मोदी सरकार के कामकाज से कितने खुश हैं किसान? MOTN सर्वे में हुआ खुलासा

इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक, सर्वे में शामिल ऐसे 33.4 फीसदी किसान जिनके पास अपनी जमीनें हैं. उनका कहना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है. लगभग 30 फीसदी किसानों का कहना है कि उनकी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है जबकि 32.5 फीसदी किसानों का कहना है कि उनकी स्थिति और खराब हुई है.

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किसान प्रदर्शन किसान प्रदर्शन

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 16 फरवरी 2024,
  • अपडेटेड 9:49 PM IST

दिल्ली चलो नारे के तहत पंजाब और हरियाणा के किसान संगठन न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP), कर्ज का बोझ, बिजली के बढ़े दाम और अन्य मुद्दों को लेकर एक बार फिर सड़कों पर उतर आए हैं. केंद्र सरकार का कहना है कि वे किसान संगठों की 13 में से 10 मांगें स्वीकार करने के लिए तैयार हैं लेकिन अभी तक बातचीत बेनतीजा रही है. किसान और केंद्र के बीच तीन दौर की वार्ता हो चुकी है. लेकिन सवाल ये है कि असल में किसान सरकार के बारे में क्या सोचते हैं.

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इंडिया टुडे के मूड ऑफ द नेशन सर्वे के मुताबिक, सर्वे में शामिल ऐसे 33.4 फीसदी किसान जिनके पास अपनी जमीनें हैं. उनका कहना है कि 2014 में नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद से उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है. लगभग 30 फीसदी किसानों का कहना है कि उनकी स्थिति में कोई खास बदलाव नहीं हुआ है जबकि 32.5 फीसदी किसानों का कहना है कि उनकी स्थिति और खराब हुई है.

क्या किसान अपनी आर्थिक स्थिति से खुश हैं?

वहीं, ऐसे किसान जिनके पास खेती की जमीन नहीं है. ऐसे एक-तिहाई से अधिक किसानों का कहना है कि मोदी सरकार के आने के बाद उनकी आर्थिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं आया है. वहीं, ऐसे 22 फीसदी किसानों का कहना है कि उनकी वित्तीय स्थिति और बदतर हुई है जबकि 28.6 फीसदी किसानों का कहना है कि उनकी स्थिति में सुधार हुआ है. 

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मूड ऑफ द नेशन सर्वे से पता चला है कि 34.8 फीसदी आम जनता कहना है कि उनकी आर्थिक स्थिति खराब हुई है जबकि 32.6 फीसदी का कहना है कि उनकी स्थिति में सुधार हुआ है. 

क्या किसानों के दैनिक खर्चे बढ़े हैं?

सर्वे में पूछा गया कि क्या किसानों पर पिछले साल की तुलना में इस बार महंगाई की मार ज्यादा पड़ी है. इस पर ऐसे किसान जिनके पास जमीनें हैं. ऐसे 63.2 फीसदी किसानों का कहना है कि उनके खर्चे लगातार बढ़ रहे हैं, जिन्हें संभालना मुश्किल हो रहा है. इसी तरह जमीन के मालिकाना हक वाले 70 फीसदी से अधिक किसानों को भी लगता है कि उन्हें खर्चे बढ़े हैं. इस सर्वे में शामिल 61.7 फीसदी किसानों का कहना है कि उनके खर्चे बढ़े हैं जिन्हें संभालना मुश्किल हो रहा है.

वहीं, ऐसे किसान जिनके पास जमीनें हैं, ऐसे 28 फीसदी किसानों का कहना है कि महंगाई के बावजूद उनके दैनिक खर्चे मैनेज हो पा रहे हैं. 19 फीसदी ऐसे किसान जिनके पास जमीन नहीं हैं, उन्हें भी ऐसा ही लगता है कि महंगाई बढ़ने के बावजूद उनकी स्थिति ठीक बनी हुई है. 

वहीं, लगभग पांच फीसदी किसानों का कहना है कि उनके दैनिक खर्चे बढ़े हैं. संदर्भ के लिए 2022 में औसतन उपभोक्ता मूल्य सूचकांक 6.9 था जबकि 2023 में यह 5.8 रहा. 

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क्या किसानों को मोदी की नीतियां से लाभ हुआ?

केंद्र सरकार की नीतियों के बारे में बात करते हुए ऐसे किसान जिनके पास खुद की जमीन हैं. इनमें से आधे से अधिक का कहना है कि उन्हें बीजेपी की अगुवाई में एनडीए सरकार में लाभ हुआ है. हालांकि, लगभग 14 फीसदी को लगता है कि किसानों को लाभ हुआ है. ऐसे किसान जिनके पास जमीन नहीं है, इनमें से 56 फीसदी से अधिक का कहना है कि उन्हें केंद्र की नीतियों से सबसे अधिक लाभ हुआ है. 56 फीसदी का कहना है कि मोदी की नीतियों से बड़े कारोबारों को अधिक लाभ हुआ है जबकि 10.5 फीसदी को लगता है कि केंद्र की नीतियों से छोटे कारोबारियों को लाभ हुआ है.

सर्वे में जब किसानों से मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता के बारे में पूछा गया तो 22 फीसदी किसानों ने महंगाई को सबसे बड़ी असफलता बताया. ये वो किसान हैं, जिनके पास अपनी खेती की जमीनें हैं. वहीं, ऐसे किसान जिनमें पास जमीनें नहीं हैं, ऐसे 28.4 फीसदी किसानों ने भी महंगाई को मोदी सरकार की सबसे बड़ी असफलता बताया. वहीं, किसानों का समर्थन करने वाले आम लोग लगभग 23 फीसदी किसानों ने भी महंगाई को सबसे बड़ी असफलता बताया. वहीं, ऐसे किसान जिनके पास अपनी जमीनें हैं, ऐसे लगभग 52 फीसदी किसानों ने बेरोजगारी को गंभीर समस्या बताया.

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मोदी सरकार के कामकाज को लेकर लगभग 39.1 फीसदी किसनों ने संतुष्टि जताई. ये वे किसान हैं, जिनके पास अपनी जमीनें हैं जबकि 31.1 फीसदी किसान मोदी सरकार के कामकाज से संतुष्ट हैं. ये वे किसान हैं, जिनके पास जमीनें नहीं हैं. वहीं, 39.1 फीसदी आमजन भी मोदी सरकार के कामकाज से खुश हैं.

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(रिपोर्ट: अंकिता तिवारी)

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