बिहार विधानसभा चुनाव के दूसरे चरण की 122 सीटों पर 1302 उम्मीदवारों की किस्मत ईवीएम मशीन में कैद हो चुकी है. पहले चरण से ज्यादा उत्साह मतदाताओं में दूसरे चरण में नजर आया है. मंगलवार को 122 सीटों पर 68.74 फीसदी मतदान हुआ है, जबकि पहले फेज की 121 सीटों पर 6 नवंबर को 65.08 फीसदी मतदान रहा था. इस तरह दोनों चरणों को मिलाकर इस बार कुल 66.91 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया, जिसके साथ बिहार में वोटिंग के सारे रिकॉर्ड टूट गए हैं.
चुनाव आयोग के मुताबिक बिहार के दूसरे चरण की 122 सीटों पर 68.74 फीसदी मतदान रहा है, जबकि 2020 के विधानसभा चुनाव में इन सीटों पर 58.8 फीसदी मतदान रहा था. इस लिहाज से करीब 10 फीसदी ज्यादा वोटिंग हुई है. इन 122 सीटों पर 2015 के चुनाव में 58.3 फीसदी तो 2010 में 53.8 फीसदी वोटिंग रही थी.
वहीं, बिहार की कुल 243 सीटों पर 2020 के विधानसभा चुनाव में 57.29 फीसदी मतदान रहा था, जबकि 2025 में कुल 66.91 फीसदी वोटिंग रही. आजादी के बाद पहली बार इतना मतदान बिहार में हुआ है. 2020 के विधानसभा चुनाव की तुलना में इस बार 9.6 प्रतिशत मतदान ज्यादा हुआ है. यही नहीं, पुरुषों की तुलना में महिलाओं ने ज्यादा वोटिंग की है.
बिहार में टूट गए सारे वोटिंग रिकॉर्ड
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बिहार में आजादी के बाद से जितने चुनाव हुए हैं, उन सभी चुनाव के वोटिंग के रिकॉर्ड इस बार टूट गए हैं. बिहार में अभी तक सबसे ज्यादा वोटिंग का रिकॉर्ड 1998 के लोकसभा चुनाव का रहा था, जिसमें 64.6 फीसदी मतदान रहा था. विधानसभा चुनाव के लिहाज से देखें तो 2000 के चुनाव में 62.57 फीसदी मतदान रहा था. इस बार के विधानसभा चुनाव में करीब 67 फीसदी मतदान हुआ है, जिसके साथ एक रिकॉर्ड कायम हो गया है.
बिहार विधानसभा चुनाव में 60 फीसदी से ज्यादा मतदान चार बार रहा है, जिसमें 1990 में 62.04 फीसदी तो 1995 में 61.79 फीसदी रहा था. 2000 के चुनाव में 62.57 फीसदी और इस बार 66.91 फीसदी मतदान हुआ है.
बिहार के वोटिंग पैटर्न को देखें तो जब भी 60 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है, तब बिहार में लालू यादव की सरकार बनी है, इस बार देखना होगा कि क्या होता है. हालांकि, मंगलवार की शाम आए एक्जिट पोल के तमाम सर्वे में एनडीए के सरकार बनाने का अनुमान बताया गया है.
सीमांचल के जिलों में ज्यादा वोटिंग
विधानसभा चुनाव में सात जिले ऐसे रहे, जहाँ पर 70 फीसदी से अधिक मतदान हुआ/ बिहार में सबसे अधिक 78.60 प्रतिशत मतदान कटिहार जिले में हुई. दूसरे नंबर पर किशनगंज जिला रहा, जहां वोटिंग तो 78 फीसदी से अधिक हुई, लेकिन कटिहार से थोड़ा कम। पूर्णिया में 76.04 प्रतिशत वोटिंग रही है.
पूर्णिया की कसबा और किशनगंज की ठाकुरगंज विधानसभा सीट पर तो 81 फीसदी से अधिक वोट डाले गए हैं. इस तरह बिहार के सीमांचल इलाके की सीटों पर मतदान ने सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं.
2020 में सीमांचल के इलाके में जबरदस्त वोटिंग हुई थी, कोढ़ा विधानसभा सीट पर सबसे ज्यादा वोटिंग थी, 67.4 फीसदी, कटिहार की बरारी सीट पर 67.2 फीसदी, पूर्णिया की कस्बा सीट पर 66.4 फीसदी, किशनगंज की ठाकुरगंज सीट पर 66.1 फीसदी वोटिंग रही थी. इस बार के चुनाव में इन सीटों पर मतदान बढ़ा है. यह वही इलाका है, जहां पर मुस्लिम वोटर बड़ी संख्या में हैं और घुसपैठ का मुद्दा भी काफी हावी रहा. इसके अलावा वोटिंग में बढोत्तरी की एक वजह एसआईआर (SIR) को भी माना जा रहा है.
पुरुषों से ज्यादा महिलाओं का मतदान
चनाव आयोग ने बताया कि दूसरे चरण में हुई वोटिंग में भी महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले अधिक मतदान किया. दूसरे चरण में 1.74 करोड़ महिला वोटरों में से करीब 71 फीसदी महिलाओं ने वोट डाले. वहीं, 1.95 करोड़ से अधिक पुरुष वोटरों में से 62 फीसदी से अधिक पुरुषों ने वोट डाले। ऐसे ही पहले चरण में भी महिलाओं ने पुरुषों से ज्यादा मतदान किया है.
बिहार की 243 सीटों पर कुल मतदान 66.91 फीसदी रहा, जिसमें 62.8 फीसदी पुरुष तो 71.6 फीसदी महिलाओं ने वोटिंग की है. इस तरह पुरुषों से 8.8 फीसदी ज्यादा महिलाओं ने वोटिंग की है. इस तरह महिलाओं की वोटिंग बढ़ने का भी सियासी आकलन किया जा रहा है, जिससे एनडीए को लाभ मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है.
वोटिंग पैटर्न में 9.6 फीसदी का उछाल
बिहार विधानसभा चुनाव में इस बार 9.6 फीसदी का उछाल दिखा है. बिहार में 2020 के चुनाव में 57.29 फीसदी मतदान रहा था, जबकि 2025 में कुल 66.91 फीसदी वोटिंग रही. बिहार में मत प्रतिशत बढ़ने के अलग-अलग कारणों में से एक कारण एसआईआर (स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न) को भी माना जा रहा है.
एसआईआर प्रक्रिया के दौरान लगभग आठ परसेंट वोट मृत, डिस्प्लेस और नॉन एग्ज़िस्टिंग वोटर्स की वजह से काटे गए. ऐसे में जहाँ मत घटा, तो मत प्रतिशत बढ़ा है. एसआईआर की वजह से लोग अलर्ट हुए, जिसने मतदाताओं को बूथ तक जाने के लिए मजबूर किया. इसके अलावा दिवाली और छठ पर बड़ी संख्या में लोग बिहार आए हैं, विभिन्न राज्यों में प्रवास करने वाले मतदाताओं के लिए दिवाली एवं छठ पर 13 हजार से अधिक ट्रेनें चलाने और आए हुए लोगों का मतदान के लिए रुकना भी एक वजह बना.
बिहार में महिला वोटर बड़ी संख्या में घर से निकलकर बूथ तक गईं हैं, जिनकी संख्या पुरुषों की तुलना में काफी ज्यादा रही. राजनीतिक विश्लेषकों का दावा है कि बंपर वोटिंग के पीछे एनडीए सरकार की ओर से जीविका समूह से जुड़ी महिलाओं को मुख्यमंत्री रोजगार योजना के तहत हर परिवार की महिला को 10 हजार रुपये एवं लगभग दो करोड़ परिवार को प्रतिमाह 125 यूनिट बिजली मुफ्त दिया जाना है.
बिहार का वोटिंग पैटर्न के सियासी मायने
आजादी के बाद से लेकर अभी तक यानी 1951 से लेकर 2025 तक बिहार में जितने चुनाव हुए हैं, उसके वोटिंग पैटर्न को देखते हैं तो साफ जाहिर होता है कि बिहार में जब-जब मतदान में 5 फीसदी से ज़्यादा इजाफा हुआ है, उसका असर चुनाव पर पड़ा है. बिहार में सरकार बदल गई है, तीन बार देखा गया है कि वोटिंग बढ़ने से कैसे सत्ता पर सियासी असर पड़ा है.
बिहार में सबसे पहले 1967 के चुनाव में वोटिंग में इजाफा हुआ तो सरकार बदली. 1962 में 44.5 फ़ीसदी वोटिंग के मुकाबले साल 1967 में 51.5 फीसदी मतदान रहा. इस तरह 7 फ़ीसदी वोटिंग ज़्यादा हुई थी और कांग्रेस के हाथों से सरकार निकल गई थी.
बिहार में पहली बार गैर-कांग्रेसी दलों ने मिलकर सरकार बनाई थीय साल 1980 में 57.3 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि 1977 के चुनाव में 50.5 फ़ीसदी वोटिंग रही। ऐसे में 6.8 फ़ीसदी ज़्यादा मतदान हुआ, जिसका नतीजा रहा कि सरकार बदल गई.
1990 में 62 फीसदी मतदान हुआ था, जबकि उससे पहले 1985 में 56.3 फीसदी मतदान रहा. इस तरह 5.8 फीसदी ज़्यादा मतदान की बढ़ोतरी ने बिहार की सत्ता परिवर्तन कर दिया था. कांग्रेस को सत्ता से बाहर होना पड़ा था और जनता दल ने सरकार बनाई थी. इसके बाद बिहार में सत्ता परिवर्तन नवंबर 2005 में हुआ, जब 16 फीसदी वोटिंग कम हुई थी. इस बार बिहार के चुनाव में 9.8 फीसदी वोटिंग ज़्यादा हुई है, जिसके नफा-नुकसान का आकलन किया जा रहा है.
कुबूल अहमद