scorecardresearch
 

इंटरनेट सेंसरशिप: क्या है चाइनीज फायरवॉल, कैसे इसने दुनिया के लिए चीन को एक बंद दरवाजे जैसे बना रखा है?

चीन में फेसबुक, ट्विटर से लेकर वॉट्सएप तक बैन है. इनकी जगह चीनी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म हैं, जो हर शख्स की हर लिखी-कही बात पर नजर रखते हैं. शी जिनपिंग सरकार ने इसके लिए अपना सेंसर सिस्टम तो बनाया ही, साथ में हर स्टेट में कई कंपनियों को इसका ठेका भी दे रखा है.

Advertisement
X
चीन में ग्लोबल स्तर पर चल रहा कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं है. प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)
चीन में ग्लोबल स्तर पर चल रहा कोई भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नहीं है. प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

China में जीरो कोविड पॉलिसी को लेकर सरकारी सख्ती का विरोध हो रहा है. लाखों लोग सड़क पर उतरे हुए हैं, जिन्हें दबाने के लिए चीन की सेना तक एक्टिव हो चुकी. खबरें आ रही हैं कि चीन की सड़कों पर बख्तरबंद टैंक घूम रहे हैं ताकि विरोधियों की आवाज दबाई जा सके. वैसे एंटी-सरकार प्रोटेस्ट को दबाने का कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना के पास एक और तरीका भी है. इंटरनेट सेंसरशिप, जो इतनी सख्त है कि सेंध लगाना लगभग नामुमकिन है. यहां हर यूजर की लिखी हर पोस्ट, चाहे वो आम हो, या खास सेंसरशिप से गुजरती है. इसे ग्रेट फायरवॉल ऑफ चाइना कहते हैं. 

सबसे कम नंबर मिलते रहे हैं चीन को
वॉशिंगटन डीसी से पूरी दुनिया में इंटरनेट की आजादी पर नजर रखने वाली संस्था फ्रीडम हाउस हर साल अपनी रिपोर्ट जारी करती है. इसमें 10 से 100 के बीच नंबर हैं. अगर किसी देश को 100 नंबर मिले तो इसका मतलब कि वहां इंटरनेट पर लिखने-बोलने की पूरी आजादी है. साल 2022 में चीन को इसमें 10 नंबर मिले. ये सबसे नीचे की मार्किंग है. इसका मतलब ये कि वहां ऑनलाइन खुद को व्यक्त करना किसी जंग से कम नहीं. 

internet censorship china
ग्रेट फायरवॉल ऑफ चाइना साल 2000 से ही गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट नाम से सक्रिय रहा. प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

22 साल पहले ही हो चुकी थी शुरुआत
साल 2000 में वहां की मिनिस्ट्री ऑफ पब्लिक सिक्योरिटी ने गोल्डन शील्ड प्रोजेक्ट लॉन्च किया. जैसा कि नाम से समझ आ रहा है, ये शील्ड थी, यानी सेंसरशिप की दीवार. ये उतनी पुरानी बात है, जब सोशल मीडिया के नाम पर लगभग कुछ नहीं था. इससे इंटरनेट पर दिख रही छोटी से छोटी चीज सेंसर की नजरों से गुजरती. अगर कोई सरकार विरोधी लग रहा है तो उसकी पहचान की जाती और यहां कि उसके पर्सनल रिकॉर्ड तक सरकार के पास पहुंच जाते. इसके बाद जो कार्रवाई होनी हो, होगी, लेकिन इस बीच ही वो शख्स या वेबसाइट ब्लॉक कर दी जाती. पहले-पहले बड़े संस्थानों या अलग सोच वाले लोगों पर हमला हुआ, फिर ये हर मामूली आदमी पर लागू होने लगा. 

Advertisement

गूगल को भी छोड़ना पड़ा चीन
साल 2010 में बीजिंग स्थित गूगल से भी चीन सरकार ने कहा कि वो अपना सर्च लिमिटेड कर दे. जब गूगल ने इस बात पर हामी नहीं भरी तो चीन से उसे भी उठाकर बाहर फेंक दिया. दो साल बाद शी जिनपिंग के सत्ता में आने के बाद से सख्ती बढ़ती ही चली गई. बैन शब्दों और तस्वीरों की लिस्ट तैयार हुई. कोई इन्हें पोस्ट नहीं कर सकता. इसके लिए AI की मदद ली गई जो इमेज स्कैन करके तय कर सके कि कंटेट या पिक्चर में कोई संवेदनशील बात तो नहीं, जो सरकार के खिलाफ चली जाए. 

internet censorship china
चीन में न तो आप न्यूयॉर्क टाइम्स पढ़ सकेंगे, न ही कोई भारतीय अंग्रेजी अखबार. इनपर तक बैन है. प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

सबकुछ है लेकिन चाइना-मेड
ग्रेट फायरवॉल ऑफ चाइना विदेशी एप्स और वेबसाइट्स को बंद करके उनकी जगह मेड इन चाइना विकल्प लाने लगी ताकि युवा पीढ़ी भड़ककर एकदम से विद्रोह न कर दे. यहां न तो इंस्टाग्राम है, न गूगल और न ही यूट्यूब. यहां तक कि वॉट्सएप और ट्विटर भी यहां नहीं है. इसी तरह से इंटरनेशनल मीडिया के बड़े नाम भी यहां नहीं मिलेंगे. जैसे अगर किसी न्यूयॉर्क टाइम्स या ब्रिटिश अखबार पढ़ने हों तो चीन में ये संभव नहीं. भारतीय न्यूजपेपर वेबसाइट्स भी चीन में नहीं पढ़ी जा सकतीं. गलवान घाटी तनाव के बाद से इसमें और सख्ती आ गई ताकि मृत चीनी सैनिकों की जानकारी स्थानीय लोगों तक न पहुंचे. 

Advertisement

लोकल स्तर पर भी होती है सफाई
ग्रेट फायरवॉल के तहत आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तो काम करती ही है, साथ में बहुत सी संस्थाओं को भी सेंसरशिप का काम मिला हुआ है. गुस्साए हुए चीनी युवा इन भाड़े की कंपनियों को बिग ममा भी कहते हैं. हर राज्य में ये कंपनियां कुछ खास की-वर्ड्स को ब्लॉक कर देती हैं ताकि सर्च करने पर यूजर को कोई जानकारी न मिले. 

internet censorship china
इंटरनेट पर असल जानकारी मिलने से रोकने का एक तरीका फ्रिक्शन भी है, जिसमें कुछ वेबसाइट्स को बैन न करके बहुत स्लो कर दिया जाता है. प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

दो तरीके से काम करती है ग्रेट फायरवॉल
पहला काम है- चीन के युवाओं तक बाकी दुनिया में क्या हो रहा है, ये पहुंचने से रोकना. दूसरा एजेंडा है- चीन की बातों को बाकी दुनिया तक पहुंचने से रोकना. या न तो इन हो, न आउट. फिलहाल तक कोई कॉमन प्लेटफॉर्म नहीं बन सका जिसके जरिए चीन में रह रहे लोग और बाकी लोग आपस में खुली बातचीत कर सकें.  

सेंसरशिप में एक तरीका और भी है, जिसे फ्रिक्शन कहते हैं. इसके तहत कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ चाइना ने उन तमाम वेबसाइट्स को स्लो कर दिया, जो किसी भी तरह से फ्री स्पीच की बात करे. अब यूजर इसे खोलने की कोशिश करेगा तो इंतजार ही करता रह जाएगा और आखिरकार बंद कर देगा. सेंसरशिप के दायरे में ही फ्लडिंग भी आता है. ये चीन के अलावा कई दूसरे देशों में भी अपनाया जा रहा है. इसमें फेक न्यूज का पूरा जाल बुन दिया जाता है और इतना फैलाया जाता है कि वही सच लगने लगे. फ्लड यानी सूचनाओं की बाढ़. आमतौर पर सच्ची खबरें, इनके नीचे दबकर रह जाती हैं. 

Advertisement
internet censorship north korea
उत्तर कोरिया में इंटरनेट के खुले इस्तेमाल की इजाजत पोलित ब्यूरो से अलग किसी को नहीं, यहां सेंसर्स चीजें फैलाने वाले सीधे कैद किए जाते हैं. प्रतीकात्मक तस्वीर (Pixabay)

नॉर्थ कोरिया इसमें भी आगे है
ये तो हुई चीन की बात, लेकिन कई दूसरे देश भी इंटरनेट सेंसरशिप खूब करते हैं. नॉर्थ कोरिया इसमें चीन की ही टक्कर पर है. यहां कोई भी विदेशी मीडिया की एंट्री नहीं. न आप उन्हें खोज सकते हैं, न वे आपको. इस देश के लोग बाहर बस चुके अपने नाते-रिश्तेदारों को मैसेज या कॉल नहीं कर सकते. सिर्फ सरकारी अधिकारियों को ही इसकी इजाजत है. बाकी लोग इंटरनेट का अलग रूप इस्तेमाल करते हैं, जिसे Kwangmyong कहा जाता है. 

इरान में भी सोशल मीडिया पर काफी सख्ती है. यहां के लोग यू-ट्यूब, ट्विटर, फेसबुक नहीं चला सकते. न्यूज के नाम पर सरकारी चीजें ही यहां देखी-पढ़ी जा सकती हैं. इसी लिस्ट में सीरिया, सऊदी अरब, बेलारूस, क्यूबा और तुर्कमेनिस्तान आते हैं. 

Advertisement
Advertisement