'उदयपुर फाइल्स' फिल्म कानूनी पचड़े में फंस गई है. 11 जुलाई को होने वाली रिलीज़ पर रोक लगाने की मांग को लेकर कई याचिकाएं दायर की गई हैं. रिलीज रोकने वाली अर्जी पर दिल्ली हाई कोर्ट गुरुवार को फिल्म देखने के बाद सुनवाई आगे बढ़ाएगा. कोर्ट में हुई न्यायिक कार्यवाही पर याचिकाकर्ता जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने संतोष जताया है.
दिल्ली हाई कोर्ट में दाखिल की गई याचिका पर जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी की तरफ से सीनियर वकील कपिल सिब्बल ने चीफ जस्टिस देवेंद्र कुमार उपाध्याय और जस्टिस अनीश दयाल की बेंच के समक्ष पक्ष रखा. उन्होंने कहा कि यह एक ऐसी फिल्म है, जिसमें कई आपत्तिजनक सीन दिखाए गए हैं, जो एक विशेष समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाते हैं. ये फिल्म समाज में नफरत और धार्मिक कट्टरता को बढ़ावा देने वाले हैं.
कपिल सिब्बल ने यह भी कहा कि इस तरफ की आपत्तिजनक फिल्में बनाना और उसकी पब्लिक स्क्रीनिंग करना देश के संविधान में बताए गए मूलभूत सिद्धांतों के खिलाफ है.
सेंसर बोर्ड ने कोर्ट में क्या कहा?
सेंसर बोर्ड के वकील ने अदालत को बताया कि फिल्म से इस तरह के सभी सीन पहले ही हटा दिए गए हैं, जिन पर किसी को आपत्ति हो सकती है. अब फिल्म में ऐसा कुछ भी नहीं है, जो आपत्तिजनक हो.
इस पर कपिल सिब्बल ने मुख्य न्यायाधीश से कहा कि इस बात की पुष्टि कैसे की जाए कि विवादित सीन केवल ट्रेलर से हटाए गए हैं या पूरी फिल्म से हटे हैं? और कैसे यकीन किया जाए कि फिल्म में अब कुछ भी आपत्तिजनक नहीं बचा है?
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने सेंसर बोर्ड और फिल्म प्रोड्यूसर के वकीलों को निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता के वकीलों को पूरी फिल्म दिखाई जाए. फिल्म प्रोड्यूसर के वकील चेतन शर्मा ने कोर्ट से गुजारिश की कि फिल्म की स्क्रीनिंग किसी निष्पक्ष व्यक्ति की मौजूदगी में करवाई जाए. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने नाराज़गी जताते हुए कहा कि फिल्म को याचिकाकर्ता ने ही चुनौती दी है और यह उनका संवैधानिक अधिकार है.
फिल्म प्रोड्यूसर के वकील ने फिर आपत्ति जताई कि स्क्रीनिंग के बाद भी फिल्म पर आपत्ति की जा सकती है. इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा, 'जैसा कहा जा रहा है, वैसा ही करें. अगर स्क्रीनिंग के बाद भी कोई आपत्ति सामने आती है, तो अदालत उस पर भी सुनवाई करेगी.'
मुख्य न्यायाधीश ने आगे कहा कि संविधान जो निर्देश देता है, उसका पालन होना चाहिए और अभिव्यक्ति की आजादी का यह मतलब बिल्कुल नहीं है कि किसी धर्म या समुदाय की भावना को ठेस पहुंचाई जाए.
'उदयफुर फाइल्स' चर्चा में क्यों?
राजस्थान के उदयपुर में हुई एक हत्या की घटना को आधार पर 'उदयफुर फाइल्स' फिल्म बनाई गई है. 26 जून को इसका ट्रेलर जारी किया गया, जिसमें अत्यंत आपत्तिजनक दृश्य दिखाए गए हैं. याचिकाकर्ता की तरफ से कहा गया कि फिल्म में देवबंद और मुसलमानों के खिलाफ ज़हर उगला गया है. इसमें नूपुर शर्मा द्वारा दिए गए भड़काऊ बयानों को भी दिखाया गया है. ट्रेलर से ही यह साफ हो जाता है कि फिल्म का मकसद एक विशेष धार्मिक समुदाय को नकारात्मक और पक्षपातपूर्ण तरीके से पेश करना है.
इन्हीं तथ्यों के आधार पर मौलाना अरशद मदनी की तरफ से इस फिल्म के प्रदर्शन के खिलाफ दिल्ली हाई कोर्ट में एक याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर आज यानी बुधवार को सुनवाई हुई. फिल्म की स्क्रीनिंग के बाद अगली सुनवाई गुरुवार को होगी.
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने कहा कि हमारे कोर्ट जाने के बाद फिल्म प्रोड्यूसर और सेंसर बोर्ड के वकीलों ने कहा कि बोर्ड के निर्देश वाले विवादित सीन ट्रेलर से हटा दिए गए हैं.
संजय शर्मा