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कैंसर के इन मरीजों में Covid-19 का खतरा ज्यादा, रहें सावधान

aajtak.in
  • 29 अप्रैल 2020,
  • अपडेटेड 7:08 AM IST
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डॉक्टरों के अनुसार कोरोना वायरस का खतरा उन लोगों को ज्यादा है जिन्हें पहले से कोई ना कोई बीमारी है और इनमें सबसे घातक कैंसर है. एक नई स्टडी के अनुसार कैंसर के वो मरीज जिनकी बीमारी का असर उनके खून और फेफड़े पर पड़ चुका हो या उनके पूरे शरीर में ट्यूमर फैल चुका हो, उनमें कैंसर ना होने वाले covid-19 के मरीजों की तुलना में मौत या अन्य गंभीर जटिलताओं का खतरा अधिक होता है.

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इस स्टडी में चीन के हुबेई प्रांत के 14 अस्पताल शामिल थे, जहां यह महामारी फैली थी. इनमें 105 कैंसर के मरीज और उसी उम्र के 536 वो मरीज थे जिन्हें कैंसर नहीं था. ये सभी मरीज  Covid-19 से पीड़ित थे. चीन, सिंगापुर और अमेरिका के लेखकों ने पाया कि सिर्फ कोरोना के मरीजों की तुलना में Covid-19 के कैंसर मरीजों की मृत्यु दर लगभग तीन गुना अधिक थी.

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स्टडी में कहा गया है कि बिना कैंसर वाले कोरोना के मरीजों की तुलना में कोरोना वाले कैंसर के मरीजों को देखभाल की ज्यादा जरूरत होती है जैसे आईसीयू में भर्ती करना और वेंटिलेशन पर रखना. कैंसर का यह खतरा सिर्फ उम्र के हिसाब से नहीं बल्कि इस पर भी निर्भर करता है कि यह कौन सा कैंसर है, किस चरण में है और इसका इलाज कैसे किया जा रहा है.

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इस स्टडी के निष्कर्षों से पता चलता है कि Covid-19 के प्रकोप में कैंसर वाले मरीज आसानी से आ सकते हैं क्योंकि इम्यून सिस्टम कमजोर होने की वजह से उनमें संक्रमण फैलने का खतरा ज्यादा होता है.

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इस स्टडी को अमेरिकन एसोसिएशन फॉर कैंसर रिसर्च की वर्चुअल वार्षिक बैठक में जारी किया गया और संगठन की समीक्षा पत्रिका के कैंसर डिस्कवरी अंक में इसे प्रकाशित किया गया. इससे पहले की स्टडी में कैंसर और Covid-19 के सिर्फ 18 मरीजों को शामिल किया गया था.

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लेखकों और अन्य विशेषज्ञों के अनुसार, कैंसर के मरीजों के अत्यधिक संवेदनशील होने के कई कारण हैं. कैंसर ना सिर्फ इम्यून सिस्टम पर दबाव डालता है बल्कि इसके मरीज जल्दी बूढ़े होने लगते हैं. यह दोनों लक्षण Covid-19 के लिए खतरनाक हैं.

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ब्लड कैंसर जैसे ल्यूकेमिया, लिम्फोमा और माइलोमा इम्यून सिस्टम पर हमला करते हैं, मरीजों के प्राकृतिक रूप से बीमारी से लड़ने की क्षमता को कमजोर करते हैं और उनमें खतरनाक संक्रमण होने की प्रवृत्ति को बढ़ाते हैं.

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स्टडी के अनुसार, खतरे की दूसरी श्रेणी में फेफड़े के कैंसर वाले मरीज आते हैं. फेफड़े की कार्यक्षमता कम होने की वजह से यह लोग जरूरत से ज्यादा संवेदनशील होते हैं. कीमोथेरेपी और सर्जरी भी इम्यून सिस्टम को दबा देते हैं. लेख में यह भी पाया गया कि कैंसर का पूरा इलाज कराने के बाद भी इन मरीजों में कोरोना का खतरा उन मरीजों की तुलना में ज्यादा था जिन्हें कभी कैंसर नहीं हुआ. हालांकि बीमारी के प्रारंभिक चरण वाले और गैर कैंसर रोगियों के परिणाम समान थे.

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अमेरिकन कैंसर सोसायटी के उप मुख्य चिकित्सा अधिकारी जे लियोनार्ड लिचेनफेल्ड का कहना है, 'इस स्टडी की बातें बहुत महत्वपूर्ण हैं और इनके बारे में हम पहले भी सुन चुके हैं जैसे कि कैंसर के मरीजों में वायरस का खतरा ज्यादा होता है और इनमें संक्रमण सबसे बुरा असर होता है. जे लियोनार्ड लिचेनफेल्ड इस स्टडी में शामिल नहीं थे.

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Sarah Cannon Research Institute के  कार्यकारी निदेशक हावर्ड बुरिज का कहना है कि वायरस से मौत और अन्य गंभीर जटिलताओं का खतरा कैंसर के मरीजों में ज्यादा है क्योंकि वो महामारी से बचने के चक्कर में कई तरह की इलाज को टाल देते हैं, कैंसर के नए मरीजों का क्लीनिकल ट्रायल बंद हो चुका है और भयंकर दर्द की दवाओं की कमी भी इनके लिए जिम्मेदार है.

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