बांग्लादेश में हालिया हिंसा में हिंदुओं को निशाना बनाए जाने की घटनाओं ने देश में अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं. इंकलाब मंच के भारत विरोधी नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या के बाद बांग्लादेश में भड़की हिंसा में भारत विरोधी भावनाएं फैलाई जा रही हैं और अल्पसंख्यकों को टार्गेट किया जा रहा है. हिंदू युवक दीपू चंद्र दास की हत्या इसका सबसे भयावह उदाहरण है.
वहीं दूसरी ओर, बांग्लादेश की सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देकर मानवाधिकारों की दुहाई दे रही है. हालिया हिंसा ने बांग्लादेश में कट्टरपंथी संगठनों और मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार के 'डबल गेम' पर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं.
सबसे पहले बात कर लेते हैं दीपू दास की जो कपड़े की एक फैक्ट्री में काम करता था और किराए के मकान में रहता था. भीड़ ने उस पर ईशनिंदा के आरोप में हमला कर दिया और पीट-पीटकर मार डाला. उसकी हत्या के बाद कट्टरपंथियों ने उसके शव को पेड़ से लटकाकर आग लगा दी.
इस घटना के बाद चटगांव जिले में एक हिंदू परिवार के घर पर आग लगा दी गई जिसमें घर का सारा सामान जल गया और पालतू जानवर मारे गए. घटनास्थल से हिंदू समुदाय को निशाना बनाते हुए 'लास्ट वार्निंग' लिखा हुआ एक धमकी भरा पोस्टर भी मिला है. इससे वहां के अल्पसंख्यकों में डर और दहशत का माहौल है.
बांग्लादेश में शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से हिंदुओं पर हमले बढ़े हैं. जुलाई-अगस्त 2024 में छात्र आंदोलन के दौरान शेख हसीना की सरकार गिरा दी गई थी जिसके बाद वो भारत भाग आई थीं.
इसके बाद बांग्लादेश में मोहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार का गठन हुआ जिसपर इस्लामिक कट्टरपंथियों का प्रभाव है. हालिया घटनाएं इस बात की ओर इशारा करती हैं कि सरकार न केवल हिंदुओं की सुरक्षा में नाकाम रही है, बल्कि कई मामलों में कट्टरपंथी तत्वों के खिलाफ सख्त कार्रवाई से भी बचती नजर आई है.
जुलाई 2025 में गंगाचरा उपजिला में हिंदू इलाके में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने हमला कर भारी तबाही मचाई थी. दंगाइयों ने दर्जनों घरों को लूटा और कई परिवारों को पलायन करने के लिए मजबूर किया गया था.
बांग्लादेश के हिंदू अपने ही देश में पूरी तरह से असुरक्षित हो गए हैं और विस्थापन का दर्द झेल रहे हैं. लेकिन बांग्लादेश की सरकार म्यांमार से आए रोहिंग्या मुस्लिम शरणार्थियों को देश में बसाकर अंतरराष्ट्रीय वाहवाही बटोरने की कोशिश कर रही है. रोहिंग्या शरणार्थी म्यांमार के गृहयुद्ध से भागकर शरण के लिए बांग्लादेश आते हैं.
बांग्लादेश लगभग 13 लाख रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देने का दावा करता है. कॉक्स बाजार और आसपास के क्षेत्रों में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए बनाए गए शिविरों में लाखों लोग रह रहे हैं. म्यांमार में हिंसा और उत्पीड़न से बचकर आए इन शरणार्थियों को बांग्लादेश ने अस्थायी शरण तो दी है, लेकिन वो संसाधनों की कमी, रोजगार के अवसरों की कमी और सुरक्षा संबंधी चिंताएं झेल रहे हैं.
कॉक्स बाजार के भीड़भाड़ वाले इलाके में बने शिविरों में आए दिन आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं. पिछले साल दिसंबर में लगी आग में दो लोग मारे गए थे और 4,000 से अधिक रोहिंग्या शरणार्थी बेघर हो गए थे.
साल 2023 में भी कॉक्स बाजार इलाके में भीषण आग लगी थी जिसमें 15,000 रोहिंग्या शरणार्थियों के 2,800 घर जल गए.
बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थियों के लिए काम करने वाले मानवाधिकार कार्यकर्ता मोहम्मद अरफान ने वॉयस ऑफ अमेरिका से बात करते हुए कहा था कि रोहिंग्या शरणार्थी जहां रह रहे हैं वो बेहद भीड़-भाड़ वाला इलाका है. यहां के घर अत्यंत ज्वलनशील पदार्थों जैसे बांस, फूस आदि से बने हैं.
रोहिंग्या शरणार्थी खाना बनाने के लिए मिट्टी के चूल्हों, गैस सिलिंडरों आदि का इस्तेमाल करते हैं और इस दौरान सुरक्षा का ध्यान नहीं रखा जाता है जिससे रोहिंग्या कैंप्स में आग लगने की घटनाएं होती रहती हैं.
एक तरफ बांग्लादेश सरकार रोहिंग्या शरणार्थियों को शरण देकर अंतरराष्ट्रीय सहानुभूति बटोरती है, वहीं दूसरी ओर देश के अपने अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय को कट्टरपंथी हिंसा के भरोसे छोड़ दिया गया है.
हिंदू अपने ही देश में अल्पसंख्यक होने की सजा भुगत रहे हैं और बांग्लादेश रोहिंग्या शरणार्थियों के नाम पर सहानुभूति तो बटोर रहा लेकिन उनके रहने के लिए सही इंतजाम नहीं कर पाया है. बांग्लादेश में चल रहा यह डबल गेम मानवाधिकारों पर गंभीर सवाल खड़े करता है. सवाल मोहम्मद यूनुस की अंतरिम सरकार पर भी खड़े हो रहे हैं जो बांग्लादेश को एक बार फिर से अंधेरे गर्त में ले जा रहे हैं.