"दोपहर का खाना अभी भी चूल्हे पर बन रहा था. खाना पूरी तरह से नहीं बना था, इसलिए नसीमा ने अपनी बेटी से थोड़ा और इंतज़ार करने को कहती हैं और बच्ची को एक प्लास्टिक बैग देकर पड़ोसी के घर एक छोटा सा काम करने भेजती हैं. नसीमा अपना घर चलाने के लिए घरों में काम करती है, गर्म चावल के साथ इंतज़ार कर रही थीं, लेकिन उनकी बेटी वापस नहीं आई. अगली सुबह, 13 साल की अलिफ़ा की लाश एक पड़ोसी के दरवाज़े के सामने मिली, जिसने नारायणगंज के डोरी सोनाकांडा इलाके में रहने वाले एक गरीब परिवार के छोटे-छोटे सपनों को तोड़कर रख दिया."
बांग्लादेश में पिछले हफ़्ते नए सिरे से हुई हिंसा के बाद एक बार फिर देश सुलग उठा. देश के अलग-अलग हिस्सों से हिंसा और आगजनी की खबरों ने एक बार फिर से बांग्लादेश को झकझोर दिया. इस हिंसा में कई ऐसे लोग मारे गाए, जिनका कोई जुर्म नहीं था. तोड़-फोड़ और आगजनी के साथ ही लिंचिंग की घटनाएं भी सामने आईं.
इसके अलावा, कुछ ऐसे परिवार की भी कहानी सामने आ रही हैं, जिसको सुनकर दिल पसीज उठता है. कुछ ऐसी ही कहानी नसीमा की है, जो अपने बेटी के तड़प रही हैं.
द डेली स्टार की रिपोर्ट के मुताबिक, पीड़ित नसीमा रोते हुए कहती हैं, "मेरी बच्ची ने अपना लंच भी नहीं खाया था. उसे मार डाला." वे बोलते-बोलते गिर पड़ती हैं.
वे आगे बताती हैं, "मैं अपनी बेटी को पालने के लिए दूसरे लोगों के घरों में बर्तन धोती हूं. जिसने भी मेरी बच्ची को मारा है, मैं उसके लिए मौत की सज़ा चाहती हूं."
नसीमा की बेटी अलीफ़ा, क्लास 5 की छात्रा थी. शनिवार को शाम करीब 4:00 बजे लापता हो गई. वह बैटरी से चलने वाले रिक्शा ड्राइवर मोहम्मद अली और नसीमा की सबसे बड़ी बेटी थी. मूल रूप से मुंशीगंज के रहने वाला यह परिवार बंदर इलाके में एक किराए के घर में रहता था.
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मोहम्मद अली उस शाम घर लौटे तो उन्हें अपने लापता बच्ची की खबर मिली. उन्होंने सुबह 3:30 बजे तक पागलों की तरह उसे खोजा, यहां तक कि लोकल मस्जिदों से लाउडस्पीकर पर अनाउंसमेंट भी करवाए, लेकिन अगली सुबह पुलिस के शव मिलने तक उसका कोई सुराग नहीं मिला.
शव अलिफ़ा के घर के ठीक पीछे, अख्तर हुसैन के घर के सामने मिला. अख्तर के भाई, इसराफिल इस्लाम ने बताया कि फज्र की नमाज़ से लौटने के बाद उन्होंने शव देखा और तुरंत पुलिस को खबर दी. इसके बाद, अख्तर हुसैन को पूछताछ के लिए हिरासत में ले लिया गया.
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बंदर पुलिस स्टेशन के ऑफिसर-इन-चार्ज (OC) गुलाम मुख्तार अशरफ ने कहा कि शुरुआती निशान एक क्रूर अपराध की ओर इशारा करते हैं. उन्होंने बताया, "बच्ची के चेहरे पर चोटों और दूसरे निशानों के आधार पर, हमें शुरू में शक है कि उसे मारने से पहले उसके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था."
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नारायणगंज जनरल हॉस्पिटल में पोस्टमॉर्टम के बाद, रेजिडेंट मेडिकल ऑफिसर डॉ. जहिरुल इस्लाम ने दिल दहला देने वाली जानकारी दी. वे कहते हैं, "हमें बच्ची के गालों और गर्दन पर चोट के निशान मिले हैं, जो इंसानी नाखूनों से बने लगते हैं. हमने यह पता लगाने के लिए सैंपल लिए हैं कि बच्ची का रेप हुआ था या नहीं."
स्थानीय लोगों का कहना है कि ड्रग डीलरों और नशा करने वालों की बेरोकटोक आवाजाही ही इस तरह की हिंसा का संभावित कारण है.
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'यह अपराध नशेड़ी ने...'
पूर्व महिला पार्षद शेउली नौशाद ने अपनी निराशा ज़ाहिर की. उन्होंने कहा, "यहां ड्रग्स का धंधा खुलेआम चल रहा है. हमने स्थानीय पंचायत के साथ कई मीटिंग्स की हैं, लेकिन सुनने के बजाय, अपराधी हमें डराने की कोशिश करते हैं." उन्होंने कहा, "हमें शक है कि किसी नशेड़ी ने यह अपराध किया होगा."
निवासियों ने यह भी बताया कि इलाके में CCTV कैमरों की कमी अपराधियों की पहचान करने में बाधा डाल रही है.
अलिफ़ा ने इसी महीने की शुरुआत में अपना सालाना एग्जाम दिया था. उसके नतीजे 30 दिसंबर को आने वाले हैं. उसकी प्राइवेट ट्यूटर सुल्ताना रज़िया कहती हैं, "उसकी दुखद मौत से उसके टीचर बहुत दुखी हैं."
अपने नतीजों का जश्न मनाने के बजाय, उसके माता-पिता अब कानूनी लड़ाई लड़ने की तैयारी कर रहे हैं. पुलिस फिलहाल इस घटना के सिलसिले में हत्या का मामला दर्ज करने की तैयारी कर रही है.