INDIA गुट के राजनीतिक दलों के लिए अब तक अच्छी बात एक ही है, तीन महीने के लंबे अंतराल के बाद ही सही - 28 दलों के नेता एक जगह बैठ कर तय कर चुके हैं कि आगे भी ऐसे ही मिलते रहेंगे.
देखा जाये तो चुनावी तैयारियों के लिए तीन महीने से ज्यादा वक्त नहीं बचा है. मई, 2024 के आखिर तक लोक सभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी हो चुकी होगी - और केंद्र में सरकार चलाने के लिए नये सिरे से मैंडेट मिल चुका होगा.
विपक्षी गठबंधन की सकारात्मकता की भी दाद देनी होगी, बगैर किसी तैयारी के डंके की चोट पर कहा जा रहा है कि बीजेपी को हराएंगे. जोश बढ़ाने और बनाये रखने के लिए तो ये सब वैसे ही है जैसे कई लोग मोटिवेशनल स्पीच सुनते हैं और किताबें पढ़ते रहते हैं, लेकिन नतीजे तो जमीन पर काम करने से ही आते हैं.
हकीकत तो यही है कि प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर भी बात हो जाती है, लेकिन सीटों के बंटवारे पर बस इतना ही आश्वस्त किया जा रहा है कि मामला सुलझा लेंगे. इस मुद्दे पर अखिलेश यादव और ममता बनर्जी दोनों के मुंह से एक जैसी ही बातें सुनने को मिली हैं. ममता बनर्जी ने तो सीटों के बंटवारे का मुद्दा 31 दिसंबर तक सुलझा लेने की भी सलाह दी है.
आइडिया ये है कि सीट शेयरिंग फॉर्मूला तय हो जाये तो बीजेपी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुकाबले के लिए सारे विपक्षी नेता मिल कर मैदान में उतरें. कोशिश है कि दिसंबर के आखिर तक सीट शेयरिंग पर आम सहमति बन जाये तो अयोध्या में राम मंदिर के लिए मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा से पहले यानी 22 जनवरी, 2024 तक रैलियां और चुनाव कैंपेन रफ्तार पकड़ ले.
अगर वास्तव में ऐसा हो पाता है, तो अखिलेश यादव की उत्तर प्रदेश में बीजेपी को 80 सीटों पर हराने का दावा सुन कर थोड़ा बहुत हजम तो किया ही जा सकता है. विपक्षी गठबंधन की बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में अखिलेश यादव का कहना था, 'यूपी में गठबंधन 80 सीटों पर हराएगा... और भारतीय जनता पार्टी देश से हट जाएगी.'
लेकिन गठबंधन तो तभी हो पाएगा जब सीटों के बंटवारे पर सहमति बन पाएगी. इस मुद्दे पर अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि यूपी में तो सीटों के बंटवारे का फॉर्मूला वही तय करेंगे - और दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से लेकर बिहार में तेजस्वी यादव तक बिलकुल ऐसी ही बातें कर रहे हैं.
सीट शेयरिंग पर कुछ हद तक सहमति तो बनी है
INDIA गुट की बैठक से जो खबरें आ रही हैं, ऐसा लगता है इस बार सबसे ज्यादा पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी सक्रिय थीं. प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के रूप में मल्लिकार्जुन खरगे के नाम के प्रस्ताव से लेकर प्रियंका गांधी वाड्रा को बनारस से प्रधानमंत्री के खिलाफ चुनाव लड़ाने की सलाह तक ममता बनर्जी की तरफ से बहुत सारे सुझाव सामने आ चुके हैं.
सीट शेयरिंग को लेकर भी ममता बनर्जी का सुझाव है कि एक डेडलाइन तय कर ली जाये, और उसे फॉलो किया जाये तो मकसद हासिल किया जा सकता है. और बैठक में नेताओं का ये मान लेना कि अगर जल्दी ही सीट बंटवारे पर सहमति नहीं बनी तो गठबंधन की संभावनाओं को नुकसान पहुंच सकता है, ये ऐसे ही अलर्ट का असर लगता है.
टीएमसी नेता ममता बनर्जी ने INDIA ब्लॉक के साथी नेताओं से अपील की है कि 31 दिसंबर, 2023 तक जैसे भी संभव हो सके, हर हाल में सीट-बंटवारे के फॉर्मूले को अंतिम रूप दे दिया जाये. वैसे खबर ये भी आ रही है कि नेताओं में काफी हद तक सहमति बन चुकी है कि राज्य स्तर पर सीटों के बंटवारे को दिसंबर के अंत तक - हर हाल में इसे जनवरी के दूसरे हफ्ते तक फाइनल कर दिया जाये.
मल्लिकार्जुन खरगे को पीएम कैंडिडेट बनाने के प्रस्ताव की राजनीति अपनी जगह है, लेकिन कई मामलों में मल्लिकार्जुन खरगे पर ममता बनर्जी को ज्यादा भरोसा है, ऐसा लगता है. ममता बनर्जी ने सीटों के बंटवारे के लिए मल्लिकार्जुन खरगे के नेतृत्व में एक कमेटी बनाने का भी प्रस्ताव रखा था जो पूरे मामले पर निगरानी रख सके. लेकिन ममता बनर्जी के इस प्रस्ताव पर भी कोई फैसला नहीं हुआ है.
वैसे सूत्रों के हवाले से मालूम हुआ है कि कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, जेडीयू, आम आदमी पार्टी, आरजेडी, शिवसेना (उद्धव ठाकरे), एनसीपी, सीपीएम और झारखंड मुक्ति मोर्चा के बड़े नेताओं का एक ग्रुप सहयोगी दलों के बीच सीट बंटवारे की निगरानी करने वाला है.
देश के पांच राज्यों में सीट शेयरिंग पर फंसा है पेच
ममता बनर्जी की तरफ से एक प्रस्ताव ये भी रहा कि गठबंधन में शामिल पार्टियां कांग्रेस का समर्थन करेंगी, लेकिन उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में कांग्रेस को दो कदम पीछे रहना चाहिये. यूपी में गठबंधन का नेतृत्व अखिलेश यादव को ही करना चाहिये.
पश्चिम बंगाल के लिए भी ममता बनर्जी की पेशकश यही रही कि वहां तो तृणमूल कांग्रेस ही गठबंधन का नेतृत्व करेगी. ममता बनर्जी ने एक और महत्वपूर्ण बात कही, पश्चिम बंगाल में टीएमसी-कांग्रेस-लेफ्ट गठबंधन होने की पूरी संभावना है, और जल्द सीट बंटवारे का फॉर्मूला भी निकाल लिया जाएगा. यूपी और बंगाल वाला फॉर्मूला ही दिल्ली और पंजाब के लिए भी समझाया गया है.
दिल्ली और पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार है, और गठबंधन की बैठक से ठीक पहले अरविंद केजरीवाल ने पंजाब जाकर बोल दिया है कि लोग राज्य की सभी 13 सीटें आम आदमी पार्टी को ही देंगे. ऐसा बोल कर अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस को यही समझाने की कोशिश की है कि गठबंधन में अगर सीटों के बंटवारे की बात आई तो आखिरी मुहर अरविंद केजरीवाल की ही होगी.
यूपी में अखिलेश यादव पहले ही कह चुके हैं कि 65 सीटों पर समाजवादी पार्टी लड़ेगी, और बाकी 15 सीटें गठबंधन के साथियों के लिए हो सकती है. और अब तक के रुख से तो ऐसा ही लगता है कि अखिलेश यादव कांग्रेस को अमेठी और रायबरेली के अलावा कोई और सीट देने को तैयार नहीं हैं. कांग्रेस में भी इस बात पर चर्चा चल रही है कि बड़े नेताओं को मैदान में उतार कर अच्छा मोलभाव किया जा सकता है.
वैसे गठबंधन बैठक को लेकर अखिलेश यादव ने कहा है, 'सभी दल बहुत जल्दी टिकट बांटकर मैदान में जाने के लिए तैयार हैं... बहुत जल्दी सीटें बांटी जाएंगी, और हम सब लोग जनता के बीच में दिखाई देंगे।...हम बीजेपी को हराएंगे। यूपी में 80 हराएंगे और बीजेपी देश से हट जाएगी। "
मंगलवार को नई दिल्ली के अशोक होटल में हुई विपक्षी इंडिया गठबंधन की बैठक के बाद अखिलेश यादव ने मीडिया से बात की। उन्होंने कहा, 'बहुत जल्दी सीटों का बंटवारा होगा... और हम जनता के बीच में होंगे.' ये भी सुनने में आया है कि अखिलेश यादव, मायावती को गठबंधन में शामिल किये जाने के पक्ष में नहीं हैं. असल में, कांग्रेस की तरफ से मायावती को गठबंधन में शामिल करने को लेकर एक शिगूफा छोड़ा गया है. और माना जा रहा है कि अखिलेश यादव की तरफ से साफ कर दिया गया है कि बीएसपी के आने पर वो गठबंधन छोड़ देंगे. वैसे भी 2019 में अखिलेश यादव को बीएसपी के साथ गठबंधन का काफी कड़वा अनुभव रहा है.
अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव की ही तरह तेजस्वी यादव ने भी अपने तेवर दिखा दिये हैं. दिल्ली रवाना होते वक्त पटना में तेजस्वी यादव ने कहा कि क्षेत्रीय दल बहुत मजबूत हैं, और विपक्षी गठबंधन में हर कोई अपनी भूमिका निभाएगा.
तेजस्वी यादव का कहना था, 'जहां भी क्षेत्रीय पार्टियां मजबूत हैं... बीजेपी वहां कहीं नजर नहीं आती.' तेजस्वी यादव के इस बयान में राहुल गांधी के उस दावे का काउंटर देखा जा सकता है, जिसमें वो क्षेत्रीय दलों में विचारधारा का अभाव देखते हैं - और यही वो पेच है जिसमें कदम कदम पर कांग्रेस उलझी हुई नजर आती है.
मृगांक शेखर