बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय के खिलाफ ईशनिंदा के आरोपों को हथियार बनाकर की जा रही हिंसा ने अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूहों की चिंता बढ़ा दी है. 'ह्यूमन राइट्स कांग्रेस फॉर बांग्लादेश माइनॉरिटीज' (HRCBM) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, जून 2025 से दिसंबर 2025 के बीच हिंदुओं के खिलाफ ईशनिंदा के कम से कम 71 मामले दर्ज किए गए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार ये घटनाएं 30 से अधिक जिलों में हुई हैं, जिनमें रंगपुर, चांदपुर, चटगांव, दिनाजपुर, लालमोनिरहाट, सुनामगंज, खुलना, कोमिल्ला, गाजीपुर, टांगाइल और सिलहट प्रमुख हैं. मानवाधिकार संगठनों का कहना है कि यह महज अलग-अलग घटनाएं नहीं, बल्कि हिंदू अल्पसंख्यकों की एक ‘संरचनात्मक असुरक्षा’ को उजागर करती हैं.
दीपू दास केस सबसे भयावह घटना
रिपोर्ट में सबसे भयावह घटना 18 दिसंबर 2025 की बताई गई है, जहां मयमनसिंह के भालुका में ईशनिंदा के आरोप में दीपू चंद्र दास (30) की भीड़ ने पीट-पीटकर हत्या कर दी और उसके बाद उनके शव को आग के हवाले कर दिया. इसके अलावा रिपोर्ट में 19 जून 2025 को बरिशाल के अगलझारा में तमाल बैद्य की गिरफ्तारी, 22 जून को चांदपुर के मतलाब में शांतों सूत्रधार के खिलाफ विरोध मार्च, 27 जुलाई 2025 को रंगपुर के बेटगारी यूनियन में 17 वर्षीय रंजन रॉय की गिरफ्तारी के बाद 22 हिंदू घरों में तोड़फोड़, 4 सितंबर 2024 को खुलना के सोनाडांगा में 15 वर्षीय उत्सव मंडल पर कथित तौर पर सुरक्षा बलों की मौजूदगी में हुई बर्बर पिटाई जैसे मामलों का उल्लेख किया गया है.
रिपोर्ट के मुख्य बिंदु और आंकड़े
हिंसा और आरोप किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं हैं, बल्कि रंगपुर, चटगांव, खुलना और सिलहट समेत 30 से अधिक जिलों में फैल चुके हैं. रिपोर्ट के अनुसार, 90% आरोपी हिंदू हैं, जिनमें 15 से 17 साल के बच्चे भी शामिल हैं. रंगपुर में 17 वर्षीय रंजन रॉय की गिरफ्तारी के बाद भीड़ ने 22 हिंदू घरों में तोड़फोड़ की, जो दर्शाता है कि एक व्यक्ति पर आरोप का खामियाजा पूरे मोहल्ले को भुगतना पड़ रहा है. अधिकांश मामले सोशल मीडिया पोस्ट से जुड़े हैं, जिनमें से कई आईडी हैक होने या फर्जी होने का दावा किया गया है.
सुनियोजित पैटर्न की ओर इशारा
ईशनिंदा के आरोपों का असर शिक्षा पर भी पड़ा है. नॉर्थ साउथ यूनिवर्सिटी और खुलना यूनिवर्सिटी समेत कई बड़े संस्थानों से हिंदू छात्रों को बिना किसी फॉरेंसिक जांच के निलंबित या निष्कासित कर दिया गया. सरकार के 'साइबर सुरक्षा अधिनियम' का इस्तेमाल कर बिना सत्यापन के एफआईआर दर्ज की जा रही हैं. विश्वविद्यालयों और स्कूलों में पढ़ने वाले प्रणय कुंडू, बिकर्ण दास दिव्य, टोनी रॉय और अपूर्व पाल जैसे छात्रों को ईशनिंदा के आरोपों के चलते निलंबन, निष्कासन और पुलिस रिमांड का सामना करना पड़ा, जिनमें कई मामले साइबर सिक्योरिटी एक्ट के तहत बिना पोस्ट की सत्यता की पुष्टि के दर्ज किए गए।
HRCBM के अनुसार, ये छिटपुट घटनाएं नहीं बल्कि एक सुनियोजित पैटर्न हैं. पहले सोशल मीडिया पर आरोप लगाया जाता है, फिर भीड़ जुटाई जाती है और अंततः पुलिस दबाव में आकर गिरफ्तारी करती है. मानवाधिकार कार्यकर्ताओं का कहना है कि ईशनिंदा के आरोप अब अल्पसंख्यकों के उत्पीड़न, डराने-धमकाने और उन्हें सामाजिक रूप से बहिष्कृत करने का एक आसान जरिया बन गए हैं.