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चीन की धमकी- दुश्मन मानने वालों से भारत ने मिलाया हाथ तो रिश्ते होंगे खराब

जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं. अब ट्रंप जी-7 का विस्तार कर इसे जी-11 या जी-12 बनाना चाहते हैं. अमेरिका इसमें भारत और रूस को भी शामिल करना चाहता है.

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भारत को जी 7 समूह से दूर रहने की धमकी (फाइल फोटो)
भारत को जी 7 समूह से दूर रहने की धमकी (फाइल फोटो)

  • जी-7 ग्रुप का हिस्सा बनने में भारत की भलाई नहीं
  • ट्रंप ने भारत के सामने ग्रुप में शामिल होने का रखा प्रस्ताव
चीन ने भारत को आगाह करते हुए कहा है कि वो जल्दबाजी में कोई ऐसा कदम ना उठाए, जिससे कि दोनों देशों के बीच के संबंध खराब हों. चीन ने ये बात जी- 7 ग्रुप देशों में शामिल होने के संदर्भ में कही है. चीन ने कहा है कि जी-7 ग्रुप का हिस्सा बनने में कोई भलाई नहीं है क्योंकि ये देश चीन को काल्पनिक शत्रु मानकर काम कर रहे हैं. ऐसे में इन देशों का साथ देने से हम दोनों देशों के बीच के संबंध खराब होंगे.

दरअसल जी-7 दुनिया की सात सबसे बड़ी और उन्नत अर्थव्यवस्था वाले देशों का समूह है, जिसमें कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, ब्रिटेन और अमेरिका शामिल हैं. अब ट्रंप जी-7 का विस्तार कर इसे जी-11 या जी-12 बनाना चाहते हैं. अमेरिका इसमें भारत और रूस को भी शामिल करना चाहता है.

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अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया था और उनके सामने जी-7 के विस्तार में भारत को शामिल करने का प्रस्ताव रखा. पीएम मोदी ने अमेरिकी राष्ट्रपति को सकारात्मक प्रकिया दी है. विदेश मंत्रालय ने एक बयान में कहा, मोदी ने ट्रंप से टेलिफोन पर हुई बातचीत में उनकी दूरदृष्टि और सृजनात्मक रवैये की तारीफ की और कहा कि कोविड-19 के बाद की दुनिया के बाद की हकीकत के साथ ऐसे फोरम का विस्तार जरूरी है.

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अमेरिकी राष्ट्रपति के प्रस्ताव को लेकर चीनी मीडिया में काफी तल्खी है. चीन की सरकार के मुखपत्र कहे जाने वाले ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, जी-7 के विस्तार का विचार भू-राजनीतिक समीकरणों को लेकर है और साफ तौर पर ये चीन को रोकने की कोशिश है. अमेरिका सिर्फ इसलिए भारत के साथ नहीं है कि वह दुनिया की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है बल्कि अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति का भी अहम हिस्सा है. अमेरिका हिंद-प्रशांत में चीन को रोकने के लिए भारत को मजबूत करना चाहता है.

ग्लोबल टाइम्स ने अपने संपादकीय में लिखा है, "ट्रंप की योजना को लेकर भारत का उत्साहजनक रुख हैरान करने वाला नहीं है. शक्ति की महत्वाकांक्षा में भारत लंबे वक्त से दुनिया के शीर्ष अंतरराष्ट्रीय संगठनों का हिस्सा बनने की कोशिश कर रहा है. हालिया दिनों में भारत और चीन के सीमा पर तनाव के बीच, भारत अमेरिका के जी-7 योजना को समर्थन देकर चीन को भी संदेश देना चाहता है. कई भारतीय रणनीतिकारों का कहना है कि चीन पर दबाव बढ़ाने के लिए भारत को अमेरिका के करीब जाना चाहिए."

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अमेरिका समेत दुनिया के तमाम देशों के साथ भारत की मजबूत होती साझेदारी भी चीनी मीडिया को खटक रही है. ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, जब से मोदी दूसरी बार सत्ता में आए हैं, भारत का चीन के प्रति रवैया बदल गया है. भारत चतुष्कोणीय रणनीतिक वार्ता को लेकर तेजी से आगे बढ़ रहा है यानी भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के साथ अपना गठजोड़ मजबूत कर रहा है.

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चीनी अखबार ने ट्रंप के भारत दौरे का भी जिक्र किया है. अखबार ने लिखा है, ट्रंप के फरवरी महीने के दौरे में भारत और अमेरिका ने समावेशी वैश्विक रणनीतिक साझेदारी बढ़ाने की बात कही थी. इसका मतलब ये है कि भारत अमेरिका की हिंद-प्रशांत रणनीति को लागू करने में मदद करने के लिए तैयार है. इसके बदले में वह अमेरिका से वैश्विक ताकत बनने और अपनी अन्य योजनाओं में मदद चाहता है.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, कोरोना महामारी की पृष्ठभूमि में भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका के वरिष्ठ अधिकारी और न्यूजीलैंड, साउथ कोरिया और वियतनाम ने मार्च महीने में टेलिकॉन्फ्रेंस की थी. इस बैठक को आयोजित कराने में भारत ने अहम भूमिका अदा की थी. हालांकि दावा किया गया कि यह कोरोना मुद्दे को लेकर है लेकिन चारों देशों के गुट को संस्था के तौर पर पेश करना और इसे न्यूजीलैंड, साउथ कोरिया और वियतनाम तक विस्तारित करने के इरादे को हल्के में नहीं लिया जा सकता है.

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अखबार ने लिखा है, ये कहना बिल्कुल सही है कि चीन को टारगेट करने वाली अमेरिका की कई योजनाओं में भारत सक्रिय रहा है. लेकिन महामारी के बाद अगर चीन की ताकत और इसके वैश्विक दर्जे में कोई कमी नहीं आती है और अमेरिका का पतन जारी रहता है तो इसकी संभावना कम ही है कि भारत तब भी चीन को रोकने के लिए अमेरिका के साथ खड़ा होगा.

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आर्टिकल में आगे कहा गया है कि भारत के रणनीतिकार और नीति-निर्माता एक छोटे से समूह के हाथ में है जो चीन के खिलाफ नकारात्मक सोच रखते हैं. चीन का उभार और भारत-चीन के बीच शक्ति के मामले में बढ़ता अंतर चीन के प्रति भारत की बैचेनी और बढ़ा रहा है.

ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है, अमेरिका चीन के खिलाफ भारत को समर्थन दे रहा है. इससे भारत की भी चीन के प्रति रणनीतिक सोच का भी पता चलता है. वैश्विक रणनीतिक परिस्थितियों को लेकर भारत का फैसला चीन से बिल्कुल अलग है. उन्हें लगता है कि पश्चिमी देश अभी भी ज्यादा मजबूत स्थिति में हैं और अगर वे अमेरिका के साथ खड़े होते हैं तो उन्हें फायदा होगा.

ग्लोबल टाइम्स ने अंत में भारत को आगाह किया है कि अगर वह चीन को काल्पनिक दुश्मन मानने वाले छोटे-छोटे समूहों से जल्दबाजी में हाथ मिलाता है तो चीन-भारत के संबंध खराब हो जाएंगे और ये भारत के हित में नहीं होगा.

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चीन की सरकार के मुखपत्र ने लिखा है, "दोनों देशों के द्विपक्षीय संबंध पहले से ही तनावपूर्ण चल रहे हैं. चीन-भारत के संबंध एक ऐसी स्थिति में है कि केवल शीर्ष नेता ही भविष्य तय कर सकते हैं. एक बार संबंधों के खराब होने पर उन्हें फिर से सुधारना इतना आसान नहीं होगा."

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