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एक तरफ कमजोर अब्बास, दूसरी तरफ हमास... फिलीस्तीन देश बना तो चलाएगा कौन? क्या ये शख्स है ऑप्शन

फिलिस्तीन को यूरोप और अन्य देशों से मान्यता मिल रही है, लेकिन इसके नेतृत्व को लेकर गंभीर चुनौतियां हैं. गाजा पर हमास का नियंत्रण है जिसे अमेरिका और यूरोपीय संघ आतंकी संगठन मानता है तो फिलिस्तीन के दूसरे हिस्से वेस्ट बैंक और यरूशलम में फिलिस्तीनी प्राधिकरण है जो काफी कमजोर पड़ चुका है. ऐसे में नए नेतृत्व की जरूरत बताई जा रही है.

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फिलिस्तीन के नेतृत्व पर सवाल बरकरार हैं (Representative Photo: AI Generated)
फिलिस्तीन के नेतृत्व पर सवाल बरकरार हैं (Representative Photo: AI Generated)

फिलिस्तीन को कई बड़े देशों से लगातार मिलती मान्यता चर्चा में बना हुआ है. इसलिए भी क्योंकि इस बार फिलिस्तीन को मान्यता यूरोप के सभी बड़े देशों से मिल रही है. पहले ब्रिटेन, पुर्तगाल, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने फिलिस्तीन को मान्यता दी और फिर संयुक्त राष्ट्र महासभा में फ्रांस समेत छह अन्य देशों ने फिलिस्तीन को मान्यता दे दी. फिलिस्तीन को मान्यता मिलने के साथ ही इस बात पर भी काफी बहस हो रही है कि फिलिस्तीन को अगर एक स्वतंत्र देश का दर्जा मिल भी जाता है तो उसे चलाएगा कौन?

फिलिस्तीन की बात करें तो यह भौगोलिक रूप से दो हिस्सों में बंटा है- वेस्ट बैंक (जिसमें पूर्वी यरूशलम शामिल है) और गाजा पट्टी. ये दोनों ही क्षेत्र एक दूसरे से 45 किलोमीटर दूर हैं और दोनों जगह अलग-अलग सरकारें चलती हैं. वेस्ट बैंक में फिलिस्तीनी अथॉरिटी की सरकार चलती है, जिसका नेतृत्व महमूद अब्बास कर रहे हैं. फिलिस्तीनी अथॉरिटी को अंतरराष्ट्रीय समुदाय फिलिस्तीनियों की सरकार के रूप में मान्यता देती है.

वहीं, गाजा पट्टी पर 2007 से हमास का नियंत्रण है. ​​​​​​हमास एक हथियारबंद फिलिस्तीनी समूह है, जिसे अमेरिका समेत यूरोपीय देश आतंकी संगठन मानते हैं.

2006 में फिलिस्तीन में हुए चुनाव में हमास ने बड़ी जीत हासिल की थी. लेकिन सत्ता में साझेदारी को लेकर फतह (महमूद अब्बास की पार्टी) और हमास के बीच खूनी संघर्ष छिड़ गया. इस संघर्ष के बाद हमास ने गाजा पर कब्जा कर लिया और फतह, यानी महमूद अब्बास का गुट, वेस्ट बैंक तक सीमित रह गया.
तब से अब तक दोनों इलाकों की राजनीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था अलग-अलग चल रही है.

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महमूद अब्बास- कूटनीति के जरिए फिलिस्तीन को मान्यता दिलाने की कोशिश

महमूद अब्बास 2005 से फिलिस्तीनी अथॉरिटी के प्रमुख हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उन्हें फिलिस्तीन का वैध प्रतिनिधि माना जाता है. उनकी रणनीति हमेशा कूटनीति पर आधारित रही है.

वो अमेरिका, यूरोप और संयुक्त राष्ट्र जैसे मंचों के जरिए फिलिस्तीन को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता दिलाने की कोशिश करते रहे हैं. 2012 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में फिलिस्तीन को 'नॉन-मेंबर ऑब्जर्वर स्टेट' का दर्जा दिलाने में उनकी अहम भूमिका रही.

सोमवार को फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने एक डिमिलिटराइज्ड फिलिस्तीनी स्टेट का वादा किया जो इजरायल को मान्यता देगा और साथ ही एक इजरायली देश जो फिलिस्तीन को मान्यता देगा. उन्होंने हमास को समाप्त करने और गाजा में अंतरिम प्रशासन बनाने का आह्वान किया, जिसमें फिलिस्तीनी अथॉरिटी को शामिल किया जाएगा.

मैक्रों ने कहा कि फ्रांस सुरक्षा बलों को प्रशिक्षित करेगा, जो हमास को खत्म करने की जिम्मेदारी संभालेंगे और गाजा में 'अंतरराष्ट्रीय स्थिरीकरण मिशन' (international stabilisation mission) में योगदान देंगे.

अब्बास के वादे का बार-बार टूटना

फिलिस्तीनी अथॉरिटी के राष्ट्रपति अब्बास ने सोमवार को एक वीडियो मैसेज में कहा कि तीन महीनों के भीतर एक अंतरिम संविधान तैयार किया जाएगा और नए चुनाव कराए जाएंगे. हालांकि, यह वादा वह 2005 और 2006 में हुए आखिरी राष्ट्रपति और संसदीय चुनावों के बाद से बार-बार करते आए हैं, लेकिन अब तक इसे पूरा नहीं कर पाए हैं.

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फिलहाल PA अपने लोगों से कटी हुई, कमजोर और आर्थिक रूप से संकटग्रस्त है. इसका एक बड़ा कारण वेस्ट बैंक में इजराइली सेना का कब्जा भी है. इसके उलट, हमास फिलिस्तीनियों में अधिक लोकप्रिय है, हालांकि गाजा युद्ध के दौरान उसकी ताकत काफी कमजोर हो गई है.

कमजोर सरकार के हाथ में होगा फिलिस्तीन का नेतृत्व?

बेल्जियम के कैथोलिक यूनिवर्सिटी ऑफ लोवेन में अंतरराष्ट्रीय संबंधों की प्रोफेसर और शोधकर्ता एलेना आउन (Elena Aoun) ने यूरोप के न्यूज चैनल यूरो न्यूज से बात करते हुए कहा, 'आज जो सबसे खतरनाक बात है, वो ये कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय फिलिस्तीन के भविष्य को उसी फिलिस्तीनी अथॉरिटी के हाथों में सौंपना चाहता है, जिसे 1990 के दशक से ही कमजोर किया गया है.'

उन्होंने सवाल उठाया, 'कौन समय निकालकर रामल्ला में फिलिस्तीनी प्राधिकरण से मिलने जाता है ताकि गाजा के भविष्य पर बात कर सके? इसके अलावा, अमेरिका ने तो अब्बास को UN जनरल असेंबली में आने के लिए वीजा तक नहीं दिया.'

अब्बास की सरकार पर भ्रष्टाचार और अक्षमता के आरोप लगते रहे हैं. उनकी लोकप्रियता लगातार गिर रही है, खासकर युवाओं में, जो मानते हैं कि केवल बातचीत और कूटनीति से इजरायल कोई बड़ा समझौता नहीं करेगा.

हमास-  सशस्त्र संघर्ष का रास्ता

हमास की स्थापना 1987 में 'पहली इंतिफादा' यानी इजरायल के खिलाफ फिलिस्तीनियों के पहले जोरदार विद्रोह के दौरान हुई थी. इसे फिलिस्तीनियों के बीच 'मुकावमत' यानी प्रतिरोध की ताकत के रूप में देखा जाता है. हमास का मानना है कि इजरायल के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष ही स्वतंत्रता का एकमात्र रास्ता है. गाजा में हमास की अपनी सुरक्षा और प्रशासनिक व्यवस्था है.

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7 अक्टूबर 2023 को हमास ने अचानक इजरायल पर हमला कर दिया था, जिसमें 1,200 से अधिक लोगों की जान गई और 251 लोग अगवा कर लिए गए. इस घटना को लेकर हमास की काफी आलोचना हुई और इजरायल ने गाजा पर हमले शुरू किए जो अब तक जारी हैं. इजरायल के हमले में गाजा में 65,000 से अधिक लोगों की जान गई है और शहर लगभग बर्बाद हो चुका है.

इसे लेकर इजरायल की भी भारी आलोचना हो रही है और इसी का नतीजा है कि यूरोपीय देश इजरायल-फिलिस्तीन के मुद्दे को सुलझाने के लिए दो अलग राष्ट्रों की वकालत करते हुए फिलिस्तीन को धड़ाधड़ मान्यता दे रहे हैं.

इजरायल के साथ लड़ाई में हमास के कई टॉप कमांडर मारे गए हैं और समूह कमजोर पड़ा है. इसे अमेरिका, यूरोपीय संघ और कई पश्चिमी देशों ने आतंकी संगठन घोषित कर रखा है. ऐसे में अगर फिलिस्तीन को मान्यता दिए जाने के बाद अगर हमास उसे चलाता है तो उसे अंतरराष्ट्रीय मान्यता मिलना लगभग असंभव हो जाएगा क्योंकि अमेरिका और यूरोपीय देश कभी ये स्वीकार नहीं करेंगे.

हमास भले ही गाजा में लोकप्रिय ताकत है लेकिन उस पर मानवाधिकार उल्लंघन और राजनीतिक दमन के आरोप भी लगते रहे हैं.

फिलिस्तीन को चाहिए नया नेतृत्व?

फिलिस्तीन के कई बुद्धिजीवियों का मानना है कि देश का नेतृत्व न तो हमास और न ही फिलिस्तीनी प्राधिकरण, बल्कि किसी नए लीडरशिप के हाथों जाना चाहिए. ऐसे में एक शख्स का नाम जो बार-बार सुनने में आ रहा है वो है- मरवान बरगूती.

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बरगूती दूसरे फिलिस्तीनी विद्रोह (2000-2005) के बीच तेजी से लोकप्रिय हुए. वो 15 साल की उम्र से ही फतह से जुड़े और दूसरे विद्रोह के दौरान इजरायल के खिलाफ मोर्चा खोल दिया. विद्रोह के दौरान ही 2002 में उन्हें इजरायल ने गिरफ्तार कर जेल भेज दिया और अब तक वो जेल में ही बंद हैं.

लगभग ढाई दशक से जेल में बंद होने के बावजूद, फिलिस्तीनी जनता उन्हें भूली नहीं है और हाल ही में एक सर्वे में सामने आया कि लोग राष्ट्रपति अब्बास से ज्यादा बरगूती को पसंद करते हैं. वेस्ट बैंक स्थित फिलिस्तीनी सेंटर फॉर पॉलिसी एंड सर्वे रिसर्च ने एक सर्वे कराया जिसमें 50 प्रतिशत फिलिस्तीनी बरगूती को अपने राष्ट्रपति के रूप में देखना चाहते हैं. सर्वे में उन्हें अब्बास से ज्यादा लोगों के वोट मिले. 

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