकी नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी उत्साह बढ़ेगा. आपको याद होगा जब ईडी दफ्तर में पूछताछ के लिए राहुल गांधी और सोनिया गांधी की पेशी होनी थी, तो मीडिया रिपोर्ट के जरिये कांग्रेस नेताओं और कार्यकर्ताओं के मन की बात सामने आई थी. कांग्रेस नेता और कार्यकर्ता सोनिया गांधी के लिए तो सड़क पर उतरने के लिए तैयार थे, लेकिन राहुल गांधी के नाम पर रस्मअदायगी से आगे बढ़ने को तैयार नहीं थे. 

और वैसे ही विपक्षी खेमे के सभी नेता राहुल गांधी को सोनिया गांधी की तरह नेता के रूप में स्वीकार नहीं कर पाते. शरद पवार जैसे कुछ नेता तो अब खामोश रहने लगे हैं, लेकिन ममता बनर्जी अब भी राहुल गांधी को नेता मानने को राजी नहीं होतीं. अधीर रंजन चौधरी तो बहाना हैं, ममता बनर्जी को असली दिक्कत तो राहुल गांधी से ही है - लेकिन अगर राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष बनते हैं तो विपक्षी खेमे के नेता भी उनके प्रति नरम रुख अपना सकते हैं. 

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और अगर विपक्षी दलों के साथ बेहतर तालमेल बिठा पाने में राहुल गांधी सफल रहते हैं, तो धीरे धीरे ही सही निश्चित तौर पर उनकी नेतृत्व क्षमता को लेकर स्वीकार्यता बढ़ेगी. 

2. परिपक्वता बढ़ेगी, छवि में भी निखार आएगा : सड़क पर भाषण देने और संसद में बोलने में काफी फर्क होता है. सड़क पर तो कोई कुछ भी बोल देता है, लेकिन संसद में वो सब नहीं चलता. वहां तोल मोल कर ही बोलना होता है. राहुल गांधी तो वैसे ही भी मानहानि के कई मामलों में लगतार अदालतों के चक्कर काट रहे हैं. 

बेशक वो लिख कर ही संसद में भाषण दें, लेकिन संसद में उनके भाषण में संजीदगी देखने को मिल सकती है - और इस तरह नेता प्रतिपक्ष बनने से उनमें भी गंभीरता आएगी. 

3. सत्ता पक्ष के खिलाफ विपक्ष आक्रामक होगा : संसद में भी अडानी जैसे मुद्दे पर राहुल गांधी का बेहद आक्रामक भाषण सुना गया है, लेकिन राहुल गांधी ऐसे रूप में ज्यादातर संसद के बाहर ही देखने को मिलते हैं - नेता प्रतिपक्ष बनने की सूरत में मोदी सरकार और बीजेपी पर राहुल गांधी के हमलों की धार और तेज हो सकती है.

4. नियुक्तियों में सकारात्मक भूमिका रहेगी : ईडी, सीबीआई और विजिलेंस प्रमुख जैसे पदों पर नियुक्ति में बतौर नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी काफी सकारात्मक भूमिका निभा सकते हैं. इसी तरह सूचना आयुक्त और लोकपाल की नियुक्ति में भी नेता प्रतिपक्ष की राय ली जाती है. 

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मल्लिकार्जुन खरगे और अधीर रंजन चौधरी को ऐसे ज्यादातर मामलों में बैठक का बहिष्कार कर मीडिया के सामने अपनी भड़ास निकालते देखा गया है - लेकिन राहुल गांधी की बातों का अलग असर होता है. 

5. कैबिनेट मंत्री का दर्जा मिलेगा : विपक्ष के नेता को भी कैबिनेट मंत्री का दर्जा हासिल होता है. नेता प्रतिपक्ष को कैबिनेट मंत्री के बराबर सैलरी, भत्ते और कई तरह की सुविधाएं भी मिलती हैं - हो सकता है, राहुल गांधी को ऐसी चीजों में दिलचस्पी न हो. 

सबसे बड़ी बात लीडर ऑफ अपोजीशन बनकर राहुल गांधी बेहतर नेता बन सकते हैं - और वो चाहें तो ओडिशा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से प्रेरणा ले सकते हैं. लगातार पांच बार मुख्यमंत्री रह चुके नवीन पटनायक चुनावी हार के बाद ओडिशा विधानसभा में विपक्ष के नेता बने हैं.

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