Crime Katha of Bihar: मोकामा, बिहार का एक ऐसा इलाका जो कभी उद्योगों की चमक से जगमगाता था, लेकिन आज ये इलाका अपराध और बदले की राजनीति के काले साए में डूबा है. एक वक्त था, जब खासकर टाल इलाका दलहन की खेती के लिए मशहूर था, लेकिन 1980 के दशक से वहां गैंगवार ने जड़ें जमा लीं. अनंत सिंह जैसे बाहुबली ने अपनी ताकत से उस इलाके पर कब्जा किया, लेकिन दुश्मनों की फौज ने कभी उसे सुकून से रहने नहीं दिया.
कुख्यात अनंत सिंह के दुश्मनों की लिस्ट में शुमार सूरजभान सिंह, राजन तिवारी और सोनू-मोनू जैसे नाम आज भी दहशत फैलाते हैं. यह कहानी है सत्ता, जमीन और बदले की. जहां हर गली में बंदूक की आवाज गूंजती है. टाल के गुट ने अनंत सिंह के वर्चस्व को चुनौती दी, और इसी दुश्मनी में खून की नदियां बहाईं गईं. आज भी मोकामा की सियासत इन्हीं रंजिशों पर टिकी है.
अनंत सिंह - छोटे सरकार का उदय
अनंत सिंह को 'छोटे सरकार' कहा जाता है. उसका जन्म 1961 में मोकामा के लदमा गांव में रहने वाले एक गरीब परिवार में हुआ था. जिस उम्र में बच्चे खेल कूद में बिजी रहते हैं, उस छोटी सी उम्र में ही अनंत सिंह ने पहली हत्या की थी. साल 1990 के दशक तक उसका नाम अपहरण, वसूली और हत्या के कई मामलों में आ चुका था. उसका बड़ा भाई दिलीप सिंह 'बड़े सरकार' के नाम से मशहूर था, जो 1990 और 1995 में जनता दल से विधायक बना.
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राजनीति में एंट्री
अनंत सिंह ने साल 2005 के दौरान राजनीति में कदम रखा, जब जदयू ने उसे अपना उम्मीदवार बनाया और चुनाव में उसने पहली बार मोकामा से जीत हासिल की. उसके खिलाफ 38 से ज्यादा आपराधिक मामले हैं, लेकिन वोटरों के बीच वो हीरो है. वो जेल में रहते हुए भी चुनाव जीत चुका है, और उसकी पत्नी नीलम देवी ने साल 2022 में सीट बचाई. अनंत का दबदबा टाल क्षेत्र तक फैला था, लेकिन दुश्मनों ने उसे कभी अकेला नहीं छोड़ा.
सूरजभान सिंह: दादा की दहशत
सूरजभान सिंह एक ऐसा बाहुबली है, जिसे लोग 'दादा' कहते हैं. उसका जन्म 1965 में मोकामा के एक किसान परिवार में हुआ था. गरीबी से निकलकर वह रेलवे के ठेकों पर कब्जा करने वाला डॉन बन गया. उसके खिलाफ 26 आपराधिक मामले हैं, जिनमें 1992 की एक हत्या और 1998 में पूर्व मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की हत्या का केस भी शामिल है.
पटना हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने उसे 2024 में इस मामले में बरी किया था, लेकिन वो चुनाव लड़ने से वंचित हैं. साल 2000 में निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर सूरजभान ने अनंत सिंह के भाई दिलीप को 70,000 वोटों से हराया था. बाद में वह एलजेपी से बिहार की बेलिया लोकसभा सीट से सांसद बने. उनकी पत्नी वीणा देवी 2014 में मुंगेर से सांसद रहीं. सूरजभान का प्रभाव रेलवे कॉन्ट्रैक्ट्स और टाल की जमीनों पर है, जो अनंत से टकराती है.
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राजन तिवारी: सीमा पार का गैंगस्टर
कुख्यात राजन तिवारी बिहार का एक ऐसा नाम है, जो अपराध की दुनिया में 1990 के दशक से सक्रिय है. कॉलेज के दिनों में वह श्रीप्रकाश शुक्ला जैसे डॉन से जुड़ा था, और यूपी के गोरखपुर में पुलिस पर फायरिंग करने के लिए कुख्यात हुआ. उसके खिलाफ गैंगस्टर एक्ट के तहत 1998 से खिलाफ नॉन-बेलेबल वारंट है, और वह यूपी-बिहार के 61 सबसे खतरनाक माफियाओं की लिस्ट में शामिल है.
मोकामा के टाल इलाके से उसका कनेक्शन जमीन और ठेकों के जरिए हुआ, जहां वह अनंत सिंह के वर्चस्व को चुनौती देता रहा. साल 2000 के विधानसभा चुनावों में वह नीतीश कुमार को समर्थन देने वाले गैंग लॉर्ड्स में शुमार था. राजन तिवारी की दुश्मनी अनंत से जमीन के बंटवारे पर शुरू हुई थी, जो आज भी जारी है. वह सीमा पार स्मगलिंग और वसूली के मामलों का सरगना है.
सोनू-मोनू: पुराने साथियों का विद्रोह
कुख्यात सोनू और मोनू सिंह भाई हैं, जो 2009 से अपराध की दुनिया में सक्रिय हैं. शुरू में वे ट्रेनों में लूटपाट करते थे, लेकिन बाद में उन दोनों ने अनंत सिंह के करीबी बनकर मोकामा में दबदबा जमाया. 12 से ज्यादा मामले उनके खिलाफ हैं, जिनमें हत्या, अपहरण और वसूली शामिल है. यूपी के मुख्तार अंसारी गैंग से जुड़कर उन्होंने अनंत के खिलाफ बगावत की. जनवरी 2025 में नौरंगा गांव में 60-70 राउंड फायरिंग हुई, जब अनंत एक संपत्ति विवाद सुलझाने पहुंचा था. सोनू ने वीडियो में धमकी दी कि अनंत का दौर खत्म हो गया. हालांकि मोनू अभी फरार है. उनका गुट टाल क्षेत्र में अनंत को चुनौती दे रहा है. पहले दोस्त थे, अब दुश्मन हैं. यह उनकी कहानी है.
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टाल का गुट: गंगा किनारे आतंक का अड्डा
मोकामा का टाल इलाका गंगा की उपजाऊ भूमि है, लेकिन अब वो अपराध का अड्डा बन चुकी है. टाल का गुट 1980 के दशक से सक्रिय है, जो जमीन हड़पने, दलहन की खेती पर कब्जा और वसूली के लिए कुख्यात है. यह गुट भूमिहार और यादव समुदायों के बीच जातीय जंग का प्रतीक है. अनंत सिंह ने यहां अपना साम्राज्य फैलाया, लेकिन टाल के गुट ने हमेशा विद्रोह किया. दुलारचंद यादव जैसे स्थानीय बाहुबली इसी गुट से जुड़े थे. गुट के सरगनाओं ने रेलवे यार्ड से लेकर फैक्टरियों तक पर कब्जा किया है. अनंत के खिलाफ उनकी दुश्मनी जमीन के बंटवारे से शुरू हुई थी. आज भी टाल की गलियां रंजिशों से भरी हैं.
अनंत बनाम सूरजभान: राजनीतिक दुश्मनी
बाहुबली अनंत सिंह और सूरजभान सिंह की दुश्मनी 2000 के चुनाव से शुरू हुई, जब सूरजभान ने अनंत के भाई दिलीप को बुरी तरह हराया था. यह सिर्फ सीट की जंग नहीं, बल्कि टाल की जमीन और ठेकों पर कब्जे की लड़ाई थी. सूरजभान ने रेलवे कॉन्ट्रैक्ट्स पर राज किया, जबकि अनंत ने एनटीपीसी बारह के टेंडर कंट्रोल किए थे. साल 2005 में अनंत ने सीट छीनी, लेकिन सूरजभान ने पीछे हटना नहीं सीखा. दोनों भूमिहार हैं, लेकिन वोटरों को बांटने में माहिर भी. सूरजभान की पत्नी वीणा देवी आज अनंत के खिलाफ लड़ रही हैं. यह दुश्मनी जातीय गठजोड़ों पर टिकी है. मोकामा की सियासत इन्हीं रंजिशों से चलती है.
राजन तिवारी की साजिश: सीमापार की चुनौती
राजन तिवारी की अनंत सिंह से दुश्मनी यूपी बॉर्डर पर रेलवे ठेकों से जुड़ी। तिवारी ने गोरखपुर में वीरेंद्र प्रताप शाही जैसे डॉन से गठजोड़ किया, जो अनंत के बिजनेस को नुकसान पहुंचाता था. 1998 में पुलिस पर फायरिंग के बाद तिवारी बिहार भाग निकला और टाल में अनंत के खिलाफ गुट बनाया. 2000 में वह नीतीश को सपोर्ट करने वाले गैंग में शामिल हो गया था, लेकिन अनंत ने उन्हें बाहर करवा दिया. राजन तिवारी ने स्मगलिंग और अपहरण की घटनाओं से अनंत सिंह को घेरा. उनकी लिस्ट में अनंत सबसे बड़ा दुश्मन है. मोकामा टाल में उनकी मौजूदगी अनंत के लिए सिरदर्द बनी.
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सोनू-मोनू का विद्रोह: दोस्त से दुश्मनी
सोनू-मोनू अनंत सिंह के पूर्व सहयोगी थे, जो उनके लिए गंदे काम करते थे. लेकिन साल 2015 में अनंत की गिरफ्तारी के बाद उन्होंने बगावत की. गुड्डू सिंह से जुड़े एक विवाद में अनंत ने उनका साथ नहीं दिया, तो वे मुख्तार अंसारी से जुड़ गए. जनवरी 2025 की फायरिंग इसी रंजिश का नतीजा थी. सोनू ने कहा, 'अनंत अब छोटे सरकार नहीं.' टाल में उनका गुट अनंत के समर्थकों पर हमला करता है. मोनू की गिरफ्तारी अगस्त 2025 में हुई. यह दुश्मनी विश्वासघात की है. मोकामा में वे दोनों अनंत को उखाड़ फेंकने को बेताब रहते हैं.
टाल गुट का हमला: जमीन की जंग
टाल का गुट अनंत सिंह के लिए सबसे पुराना सिरदर्द है. 1980 के दशक से यह गुट गंगा किनारे की जमीनों पर कब्जा करता रहा है. अनंत ने 1990 में वहां एंट्री ली, लेकिन गुट ने जातीय जंग छेड़ दी. दुलारचंद यादव जैसे सदस्यों ने अनंत को चुनौती दी. 30 अक्टूबर 2025 को दुलारचंद की हत्या इसी जंग का हिस्सा थी. गुट ने उसकी हत्या का इल्जाम अनंत पर लगाया. टाल की दलहन खेती अब हथियारों को छिपाने की जगह बन चुकी है. अनंत ने गुट को कुचलने की कोशिश की, लेकिन रंजिश बरकरार है.
जुर्म की जमीन पर मोकामा की सियासत
मोकामा की राजनीति अपराध पर टिकी है. अनंत सिंह ने 2005 से इस विधानसभा सीट पर कब्जा जमाया है, लेकिन सूरजभान ने हमेशा उसके खिलाफ साजिश रची है. साल 2025 चुनाव में वीणा देवी बनाम अनंत की जंग है. सोनू-मोनू और टाल गुट ने अनंत को कमजोर किया. राजन तिवारी जैसे बाहरी ताकतें बॉर्डर से धमकाती रहीं. यहां वोट जाति और ताकत से पड़ते हैं. नीतीश कुमार ने अनंत को संरक्षण दिया, लेकिन गिरफ्तारियां बढ़ीं. मोकामा बाहुबलियों की राजनीति का प्रतीक बन गया.
विरासत में अनंत की दुश्मनी
ये जग जाहिर है कि अनंत सिंह के दुश्मनों की लिस्ट लंबी है. उसके खिलाफ सूरजभान की सियासी चाल, राजन तिवारी की सीमापार साजिश, सोनू-मोनू का विश्वासघात और टाल गुट का लालच एक दिवार की तरह खड़ा है. मोकामा में हुई हालिया वारदातों और मर्डर की घटनाओं ने दुश्मनी की पुरानी खाई गहरी कर दी है. ऐसे में साफ पता चलता है कि पुराने बाहुबलियों के वैर और दुश्मनी भी उनके साथ जिंदा हैं.
परवेज़ सागर