दिलीप कुमार का जन्म 11 दिसम्बर 1922 को पेशावर में हुआ था. उनका असली नाम यूसुफ खान है. यूं तो 40 से लेकर 90 के दशक के बीच में उन्होंने कई तरह के रोल निभाए हैं, लेकिन उनको खासतौर पर ट्रेजडी किंग के तौर पर जाना जाता है.
लेकिन ऐसा क्यों कि पर्दे पर रोमांस, कॉमेडी और एक्शन करने के बावजूद दिलीप कुमार की चर्चा उनके ट्रैजिक किरदारों के लिए होती है. दरअसल, 1948 से लेकर
1970 के बीच आईं उनकी कई फिल्मों की ट्रैजिक एंडिंग रही थी.
इसमें पहली फिल्म थी 1948 में आई नदिया के पार.
फिर 1948 में ही मेला आई.
1949 में राजकपूर के साथ आई अंदाज भी ट्रैजिक एंड लिए थी.
1950 में आई जोगन भी ऐसी ही फिल्म थी जिसमें दिलीप कुमार ने ट्रैजिक रोल किया था.
1950 में रिलीज हुई बाबुल का अंत भी दुखद था.
इसी साल आरजू रिलीज हुई जिसमें दिलीप कुमार ने एक बार फिर अपना संजीदा अभिनय दिखाया.
1951 में उनके अभिनय की गहराई दीदार में नजर आई.
फिर इसी साल दुखद अंत वाली फिल्म तराना के साथ दिलीप कुमार ने दर्शकों को खूब रुलाया.
1952 में रिलीज हुई दाग के बाद दिलीप कुमार की पहचान ट्रेजडी रोल्स निभाने वाले मास्टर की बन गई थी.
1953 में शिकस्त रिलीज होने के बाद तो दिलीप कुमार को सभी ट्रेजडी किंग कहने लगे थे.
1954 में अमर के साथ उनकी ये इमेज और पुख्ता होने लगी थी.
1955 में देवदास के किरदार में दिलीप कुमार साबित कर चुके थे कि आने वाले
समय में उनके जैसे भाव चेहरे पर लाना किसी भी कलाकार के लिए आसान नहीं
होगा.
1958 में वैजयंती माला के साथ आई मधुमति में भी दिलीप कुमार ने ट्रेजिक हीरो का किरदार निभाया था.
1966 में आई दिल दिया दर्द लिया में दिलीप कुमार ने एक बार फिर अपनी सैड इमेज को दर्शकों के सामने रखा.
1968 में रिलीज हुई आदमी में भी दिलीप कुमार ने ट्रेजिक अंदाज वाला शानदार अभिनय किया था.