अशोक गहलोत से एक इंटरव्यू में राहुल गांधी के देर से राजस्थान पहुंचने को लेकर जब पूछा गया तो उनका जवाब था, "मेरे पे विश्वास था उनको." भले ही अशोक गहलोत का ये राजनीतिक बयान हो, लेकिन ये विश्वास ही था जिसकी बदौलत अशोक गहलोत दिल्ली के 10, जनपथ में अपनी बातें मनवाते रहे. ये विश्वास ही था जिसके बूते अशोक गहलोत, सचिन पायलट को निकम्मा, गद्दार और पीठ में छुरा भोंकने वाला बता कर हाशिये पर भेज दिये थे.
लेकिन अब नहीं लगता कि वो विश्वास है. वो विश्वास कब का 'है' से 'था' हो चुका है. जब तक जांचने परखने की जरूरत नहीं पड़ी, सब चलता रहा. जैसे ही राहुल गांधी और सोनिया गांधी को यकीन हो गया, अशोक गहलोत सिर्फ मनमानी कर रहे हैं, उस 'विश्वास' को 'अविश्वास' में तब्दील होते देर न लगी. ऐसे कई मौके आये जब अशोक गहलोत को गांधी परिवार की तरफ से आजमाया गया, लेकिन वो फेल हुए. राजस्थान के प्रभारी रहे अजय माकन का काफी दिनों तक फोन न उठाकर और एक बार ऑब्जर्वर बना कर भेजे गये मल्लिकार्जुन खड़गे को उलटे पांव भेज देने के बाद अशोक गहलोत ने वो विश्वास, जो लंबे समय के साथ से बना था, खो दिया.
अशोक गहलोत अब जिस 'विश्वास' की बात कर रहे हैं, वो दरअसल गांधी परिवार की मजबूरी है - लेकिन किसी की भी मजबूरी का फायदा ज्यादा दिन नहीं उठाया जा सकता. ये बात खुद अशोक गहलोत भी समझते हैं, और राहुल गांधी हों या सोनिया गांधी, मालूम सभी को है.
और राजस्थान चुनाव के कैंपेन में राहुल गांधी ने जो रवैया अपना रखा है, कई सवाल खड़े करता है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए वो 'पनौती' से लेकर 'जेबकतरा' तक कह डाला है, और ऐसा भी नहीं है कि राहुल गांधी को मोदी पर निजी हमलों का रिजल्ट नहीं मालूम है. 2019 में 'चौकीदार चोर है' बैकफायर कर चुका है, जिसे वो ताउम्र नहीं भूल सकते. बिलकुल वैसे ही 2007 में सोनिया गांधी ने मोदी के लिए 'मौत का सौदागर' शब्द का इस्तेमाल किया था, लेकिन उसके बाद तो जैसे कुछ ऐसा वैसा बोलने को लेकर कसम ही खा ली.
अभी सवाल ये है कि मोदी को 'पनौती' और 'जेबकतरा' बोल कर राहुल गांधी उनके खिलाफ सिर्फ अपनी भड़ास निकाल रहे हैं या अशोक गहलोत को सबक सिखाने का फैसला कर चुके हैं? राहुल गांधी के मन में जो भी चल रहा हो, अगर मोदी पर निजी हमलों से नाराज लोग कांग्रेस को सबक सिखाने पर उतारू हो जायें, फिर तो अशोक गहलोत का खेल हो जाएगा.
'पनौती' से लेकर 'जेबकतरा' तक
क्रिकेट वर्ल्ड कप के फाइनल में हार के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को विपक्षी खेमे में हर तरफ से निशाना बनाया गया. विपक्ष के नेतृत्व की जिम्मेदारी ढोते आगे आये राहुल गांधी ने मोदी को पनौती तक कह डाला था. बाद की अपनी चुनावी रैलियों में भी राहुल गांधी बार बार दोहराते रहे - 'PM मतलब पनौती मोदी.'
राहुल गांधी इस बयान पर बीजेपी की तरफ से कड़ी प्रतिक्रिया आना भी स्वाभाविक था. कांग्रेस से ही बीजेपी में आये असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने तो हार के लिए पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को ही जिम्मेदार ठहरा डाला है. 19 नवंबर को जिस दिन मैच हुआ उस दिन इंदिरा गांधी का जन्मदिन था. अब वो क्रिकेट बोर्ड को सलाह दे रहे हैं दिन देख कर ही ऐसे महत्वपूर्ण मैच रखे जायें, और जो दिन गांधी परिवार के किसी सदस्य से जुड़ा हो उस दिन तो कतई जोखिम न उठायें.
पनौती बोलने पर बवाल चल ही रहा था कि राहुल गांधी ने राजस्थान की रैलियों में एक अलग ही किस्सा सुनाना शुरू कर दिया है. जेबकतरे का किस्सा. अब वो एक साथ मोदी और केंद्रीय मंत्री अमित शाह को निशाना बना रहे हैं, और लगे हाथ उद्योगपति गौतम अडानी को भी लपेट ले रहे हैं.
कहते हैं, जब जेबकतरे किसी की जेब काटना चाहते हैं, तो सबसे पहले वे ध्यान भटकाते हैं. एक जेबकतरा सामने से आकर ध्यान भटकाता है, दूसरा पीछे से जेब काट देता है और तीसरा दूर से देखता रहता है कि जिसकी जेब कट रही है, वो शोर तो नहीं मचा रहा है.
और फिर समझाते हैं, प्रधानमंत्री मोदी का काम ध्यान भटकाने का है, गौतम अडानी का काम जेब काटने का है - और अगर कुछ हो तो लाठी लेकर आने का काम अमित शाह का है.
सोशल मीडिया पर राहुल गांधी का बयान क्रिया-प्रतिक्रिया के नियम की मिसाल बना हुआ है. लोग अपने अपने तरीके बयान का विश्लेषण कर रहे हैं. ऐसी हर पोस्ट पर कांग्रेस और बीजेपी के समर्थक एक दूसरे पर धावा बोलते देखे जा रहे हैं.
वैसे ये किस्सा राहुल गांधी पहली बार नहीं सुना रहे हैं. अक्टूबर, 2019 में भी राहुल गांधी ने महाराष्ट्र के यवतमाल की एक चुनावी रैली में प्रधानमंत्री मोदी को जेबकतरा बताया था. तब राहुल ने कहा था, 'पीएम मोदी अडानी और अंबानी के भोंपू हैं... एक जेबकतरे की तरह जो चोरी से पहले लोगों का ध्यान बांटता है... उनका सिर्फ एक काम आपका ध्यान बांटना है, जिससे वो आपका रुपया कुछ चुनिंदा उद्योगपतियों को दे सकें.'
कहीं अशोक गहलोत को सबक सिखाने का इरादा तो नहीं
जिस तरीके से अशोक गहलोत चुनाव लड़ रहे थे, सब कुछ उनके हिसाब से ठीक ही चल रहा था. तब भी जबकि राहुल गांधी के एक बयान का बहुत गलत मैसेज गया था. बाकी चुनावी राज्यों में जीत का दावा करते हुए राहुल गांधी ने बोल दिया था कि राजस्थान में कांटे की टक्कर है.
राहुल गांधी अब कहीं अशोक गहलोत को सबक सिखाने के लिए तो नहीं ये सब कर रहे हैं. ये तो हर कोई महसूस कर रहा है कि अशोक गहलोत ने गांधी परिवार की परवाह बंद कर दी है. ऊपर से जो कुछ भी नजर आ रहा है, उसे एक राजनीतिक बयान के तौर पर ही देखा और समझा जाना चाहिये.
पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी चाहती थीं कि अशोक गहलोत को ही अपनी जिम्मेदारी सौंपें, लेकिन अशोक गहलोत की ज्यादा दिलचस्पी राजस्थान की राजनीति में रही. सब कुछ तय भी लग रहा था, बस चुनाव की प्रक्रिया बाकी थी. तभी भारत जोड़ो यात्रा के बीच से राहुल गांधी का बयान आ गया. राहुल गांधी ने बोल दिया कि जब उदयपुर शिविर में कमिट किया है कि 'एक व्यक्ति एक पद' पर ही रहेगा तो साफ हो गया कि अशोक गहलोत को कांग्रेस अध्यक्ष बनने के लिए मुख्यमंत्री पद छोड़ना पड़ेगा.
अशोक गहलोत ने कांग्रेस का अध्यक्ष बनने की जगह राजस्थान के मुख्यमंत्री की कुर्सी अपने पास बनाये रखने का फैसला किया. असल में राहुल गांधी, सचिन पायलट को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे - और आम सहमति न बने तो किसी तीसरे व्यक्ति को जो अशोक गहलोत का भी करीबी न हो. अशोक गहलोत ने ऐसा खेल रचा कि विधायकों ने बगावत कर दी. विधायक दल के नेता को लेकर एक लाइन का प्रस्ताव पारित न हो सका.
अब अगर कांग्रेस राजस्थान में हार भी जाती है तो गांधी परिवार को गहलोत की दादागीरी से वैसे ही निजात मिल जाएगी, जैसे पंजाब में कैप्टन से मिल चुकी है. सरकारें तो आती जाती रहेंगी - बड़ा सवाल तो गांधी परिवार के दबदबे का है, वो खत्म हो जाएगा तो क्या होगा.
ये ठीक है कि पंजाब में सत्ता कांग्रेस के हाथ से फिसल गयी. आम आदमी पार्टी की सरकार बन गयी. कैप्टन अमरिंदर सिंह भी बीजेपी में चले गये - अब पंजाब की बची खुची कांग्रेस गांधी परिवार को चैलेंज करने की स्थिति में तो नहीं है. इस हिसाब से राजस्थान में भी पंजाब मॉडल ही ठीक रहेगा. कम से कम गांधी परिवार के हितों के हिसाब से.
हो सकता है, राजस्थान जैसा ही नजारा छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिलता - क्योंकि भूपेश बघेल का व्यवहार भी तो अशोक गहलोत जैसा ही रहा है. भले ही भूपेश बघेल ने टीएस सिंहदेव को डिप्टी सीएम बना लिया हो, लेकिन उनको मुख्यमंत्री बनाने का राहुल गांधी का वादा पूरा तो नहीं ही होने दिया.
राहुल गांधी के लिए मनमाफिक राजनीति का मौका भी है
प्रधानमंत्री मोदी को टारगेट करना राहुल गांधी का पसंदीदा शगल रहा है. शायद इस काम में उनको सबसे ज्यादा मजा आता है. वैसे भी अंदर तो सब भरा ही पड़ा है. जिस सरकार ने गांधी परिवार की सबसे बुरी हालत कर दी हो. जिस सरकार में एसपीजी सुरक्षा छीन डाली गयी हो. जिस सरकार में सिर्फ राहुल गांधी ही नहीं, सोनिया गांधी तक को जमानत के लिए कोर्ट में हाजिरी लगानी पड़ी हो. पूछताछ के लिए ईडी की तरफ से मुकर्रर तारीख पर पेशी के लिए हाजिरी लगानी पड़ी हो. जिस शासन में नेशनल हेराल्ड की संपत्ति सीज कर दी गयी हो - जरा सोचिये कितना गुस्सा भरा होगा.
ये ठीक है कि चुनावी हार के लिए सोनिया गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लिए बाद में कभी मौत का सौदागर नहीं कहा. ये भी ठीक है कि नीच कहने के लिए राहुल गांधी ने मणिशंकर अय्यर से माफी मंगवायी - और ठीक वैसा ही सीपी जोशी से भी कराया, लेकिन राहुल गांधी ने खुद कभी परहेज तो किया नहीं.
दिल्ली विधानसभा चुनाव में अगर बीजेपी नेता अरविंद केजरीवाल को आंतकवादी साबित करने पर तुले हुए थे, तो राहुल गांधी भी तो कह रहे थे, 'युवा डंडे मारेंगे.' अभी राजस्थान में राहुल गांधी जो कुछ भी बोले जा रहे हैं - सीरीज तो वही है, सीजन नया हो सकता है.
मृगांक शेखर