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दालों का आयात दोगुना क्यों किया गया, क‍िसने ल‍िखी क‍िसानों को तबाह करने वाली स्क्रिप्ट?

केंद्र सरकार ने दलहन फसलों में आत्मनिर्भरता के लिए मिशन शुरू किया है, जिसका लक्ष्य 2030 तक उत्पादन 350 लाख टन और क्षेत्रफल 310 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाना है. हालांकि, किसानों को मंडियों में MSP न मिलने और दालों के अधिक आयात के कारण यह मिशन चुनौतियों का सामना कर रहा है.

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दलहन की खेती से किसानों को नहीं मिल पा रहा फायदा (Photo: Unsplash)
दलहन की खेती से किसानों को नहीं मिल पा रहा फायदा (Photo: Unsplash)

केंद्र सरकार ने दलहन के क्षेत्र में भारत को आत्मन‍िर्भर बनाने के ल‍िए म‍िशन की शुरुआत कर दी है. इसके तहत अगले छह वर्ष में यानी 2030-31 तक दलहन फसलों का एर‍िया 310 लाख हेक्टेयर तक पहुंचाने, उत्पादन 350 लाख टन करने और उत्पादकता 1130 किलोग्राम प्रत‍ि हेक्टेयर तक ले जाने का टारगेट सेट क‍िया गया है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 11 अक्टूबर को पूसा कैंपस से इसकी शुरुआत कर दी है, ज‍िसके तहत 416 ज‍िलों में दालों के उत्पादन पर फोकस होगा.

हालांक‍ि, बड़ा सवाल यह है क‍ि जब क‍िसानों को दालों की कीमत ही नहीं म‍िल रही है तो फ‍िर यह म‍िशन सफल कैसे होगा? भारत में मांग के मुकाबले दालों का उत्पादन कम है. इसके बावजूद क‍िसानों को मंड‍ियों में दालों का एमएसपी भी नसीब नहीं हो रहा है. क्योंक‍ि जरूरत के मुकाबले दोगुना से अध‍िक दालों का आयात हो गया है. ऐसे में कोई क‍िसान दलहन फसलों की खेती क्यों बढ़ाएगा?

दरअसल, इस मामले को लेकर केंद्रीय कृष‍ि, उपभोक्ता और वाण‍िज्य मंत्रालय में कोई तालमेल नहीं द‍िख रहा. ज‍िसका खाम‍ियाजा क‍िसानों को उठाना पड़ रहा है. कृष‍ि मंत्रालय की ज‍िम्मेदारी क‍िसानों की आय बढ़ाने की है, जबक‍ि उपभोक्ता मामले और वाण‍िज्य मंत्रालय का काम उपभोक्ताओं और व्यापार‍ियों के ह‍ितों की रक्षा करने का है. उपभोक्ता मामले और वाण‍िज्य मंत्रालय तो अपने मूल ज‍िम्मेदारी को न‍िभा रहे हैं. ज‍िससे उपभोक्ताओं को सस्ती दाल म‍िल रही है और व्यापार‍ियों को ड्यूटी फ्री इंपोर्ट की मलाई. लेक‍िन कृष‍ि मंत्रालय दलहन फसलों की खेती करने वाले क‍िसानों के ह‍ितों की रक्षा करने में फ्लाप साब‍ित होता हुआ द‍िख रहा है. क्योंक‍ि वो क‍िसानों को मंड‍ियों में दालों का एमएसपी भी नहीं द‍िला पा रहा.

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उपभोक्ता, व्यापारी बनाम क‍िसान
कुल म‍िलाकर केंद्र सरकार की पॉल‍िसी ऐसी है क‍ि उपभोक्ताओं और व्यापार‍ियों के ह‍ित क‍िसानों पर भारी पड़ रहे हैं. नतीजा यह है क‍ि दलहन फसलों की खेती बढ़ने की बजाय घट रही है. क‍िसानों की बजाय कंज्यूमर और व्यापार‍ियों को प्राथम‍िकता देने वाली नीत‍ि का ही नतीजा है क‍ि साल 2021-22 में दलहन का फसलों का जो क्षेत्र 307.31 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया था वह 2024-25 में घटकर सिर्फ 276.24 लाख हेक्टेयर पर सिमट चुका है.

दलहन के मामले में आत्मन‍िर्भरता का नारा सरकार काफी पहले से लगा रही है, लेक‍िन उसे सफलता नहीं म‍िल रही. साल 2017 के अक्टूबर महीने में तत्कालीन कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा था कि भारत को अगले दो वर्षों में दालों का आयात करने की जरूरत नहीं होगी और इसकी घरेलू मांग को पूरा करने के मामले में देश आत्मनिर्भर होगा. लेक‍िन, हुआ इसका उल्टा. साल 2020-21 में दालों के आयात पर जो 12,153 करोड़ रुपये खर्च हुए थे वो 2024-25 में बढ़कर 47000 करोड़ रुपये के भी पार पहुंच गया. इसके बाद भी क‍िसानों को तबाह करने वाली आयात नीत‍ि कायम है.

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दलहन क‍िसानों का कैसे बढ़ा दर्द? 
भारत सरकार के थिंक टैंक नीत‍ि आयोग ने फसलों, पशुधन, मत्स्य पालन और कृषि इनपुट की 2033 तक मांग और आपूर्ति के अनुमान को लेकर एक वर्क‍िंग ग्रुप बनाया था. इंस्टिट्यूट फॉर सोशल एंड इकोनॉमिक चेंज, बंगलूरू के प्रोफेसर डॉ. प्रमोद कुमार की अध्यक्षता में बने इस वर्क‍िंग ग्रुप ने एक र‍िपोर्ट दी है. ज‍िसके अनुसार 2024-25 के दौरान भारत में दालों की मांग और आपूर्त‍ि में 36.72 लाख टन की कमी है.

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ऐसे में उपभोक्ताओं को राहत देने के ल‍िए करीब इतनी ही दालों का आयात करना चाह‍िए था. वो भी इतनी इंपोर्ट ड्यूटी लगाकर क‍ि उससे भारत के अपने क‍िसानों को कम दाम का दर्द न म‍िले. उन्हें कम से कम एमएसपी ज‍ितना दाम तो म‍िल जाए. लेक‍िन भारत सरकार ने दालों का आयात क‍िया 76.54 लाख मीट्र‍िक टन का. यानी ज‍ितनी जरूरत थी उसके डबल से ज्यादा है. वो भी जीरो इंपोर्ट ड्यूटी पर. ऐसे में दाम ग‍िरेगा नहीं तो क्या होगा? 

सवाल यह है क‍ि अगर दाम का यही हाल रहेगा तो ज‍िस तरह से राधा मोहन स‍िंह का 2016-17 में देखा गया आत्मन‍िर्भरता का सपना अधूरा रह गया, उसी तरह श‍िवराज के राज वाला दलहन म‍िशन भी फेल होने से कोई बचा नहीं सकता. केंद्र ने उपभोक्ताओं के ह‍ित के नाम पर अरहर, पीली मटर और उड़द के ड्यूटी फ्री इंपोर्ट की अनुमति 31 मार्च, 2026 तक दी हुई है. ऐसे में भला क‍िसानों को कैसे उनकी उपज का सही दाम म‍िलेगा और कैसे दलहन फसलों की खेती बढ़ेगी. 

दालों की ड‍िमांड-सप्लाई का गण‍ित 
•    बहरहाल, आईए जरा मांग और आपूर्त‍ि का गण‍ित समझ लेते हैं. नीत‍ि आयोग की ओर से गठ‍ित वर्क‍िंग ग्रुप की र‍िपोर्ट के मुताब‍िक 2021-22 में दालों की ड‍िमांड 267.2 लाख मीट्र‍िक टन और सप्लाई 243.5 लाख मीट्र‍िक टन थी. यानी तब ड‍िमांड और सप्लाई में 23.7 लाख टन की कमी थी.
•    आयोग के अनुसार 2028-29 तक भारत में दलहन की ड‍िमांड 318.3 लाख टन होगी और सप्लाई 297.9 लाख टन की ही रहेगी. यानी 2028-29 में दलहन की ड‍िमांड और सप्लाई में 20.4 लाख टन का अंतर होगा.
•    र‍िपोर्ट के अनुसार 2021-22 में दालों की मांग 267.2 लाख टन है, जबक‍ि 2028-29 में 318.3 लाख टन हो जाएगी. यानी सात साल में कुल मांग 51.1 लाख मीट्र‍िक टन बढ़ जाएगी. 

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इसका मतलब यह है क‍ि दलहन की मांग सालाना लगभग 7.3 लाख टन बढ़ेगी. अब हम 2021-22 में दालों की मांग में तीन साल में होने वाली ड‍िमांड हाइक यानी 21.9 लाख मीट्र‍िक टन को जोड़ते हैं तो यह 2024-25 में 289.1 लाख टन होती है. जबक‍ि 2024-25 में उत्पादन 252.38 लाख टन है. यानी दालों की ड‍िमांड और सप्लाई में र‍िकॉर्ड 36.72 लाख टन की कमी है. इसके उलट आयात 76.54 लाख मीट्र‍िक टन का हुआ है.

तस्वीर साफ है क‍ि कंज्यूमर के आंसू क‍िसानों के दर्द पर भारी हैं. सरकार को कंज्यूमर के आंसू द‍िख रहे हैं लेक‍िन क‍िसानों के नहीं. उन्हें दलहन में आत्मन‍िर्भरता के नारे का लॉलीपॉप द‍िया जा रहा है. बहरहाल, दालों का आयात बढ़ रहा है और बढ़ती आयात न‍िर्भरता की कीमत एक द‍िन उपभोक्ताओं को भी चुकाने के ल‍िए तैयार रहना चाह‍िए. 
 

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