मौसम विभाग के तमाम पूर्वानुमानों को धता बताते हुए मॉनसून दिल्ली-एनसीआर से मुंह मोड़े हुए है. पहले लगा कि निश्चित तारीख 25 जून से दस दिन पहले ही 14-17 जून के बीच दिल्ली के दरवाजे पर इसकी दस्तक हो जाएगी. लेकिन जैसे ही मौसम विभाग की भविष्यवाणी हुई मॉनसून ने गच्चा दे दिया. सवाल है कि आखिर मॉनसून को लेकर हमारे पूर्वानुमान क्यों गच्चा खा जाते हैं? मौसम विभाग के गुणा-गणित में आखिर कहां चूक हो रही है?
थोड़ा हुआ सुधार, थोड़े की दरकार
मौसम विभाग का दावा है कि हाल के वर्षों में उसकी भविष्यवाणियों की सटीकता में काफी सुधार आया है. पहले जो पूर्वानुमान महज 60 फीसदी तक सच होते थे वे अब 80 फीसदी तक सटीक साबित हो रहे हैं. सवाल है कि ये आंकड़ा 100 फीसदी तक कब और कैसे जाएगा?
जवाब में मौसम विभाग के पूर्वानुमान विभाग के महानिदेशक डॉ राजेंद्र कुमार जेनामणि कहते हैं कि बाकी 20 फीसदी पूर्वानुमान पूरे सटीक ना बैठने के पीछे मुख्य वजह ऑब्जर्वेटरी, रडार और एयर बैलून की तादाद कम रहना भी है. हमारे मॉडल में कोई कमी नहीं है.
जेनामणि ने बताया कि अगले दो-तीन वर्षों में कई जगह नई तकनीक से युक्त निगरानी केंद्र, राडार, एयर बैलून और अन्य तकनीकी उपकरण लगवा कर डाटा कलेक्शन को और समृद्ध किया जाएगा, ताकि भविष्यवाणी एकदम सटीक रहे.
मौसम का मिजाज खराब है या हमारा मॉडल?
स्काईमेट के उपाध्यक्ष महेश पालावत भी इस बात से सहमत हैं कि भारत में मौसम वैज्ञानिकों के 80 फीसदी पूर्वानुमान सही साबित होते हैं. हालांकि बीस फीसदी की चूक का कारण वे भारतीय प्रायद्वीप में मौसम के अनिश्चित और लगातार बदलते मिजाज को बताते हैं.
पिछले दस साल का अध्ययन बताता है कि मॉनसून के आते और जाते समय ही गरज के साथ बारिश होती थी. इसके बीच कुछ कुछ दिनों के अंतराल पर रिमझिम फुहारें कई-कई दिनों तक बरसती रहती थीं. लेकिन अब इस पैटर्न में भी बदलाव आ गया है. स्तरीय बादल बनने कम हो गए हैं. ये बादल बड़े इलाके में एकसाथ बारिश करते थे. इनके अभाव की वजह से कम ऊंचाई वाले बादल कहीं कहीं एकदम से बरसकर फौरन खाली हो जाते हैं.
क्लिक करें- Weather Updates: दिल्ली में मॉनसून का वेटिंग पीरियड, अगले 24 घंटे में इन राज्यों में होगी बारिश
अब शांत हवा में रिमझिम बरसने के बजाय मॉनसून के दौरान भी गरज के साथ बादल एकदम से झमाझम बरसते रहते हैं. हवा भी तेज चलती है. ये मॉनसून का नया मिजाज है. यानी रिमझिम की जगह और अधिकतर बार कुछ सीमित इलाकों में जम कर बारिश हो जाती है और बाकी आसपास के इलाके सूखे रह जाते हैं. जिन इलाकों में पूर्वानुमान के मुताबिक बारिश हो गई वहां मौसम विभाग सही साबित हो जाता है और जो इलाके सूखे रह गए वहां गलत करार दिया जाता है. कुछ हफ्तों में होने वाली बरसात अब मूसलाधार के रूप में कुछ दिनों या फिर कुछ घंटों में ही हो जाती है.
विकसित देश कैसे कर लेते हैं सटीक भविष्यवाणी?
पालावत कहते हैं कि जिस मॉडल पर हम यहां भविष्यवाणी करते हैं और 80 फीसदी सच होती हैं उसी मॉडल पर हम अमेरिका, ब्रिटेन या जापान या फिर किसी भी यूरोपीय देश में चले जाएं तो हम भी 95 से 97 फीसदी तक पूर्वानुमान सच साबित कर सकते हैं. कसर हमारी स्टडी और मॉडल में नहीं, बल्कि मौसम के विचलन में है.
पालावत के मुताबिक हमारे उपमहाद्वीप में मौसम ट्रॉपिकल यानी उष्ण कटिबंधीय मिजाज वाला होता है. यानी बारिश, आंधी और गरज चमक के साथ बौछारों का लंबे समय पहले किया गया अनुमान कई बार गड़बड़ हो जाता है क्योंकि यहां मौसम का मिजाज कभी भी बदल जाता है.
इसके विपरीत अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा चीन या जापान का मौसम स्थिर होता है और उसका पैटर्न ज्यादा बदलाव वाला नहीं होता. उष्णकटिबंधीय यानी कर्क रेखा के भारत के बीच से गुजरने की वजह से यहां मौसम का बदलाव ही नहीं बल्कि जलवायु परिवर्तन का असर भी जल्दी दिखता है.
क्या है मौसम विभाग का फ्यूचर प्लान?
मौसम विभाग के राष्ट्रीय पूर्वानुमान केंद्र के महानिदेशक डॉ राजेंद्र कुमार जेनामणि ने बताया कि 2015 तक हम मॉनसून की भविष्यवाणी करने में 60 फीसदी तक कामयाब होते थे. लेकिन अब सटीक होने की दर 80 फीसदी से भी ज्यादा है. हम पहले 2-3 दिन मौसम में आने वाले बदलाव की भविष्यवाणी करने में सक्षम थे. लेकिन अब तो हम अगले दो घंटों की भविष्यवाणी काफी आसानी से कर लेते हैं. वो 95 फीसदी तक सटीक बैठती है.
जेनामणि के मुताबिक अगले दो सालों में देश भर में 100 के करीब डॉप्लर और रडार स्थापित किए जाएंगे. इनकी तादाद जितनी बढ़ेगी पहाड़ों पर बर्फबारी, बादल फटने जैसी प्राकृतिक आपदा के बाबत हमारी भविष्यवाणी की क्षमता उतनी ही समय रहते और सटीक होकर आगे बढ़ेगी.
मौसम विभाग के अधिकारियों ने बताया कि, विश्व मौसम संगठन के मानकों के मुताबिक प्रत्येक 12 किलोमीटर पर मौसम सूचना और निगरानी केंद्र होना चाहिए. फिलहाल हमारे देश में कम से कम हर एक जिले में निगरानी केंद्र स्थापित हो जाए तो भी हम अपने अन्य संसाधनों से काफी सटीक जानकारी और भविष्यवाणी आम जनता को दे सकेंगे.
आंधी-बारिश की खबर तक सीमित नहीं रहे पूर्वानुमान
डॉ जेनामणि ने बताया कि अब मौसम विभाग की भविष्यवाणी का दायरा सिर्फ बारिश, आंधी, तूफान, चक्रवात की जानकारी देने तक ही सीमित नहीं रहा. बल्कि अब तो हम देश की अर्थव्यवस्था और अन्य प्रशासनिक और सामाजिक दायित्वों तक का भान हमे हैं. क्योंकि हम देश के बिजलीघरों को मौसम के पूर्वानुमान के जरिए बताते हैं कि मौसम के मिजाज में बदलाव आने से बिजली की मांग कब ज्यादा या कम होगी. किसानों के लिए मौसम विभाग की लंबी अवधि की भविष्यवाणियां काफी लाभप्रद होती हैं. कृषि के बुवाई और कटाई के समय मौसम का पूर्वानुमान बताकर खेती के फायदे को बढ़ाया या किसानों के नुकसान को कम किया जा सकता है.
डॉ जेनामणि के मुताबिक अपनी तकनीक, डाटा विश्लेषण और ऑब्जर्वेशन के जरिए हमने चक्रवात की भविष्यवाणी जितनी सटीक की है उसकी कायल पूरी दुनिया है. लेकिन रही बात मॉनसून की तो इसमें कई बार प्रकृति भी चकमा दे जाती है. हालांकि तकनीक के जरिए हम उस पर भी अपनी पैनी निगाह रख सकते हैं.
संजय शर्मा