यूक्रेन और रूस के बीच चल रहे युद्ध को खत्म करने के लिए अमेरिका ने एक नई शांति योजना पेश की है. लेकिन इस योजना में कई कड़ी शर्तें हैं जो यूक्रेन को कमजोर बना सकती हैं. विशेषज्ञों का कहना है कि ये शर्तें यूक्रेन के लिए एक बड़ी गलती साबित होंगी, क्योंकि रूस अब भी बड़ा खतरा बना रहेगा. आइए जानते हैं कि ये शर्तें क्या हैं? क्यों ये यूक्रेन को नुकसान पहुंचा सकती हैं?
अमेरिकी योजना के अनुसार, यूक्रेन को अपनी सेना को आधा करना होगा. वर्तमान में यूक्रेन की सेना में लगभग 8 से 9 लाख सैनिक हैं, लेकिन इस योजना के बाद यह संख्या आधी रह जाएगी. इसके अलावा, यूक्रेन को अपनी सभी लंबी दूरी की मिसाइलें और हथियार नष्ट करने होंगे. यूक्रेन को डॉनेतस्क क्षेत्र के बाकी हिस्सों को रूस को सौंपना होगा जो अभी उसके कब्जे में हैं.
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ये शर्तें यूक्रेन की संप्रभुता पर हमला हैं. योजना में यूक्रेन को नाटो में शामिल होने की कोशिश छोड़नी होगी. अमेरिकी सैन्य मदद भी बंद हो जाएगी.
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यूक्रेन की सेना को आधा करना एक बड़ी गलती होगी क्योंकि इससे देश की रक्षा क्षमता कम हो जाएगी. यहां कुछ मुख्य कारण हैं...
रूस की सेना अभी भी बहुत बड़ी है: रूस की सेना में 14 से 15 लाख सैनिक हैं. अगर यूक्रेन की सेना आधी हो गई, तो रूस की तुलना में यूक्रेन 5-6 गुना कमजोर हो जाएगा. रूस हर महीने 30-40 हजार नए सैनिक भर्ती कर रहा है और अपनी सेना को 2026-2027 तक और बड़ा बनाने की योजना बना रहा है.
समझौते का पालन न करने का खतरा: रूस ने पहले भी कई समझौते तोड़े हैं, जैसे 1994 का बुडापेस्ट समझौता और 2014-2015 के मिन्स्क समझौते. अगर यूक्रेन कमजोर हो गया, तो रूस कभी भी दोबारा हमला कर सकता है.
रक्षा लाइनों की कमजोरी: छोटी सेना के साथ यूक्रेन सीमा पर मजबूत रक्षा नहीं बना पाएगा. सैनिकों को आराम देने या नए हमलों से लड़ने में मुश्किल होगी. अगर भारी हथियार भी हटा दिए गए, तो स्थिति और खराब हो जाएगी.
2014 की गलती दोहराना: 2014 में यूक्रेन की सेना छोटी थी, इसलिए रूस ने आसानी से क्रीमिया और डॉनबास पर कब्जा कर लिया. अब फिर वही स्थिति बन सकती है.
यूक्रेन के अधिकारी और विशेषज्ञ कहते हैं कि यह योजना यूक्रेन को रूस के सामने झुकने पर मजबूर कर रही है.
शांति समझौते के बाद भी रूस से कई खतरे बने रहेंगे. यहां मुख्य खतरे हैं...
ये खतरे दिखाते हैं कि शांति योजना से युद्ध खत्म नहीं होगा, बल्कि यूक्रेन और कमजोर हो जाएगा.
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यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने इस योजना को अस्वीकार किया है. उन्होंने कहा कि यह यूक्रेन की हार है. यूरोपीय देश भी चिंतित हैं कि इससे रूस और मजबूत हो जाएगा. अमेरिका का कहना है कि यह युद्ध खत्म करने का तरीका है, लेकिन कई लोग इसे रूस की जीत मानते हैं. इस योजना पर अभी चर्चा चल रही है. यूक्रेन को फैसला करना है कि वह अपनी आजादी की रक्षा कैसे करेगा. लेकिन साफ है कि ये शर्तें यूक्रेन के लिए खतरा बढ़ा सकती हैं.
ऋचीक मिश्रा